11,000 साल पहले लकड़ी की एक मूर्ति पर कुछ लिखा गया था और आज सारी दुनिया उसे पढ़ने की कोशिश कर रही है। अब सवाल उठ रहे हैं कि ‘शिगीर आइडल’ नाम की उस मूर्ति को क्या किसी दूसरे ग्रह के लोगों ने बनाया ?
आम तौर पर लकड़ियों की उम्र ज्यादा से ज्यादा कुछ सौ सालों की होती है। यह कल्पना करना भी कठिन है कि लकड़ियों की बनाई कोई कलाकृति हजारों सालों तक सुरक्षित रह सकती है, लेकिन यह अजूबा भी हुआ है। 11,000 साल से भी पुरानी लकड़ी की बनी एक अद्भुत मूर्ति दुनिया में आज भी सही-सलामत है और उस पर लिखी इबारत भी।
लकड़ी की यह रहस्यमय मूर्ति लगभग सवा सौ साल पहले यानी साल 1890 में साइबेरियाई पीट बोग के शिगीर इलाके में मिली थी। इलाके में सोने की खुदाई करने वाले श्रमिकों को जमीन के करीब साढ़े तेरह फीट नीचे यह मूर्ति अनायास ही हाथ लग गई। कुछ टूटी-फूटी हालत में। मूर्तिकारों ने जोड़कर इसे लगभग अपने मूलरूप में खड़ा किया। मूर्ति की वास्तविक ऊंचाई साढ़े सत्रह फीट थी, जो टूट जाने के बाद नौ फीट से कुछ ही ज्यादा रह गई है।
शुरुआती जांच में इस मूर्ति को 9,500 साल पुराना बताया गया था। हालांकि वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा हाल में की गई रेडियोकार्बन डेटिंग के बाद यह मूर्ति 11,000 वर्षों से भी ज्यादा पुरानी घोषित की गई है। मूर्ति को बनाने की कला भी आम मूर्तियों से कुछ अलग है। बिल्कुल आधुनिक अमूर्त मूर्तिकला की तरह। पुराने लार्च वृक्ष को काट और तराशकर बनी इस नक्काशीदार मूर्ति के चेहरे अर्थात गर्दन के ऊपर के हिस्से में आंखें, नाक और मुंह तो है, लेकिन गर्दन के नीचे का शरीर बिल्कुल सपाट और आयताकार है।
इसकी सबसे खास बात यह है कि इसमें मुख्य चेहरे के अतिरिक्त भी इसके कई और चेहरे हैं। अलग-अलग कोणों से देखने पर इसके सात चेहरे स्पष्ट दिखते हैं। उनमें से एक चेहरा आश्चर्यजनक रूप से त्रिआयामी या थ्री डायमेंशनल है। विश्व के सबसे बड़े आश्चर्यों में एक इस मूर्ति को फिलहाल रूस के येसटेरिनबर्ग के म्यूजियम में जगमगाती रोशनियों के बीच प्रदर्शन के लिए रखा गया है। इसे देखने के लिए दुनिया भर के सैलानियों की भीड़ लगी रहती है।
यह मूर्ति दुनिया की प्राचीनतम काष्ठ-रचना है, जिसकी उम्र मिस्र के पिरामिड या इंग्लैंड के स्टोनहेज से भी दोगुनी से ज्यादा है। ‘शिगीर आइडल’ के नाम से प्रसिद्ध प्रस्तर युग की इस मूर्ति के चारों ओर अज्ञात लिपि में कुछ शब्द भी खुदे हुए हैं और कुछ आड़ी-तिरछी या वक्र ज्यामितिक रेखाएं भी खींची गई हैं। लिपि और संकेत ऐसे हैं, जिन्हें आज तक नहीं पढ़ा जा सका है।
सवा सौ साल से शोधकर्ता इसके बारे में बस अनुमान ही लगाते आए हैं। उनमें से कुछ बहुत प्रचलित अनुमान ये हैं – इस लिपि में मूर्ति के निर्माण की तकनीक दर्ज है, इलाके में सफर करने वालों के लिए नक्शा और दिशानिर्देश हैं, देवी-देवताओं की स्तुतियां हैं, प्रेतात्माओं को आहूत करने या भगाने के मंत्र हैं, जंगल के किसी क्षेत्र विशेष में प्रवेश न करने की चेतावनी है, अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए पुरखों के संदेश हैं या फिर हमारी सृष्टि की उत्पति की सांकेतिक व्याख्या है।
