इस बार आपको वन अनुसंधान संस्थान परिसर स्थित देश का सबसे बड़े हरबेरियम की सैर करा रहे हैं। वर्ष 1908 में स्थापित अंतरराष्ट्रीय स्तर के इस हरबेरियम में दुनियाभर की वनस्पतियों के 3.30 लाख नमूने संरक्षित हैं। इनमें 1300 वनस्पतियों के ऐसे नमूने हैं, जिन्हें पहली बार विज्ञानियों ने खोजा और सहेजकर रख दिया।
देहरादून में स्थित वानिकी अनुसंधान के चोटी के संस्थान वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग ही पहचान है। मगर बहुत कम जानते हैं कि यहां वानिकी क्षेत्र का देश का सबसे बड़ा हरबेरियम भी है। यहां पर वनस्पतियों के 3.30 लाख स्पेसीमैन (नमूने) संरक्षित किए गए हैं। इसमें रखा गया पहला स्पेसीमैन गुलाब की एक प्रजाति रोजा क्लिनोफिला थॉरी का है। इसे यहां पर वर्ष 1807 में संरक्षित किया गया। इसके अलावा भी यहां रखा गया एक-एक नमूना अपने-आप में नायाब और ज्ञान का भंडार है। शोधार्थी यहां आकर अपना ज्ञान बढ़ाते हैं, जबकि आमजन एक जगह पर एकत्रित देशभर की संपन्न जैवविविधता को आत्मसात करते हैं।
1908 में हुई हरबेरियम की स्थापना
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस हरबेरियम का नाम देहरादून हरबेरियम है और इसकी स्थापना यहां वर्ष 1908 में की गई थी। इससे पहले इसका नाम फॉरेस्ट स्कूल हरबेरियम था, जिसे ब्रिटिशकाल में महान पादपविज्ञानी जेम्स गैम्बले ने वर्ष 1890 में सहारनपुर में स्थापित किया था। जेम्स ने ही इस हरबेरियम में गुलाब के पौधे का पहला नमूना संरक्षित किया था। यहां पर विश्व के विभिन्न कोनों समेत समूचे भारत से नमूने एकत्रित किए गए हैं। अधिकतर नमूने भारत की आजादी से पहले ही संरक्षित कर यहां रखे जा चुके थे।
1300 नमूने पहली खोज के रूप में सहेजे गए
यह हरबेरियम ऐसे एतिहासिक तथ्यों से भरा है, जिसे हर कोई देखना चाहेगा। इसमें 1300 वनस्पतियों के ऐसे नमूने हैं, जिन्हें पहली बार विज्ञानियों ने खोजा और सहेजकर रख दिया। विज्ञान जगत में पहली बार लिखित दस्तावेज का हिस्सा बनने के चलते इस तरह के नमूनों को बेहद सुरक्षा के साथ रखा गया है, जिसे आमतौर पर खोला नहीं जाता।
जैवविविधता संरक्षण में अहम योगदान
हरबेरियम में हर नमूने के साथ यह जानकारी है कि इसे कब संरक्षित किया गया और यह वनस्पति कहां-कहां पाई जाती है। इस तरह की जानकारी संरक्षित होने के चलते किसी भी संकटग्रस्त प्रजाति के संरक्षण के लिए बेहद अहम होती है। जैवविविधता के नमूनों का यह भंडार उत्तराखंड जैसे राज्य के लिए इसलिए भी बेहतर है, क्योंकि यहां देश की जैवविविधता का 25 फीसद भाग मौजूद है। जबकि, भूगोल के लिहाज से देखें तो देश के मुकाबले उत्तराखंड का हिस्सा महज 1.63 फीसद है।
सूखे रूप से संरक्षित रखे जाते हैं नमूने
