अमेरिका और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में आए बदलाव को लेकर तरह-तरह की बातें कही जा रही हैं। इसको लेकर सभी की अपनी थ्योरी भी है। लेकिन, इन सभी बातों के बीच कुछ सवाल बेहद खास हैं। पहला सवाल तो ये ही है कि इस बदलाव के पीछे सबसे अहम चीज या अहम कारण आखिर कौन सा है। एक सवाल ये भी है कि क्या इस बदलाव के पीछे भारत भी एक कारण है या अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की महत्वाकांक्षा उन्हें इसके लिए मजबूर कर रही है। इन सभी सवालों के जवाब तलाशे जाने बेहद जरूरी हैं। इन सवालों के जवाब के लिए कुछ बातों पर भी गौर कर लेना जरूरी हो जाता है।
22 जुलाई 2019 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच पहली बार मुलाकात हुई थी। यह अचानक होने वाली मुलाकात नहीं थी, बल्कि इमरान ट्रंप के ही न्यौते पर अमेरिका गए थे। इन दोनों नेतोओं की यह मुलाकात कई मायनों में खास रही। इसी मुलाकात के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कश्मीर पर विवादित बयान दिया था, जिसको लेकर अमेरिकी सांसदों ने भी खुलेतौर पर नाराजगी व्यक्त की। इसके अलावा भारत ने भी उनके बयान का तुरंत खडंन कर दिया।
पाकिस्तान की कई बार की आलोचना
2016 से पाकिस्तान अमेरिकी राष्ट्रपति के निशाने पर रहा है। अपने कार्यकाल के दौरान कई मर्तबा राष्ट्रपति ट्रंप ने पाकिस्तान की यह कहते हुए आलोचना की है कि वह आतंकियों की मदद कर रहा है। इतना ही नहीं उन्होंने पूर्व के अमेरिकी राष्ट्रपतियों द्वारा आतंकियों के खात्मे के नाम पर पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद को भी गलत बताया था।
इस संबंध में 2018 में किया गया उनका एक ट्वीट बेहद खास है। इसमें उन्होंने कहा था कि पूर्व की अमेरिकी सरकारों ने पाकिस्तान को बीते 15 वर्षों में 33 बिलियन डॉलर की राशि दी, इसके बाद भी अमेरिका को कुछ नहीं मिला और वो हमसे झूठ बोलते रहे। यह इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि सत्ता में आने के बाद ट्रंप ने 2018 में ही पाकिस्तान को दी जाने वाली 1.3 बिलियन डॉलर की आर्थिक मदद मदद को रोक दिया था। इसके बाद भी ट्रंप द्वारा इमरान खान को मुलाकात का न्यौता भेजना हर किसी को चौंकाता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव पर ट्रंप की निगाह
2020 में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होना है।दूसरी तरफ राष्ट्रपति ट्रंप के ऊपर महाभियोग की तलवार लटकी है। यदि उनके ऊपर महाभियोग चला तो उनकी कुर्सी का बचपाना काफी हद तक मुश्किल है। ऐसा इसलिए क्योंकि निचले सदन का समीकरण ट्रंप के पक्ष में नहीं दिखाई देता है। इसका एक पहलू ये भी है कि अमेरिका अब अफगानिस्तान से निकलना चाहता है। यहां पर ये भी नहीं भूलना चाहिए कि ट्रंप ने सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान में मौजूद अपनी सेना में इजाफा किया था। राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप के लिए अफगानिस्तान से सेनाओं की सफल वापसी फायदे का सौदा हो सकता है।
वहीं जानकार मानते हैं कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी तब तक संभव नहीं है जब तक की वहां पर शांति बहाली न हो जाए। इसके लिए अमेरिका-अफगानिस्तान-तालिबान के बीच वार्ता हो रही है। इस वार्ता में अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति के साथ कुछ अन्य नेता भी शामिल हैं। इस वार्ता में पाकिस्तान की भूमिका बेहद अहम है। वहीं इसमें वर्तमान अफगानिस्तान सरकार का कोई नुमाइंदा शामिल नहीं है। वहीं तालिबान ने भी अफगानिस्तान की सरकार से सीधे वार्ता करने से साफ इनकार कर दिया है।
इसलिए जरूरी है पाकिस्तान
पाकिस्तान अफगानिस्तान के मुद्दे पर काफी अहमियत रखता है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिकी सेनाओं की जरूरत पाकिस्तान के रास्ते ही पूरी होती है। वहींं पाकिस्तान ही अमेरिकी सेना की वापसी का रास्ता भी हो सकता है। ऐसे में यदि पाकिस्तान इन रास्तों को बंद करने का दुस्साहस करता है तो उसके पास खोने के लिए काफी कुछ नहीं होगा, लेकिन यहां पर अमेरिका का नुकसान अधिक होगा। ऐसे में जरूरी ये भी है कि पाकिस्तान को ऐसा करने से रोका जाए। इसके अलावा पाकिस्तान की इस वार्ता में मौजूदगी इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि अफगानिस्तान से लगती उसकी सीमा पर आज भी तालिबानी मौजूद हैं। पाकिस्तान पहले से ही उन्हें जरूरत की चीजें उपलब्ध करवाता रहा है। अफगानिस्तान से निकलने के लिए अमेरिका को जरूरी है कि तालिबान को शांत रखा जाए। यह काम उसके लिए पाकिस्तान कर सकता है।
इसलिए है पाकिस्तान की ट्रंप को जरूरत
इसके अलावा यदि अमेरिका अफगानिस्तान से अचानक निकल जाता है तो वह सवालों के घेरे में आ जाएगा। इससे बचने के लिए वह अफगानिस्तान को दूसरे हाथों में सौंप देना चाहता है। यह तालिबान और अफगानिस्तान की मिली-जुली सरकार हो सकती है। यदि अमेरिका इसमें कामयाब हो जाता है तो इसको ट्रंप अपने चुनाव में सफलतापूर्वक भुना सकते हैं। लिहाजा ट्रंप को पाकिस्तान की जरूरत अपने चुनाव जीतने के लिए अधिक है।
तीन मोर्चों को साधने की कोशिश
पाकिस्तान का साथ और अफगानिस्तान से सफलतापूर्वक अमेरिका की वापसी दोनों ही रूस को चौंकाने का काम कर सकती हैं। रूस का जिक्र यहां पर इसलिए भी है क्योंकि एशिया के कई देशों में रूस का प्रभाव साफतौर पर दिखाई देता है। वहीं ये दोनों देश एक दूसरे के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी भी हैं। इस लिहाज से ये कहना भी गलत नहीं है कि पाकिस्तान के जरिए ट्र्ंप एक साथ तीन मोर्चों को साधने की कोशिश करने में लगे हैं। इनमें पहला राष्ट्रपति चुनाव है तो दूसरा अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से सफल वापसी। तीसरा मोर्चा रूस है।