रशियन अकादमी ऑफ साइंस एंड आर्कियोलॉजी के प्रसिद्ध वैज्ञानिक मिखाईल ज्हिलिन का कहना है- ‘हमने अब तक एक आश्चर्य के साथ इस मूर्ति का अध्ययन किया है। यह विराट भावनात्मक बल और मूल्यों से बनी एक अद्भुत कलाकृति है। इसे और इसके संदेश को समझना बहुत कठिन है। इसके भावनात्मक पक्ष को महसूस किया जाना चाहिए।’
वैज्ञानिकों और स्थापत्य के विशेषज्ञों का एक वर्ग भी है जो मानता है कि प्रस्तर युग में अत्याधुनिक तकनीक से बनी ऐसी किसी मूर्ति का निर्माण और संरक्षण उस दौर के लोगों के लिए कतई संभव नहीं था। उनकी दृष्टि में यह प्राचीन काल में दूसरे ग्रहों से आने वाले एलियंस की रचना हो सकती है। अपने कथ्य के समर्थन में वे दुनिया भर में जहां-तहां मौजूद एलियंस के आने के उपलब्ध संकेतों का हवाला देते हैं।
दुनिया की कई प्राचीन गुफाओं में ऐसे रहस्यमय शिलाचित्र मिले हैं, जिनमें उड़ने वाले जहाज या उड़न तश्तरी जैसी वस्तुओं, वर्तमान अंतरिक्ष यात्रियों जैसे परिधान पहने विचित्र चेहरे-मोहरे वाले लोगों और अलौकिक घटनाओं तथा दृश्यों का अंकन किया गया है। इंग्लैंड तथा दक्षिणी अमेरिका में हजारों साल पुरानी सितारों को लक्ष्य कर पत्थरों से बनीं या पत्थरों पर उकेरीं कुछ विचित्र ज्यामितिय संरचनाएं भी मिलती हैं, जो उस दौर के लोगों द्वारा तब तक अर्जित ज्ञान से कतई मेल नहीं खातीं।
बाइबिल सहित कुछ प्राचीन धर्मग्रंथों में भी आकाश से उतरने वाले अलौकिक देवताओं के उल्लेख मिलते हैं। उन्नत तकनीक और लोकोत्तर शक्तियों से लैस उन विचित्र प्राणियों के आगे हमारे पूर्वज नतमस्तक हुए होंगे। दूसरे ग्रहों के बारे में अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि उन्नत तकनीक से बने दुनिया के कई दूसरे प्राचीन अजूबों के साथ ‘शिगीर आइडल’ की रचना भी उन्हीं एलियंस की है। इस मूर्ति पर उन्होंने अपनी भाषा में अपने बाद आने वाले एलियंस के लिए दिशा-निर्देश या पृथ्वीवासियों के लिए कोई गुप्त संदेश लिख छोड़ा है।
वैज्ञानिक मूर्ति की आड़ी-सीधी रेखाओं को धरती और आकाश, जल और आकाश या कई अलग-अलग दुनियाओं के बीच की विभाजक रेखा और उनका अतिक्रमण करने के लिए जरूरी संकेतों की तरह देखते हैं। बरमूडा ट्रायंगल के रहस्य का वैज्ञानिक समाधान तो लगभग खोज लिया गया है, ‘शिगीर आइडल’ को लेकर हम आज भी अंधेरे में हैं। अब तक उसकी जितनी व्याख्याएं सामने आई हैं, वे सब कल्पनाओं और अनुमानों पर ही आधारित हैं।
जर्मनी के प्रागैतिहासिक विशेषज्ञ थॉमस तेर्बेर्गेर का कहना है, ‘पूरे यूरोप में इससे ज्यादा रहस्यमय और गहरे अर्थ लिए कोई प्राचीन मूर्ति कहीं और उपलब्ध नहीं है। इस मूर्ति को पढ़ना, समझना और उसके रहस्य की तह तक पहुंचना, एक सपने के सच होने जैसा है।’ अब पूरी दुनिया को जर्मन और रूसी शोधकर्ताओं के रहस्योद्घाटन की प्रतीक्षा है।