एफआरआइ की बॉटनी डिविजन के प्रमुख डॉ. अनूप चंद्रा बताते हैं कि वनस्पतियों के नमूनों को विशेष विधि से सुखाया जाता है और फिर दबाव बनाकर इन्हें सहेजा जाता है। इसके अलावा विशेष रसायनों से समय-समय पर इनका संरक्षण भी किया जाता है, ताकि यह सैकड़ों साल तक सुरक्षित रह सकें।
ढाई फीट लंबी मटरनुमा फली और समुद्री नारियल करते हैं चकित
एफआरआइ के हरबेरियम में मटर की फलीनुमा एक गहरे भूरे रंग की ढाई फीट लंबी फली है, जिसका नाम अंटाडा पुरसेथा है। खास बात यह कि यह मटर के ही कुल की एक वनस्पति है। इसे एफआरआइ में 19वीं सदी में सहेजकर रखा गया था। इस फली के बीच आज भी इसके भीतर सुरक्षित हैं और इसे हिलाने पर बीजों का पता चलता है। दूसरी तरफ यहां पर 30 से 40 औंस का एक समुद्री नारियल भी रखा गया है। जिसका वानस्पतिक नाम लोडोसिया मालदिविका है। इसे विज्ञानियों ने 1895 में संरक्षित किया।
वनस्पति नमूनों का विवरण
- वर्गीकरण, संख्या
- जीनस (वंश), 4128
- स्पीशीज (जाति/प्रजाति), 27299
- फैमलीज (कुल), 163
नमूने रखे जाने की अवधि
- वर्ष 1947 तक, 252501
- वर्ष 1947 से 1992, 57672
- वर्ष 1992 के बाद, 19827
बीजों का भी है बड़ा संसार
एफआरआइ के हरबेरियम में हजारों बीजों का संग्रह भी है। इसमें देशभर की वनस्पतियों के बीजों को संग्रहीत किया गया है। हालांकि, यह संग्रह हरबेरियम से इतर है।
एक क्लिक पर नमूनों की जानकारी
बॉटनी डिविजन के प्रमुख डॉ. अनूप चंद्रा ने बताया कि नमूनों की जानकारी को डिजिटाइज करने का काम चल रहा है। अब तक नमूनों का पता लगाने के लिए मैनुअल माध्यम अपनाया जाता है, जिसमें काफी समय लग जाता है। सभी नमूनों की जानकारी डिजिटाइज होने के बाद एक क्लिक पर पता चल जाएगा कि उसे कौन से शोकेस या अलमारी में रखा गया है। पहले चरण में यह जानकारी सिर्फ शोधार्थियों के लिए रहेगी और इसके बाद सभी के लिए इसे खोल दिया जाएगा। बताया कि हरबेरियम को दो साल पहले कैंपा फंड से अपग्रेड करने का भी काम किया गया है। अब इसके लिए वातानुकूलित कक्ष है और इसका स्वरूप भी आधुनिक हो चुका है।
ब्रिटिशकाल की पेंटिंग खास आकर्षण
एफआरआइ के हरबेरियम में वनस्पतियों की हस्तनिर्मित पेंटिंग्स भी आकर्षण का केंद्र हैं। ब्रिटिशकाल में बनाई गई इन पेंटिंग्स की सबसे बड़ी खासियत यह है कि देखने पर यह संबंधित वनस्पति की प्रतिकृति लगती हैं। सामान्य तौर पर लगता है कि ये कैमरे के चित्र हैं, लेकिन नीचे अंकित तारीख से पता चलता है कि ये पेंटिंग्स हैं और इन्हें एफआरआइ के कलाकारों ने भी बनाया है।
यहां से लाए गए वनस्पतियों के नमूने
देश के भीतर
- कश्मीर, पंजाब, अजमेर, बिहार, नागपुर, प.बंगाल, असम, अंडमान एंड निकोबार, हैदराबाद, मैसूर, चेन्नई समेत मध्य भारत के विभिन्न क्षेत्र।
देश से बाहर
- तिब्बत, अफगानिस्तान, ब्लूचिस्तान, नेपाल, भूटान, चीन सीमा क्षेत्र, फिलिपींस, तुर्किस्तान, जापान, रूस, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, तस्मानिया समेत यूरोप, अमेरिका व अफ्रीका के विभिन्न क्षेत्र।