अमेरिकी जनरल ने कहा- पाकिस्तान ने ग्वादर के लिए चीन से लिया 69 अरब का ऋण

पाकिस्तान ने अपने सदाबहार दोस्त चीन से ग्वादर बंदरगाह और अन्य परियोजनाओं के लिए करीब 69 अरब रुपये का ऋण लिया है। ये बात एक अमेरिकी जनरल ने कही है। जनरल ने प्रभुत्व के विस्तार के लिए चीन की ‘कर्ज के जाल में फंसाकर कब्जा’ करने वाली रणनीति को रेखांकित करते हुए यह बात कही है।

बलूचिस्तान के तटीय इलाके ग्वादर में इस बंदरगाह का निर्माण चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजना के तहत किया जा रहा है। चीन अपने दक्षिणी प्रांतों से पाकिस्तान में आर्थिक कॉरिडोर का एक अहम पड़ाव बनाना चाहता है। इसका निर्माण साल 2002 में शुरू हुआ था। इसे पेइचिंग की महत्वाकांक्षी वन बेल्ट, वन रोड (ओबीओआर) तथा मेरिटाइम सिल्क रोड प्रॉजेक्ट्स के बीच एक कड़ी माना जा रहा है। 

अमेरिकी जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ जनरल जोसेफ डनफोर्ड ने गुरुवार को सीनेट आर्म्ड सर्विसेज कमिटी में कहा, “कुछ उदाहरणों पर गौर कीजिए। चीन के कर्ज के जाल में फंसकर श्रीलंका को अपने डीप-वाटर बंदरगाह में 70 फीसदी की हिस्सेदारी चीन को 99 साल के लिए लीज पर देनी पड़ी। वहीं दूसरी ओर मालदीव ने भी अपने यहां विभिन्न कार्यों के लिए चीन से 1.5 अरब डॉलर का कर्ज लिया है। जो उसकी जीडीपी का 30 फीसदी है।”

डनफोर्ड ने आगे कहा कि चीन अपने प्रभुत्व के विस्तार के लिए कर्ज बांटकर कब्जा करने की रणनीति के जरिए दादागिरी करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क तैयार कर रहा है। 

उनका कहना है कि दुनियाभर के देश अब जागरुक हो रहे हैं कि चीन की ओबीओआर योजना के जरिए इकनॉमिक फ्रेंडशिप की बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। उनका कहना है कि चीन के ऐसा करने से अगर निवेश के वादे अधूरे रह जाएंगे तो इससे अंतरराष्ट्रीय मानक और सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।

बता दें चीन हमेशा से ही भारत को चारों ओर से घेरने की अपनी साजिश के तहत पड़ोसी देशों में अपनी गतिविधियां बढ़ाने में जुटा रहता है। चाहे फिर बात पाकिस्तान की करें या फिर श्रीलंका की। यहां विकास कार्यों के बहाने वह अपने पैर जमाता जा रहा है। 

श्रीलंका पर अपना प्रभाव और भी ज्यादा मजबूत करने के लिए अब चीन उसके उत्तरी क्षेत्र में घर और सड़क बनाना चाहता है। बता दें यह इलाका सदियों से सिविल वॉर से प्रभावित रहा है।   

हिंद महासागर वाले इस देश में चीन उस समय यह सब कर रहा है जब यहां उसके बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की आलोचना की जा रही है। उसपर आरोप लग रहे हैं कि वह श्रीलंका को कर्जे में फंसाना चाहता है। उसके निवेश से श्रीलंका कर्जे में डूब सकता है। राजधानी कोलंबो में चीनी दूतावास के राजनीतिक विभाग के चीफ लू चोंग का कहना है कि चीन श्रीलंका के कुछ क्षेत्रों में पुनर्निमाण कार्य करना चाहता है। यह क्षेत्र सदियों से गृह युद्ध का शिकार रहे हैं।

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