क्या बीजेपी को धार लोकसभा सीट पर मात देकर कांग्रेस एक बार फिर करेगी वापसी

मध्य प्रदेश की धार लोकसभा सीट एक ऐसी सीट रही है जिसपर कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी थोड़ी कमजोर रही है. हालांकि पिछले तीन चुनाव के नतीजों को देखें तो यहां की जनता ने किसी एक पार्टी को लगातार दूसरी बार नहीं चुना है.

धार लोकसभा सीट पर एक दौर में कभी कांग्रेस का दबदबा रहा करता था. लेकिन देश के साथ ही वह यहां पर भी कमजोर होती गई और बीजेपी ने इसका पूरा फायदा उठाया. 2014 के चुनाव में बीजेपी की सावित्री ठाकुर कांग्रेस के उमंग सिंघर को मात देकर यहां की सांसद बनीं. अब देखना होगा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में क्या बीजेपी लगातार दूसरी बार इस सीट पर कब्जा करेगी या जनता कांग्रेस को एक बार फिर मौका देगी.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

धार लोकसभा सीट पहला चुनाव 1967 में हुआ. यह सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है. पहले चुनाव में यहां पर भारतीय जनसंघ के भारत सिंह को जीत मिली. इसके अगले 2 चुनावों में भी भारत सिंह जीतने में कामयाब रहे.

कांग्रेस ने पहली बार 1980 के चुनाव में इस सीट पर जीत हासिल की. और इसके अगले 3 चुनाव में यहां पर ‘हाथ’ का ही कब्जा रहा. 1996 के चुनाव में इस सीट से बीजेपी के छत्तर सिंह ने कांग्रेस के सुरजभान सिंह को हराया. बता दें कि सुरजभान सिंह इससे पहले 1989 और 1991 के चुनाव में जीत हासिल किए थे.

1996 के चुनाव में जीत हासिल करने वाली बीजेपी को अगले चुनाव यानी 1998 में हार मिली और कांग्रेस के गजेंद्र सिंह यहां के सांसद बने. 1998 और 1999 में हारने के बाद बीजेपी ने एक बार फिर इस सीट पर जीत हासिल की और छत्तर सिंह दूसरी बार इस सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब रहे.

2009 में कांग्रेस ने एक बार फिर इस सीट पर वापसी की और गजेंद्र सिंह ने बीजेपी के मुकाम सिंह को मात दे दी. फिलहाल इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है और सावित्री ठाकुर यहां की सांसद हैं. देखा जाए तो इस सीट पर बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है. कांग्रेस को यहां 7 बार जीत मिली तो बीजेपी को 3 बार.

धार लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं. सरदारपुर, मनवार, बदनावर, गंधवानी, धर्मपुरी, डॉ. अंबेडकरनगर-महू, कुकशी, धार यहां की विधानसभा सीटें हैं. यहां की 8 विधानसभा सीटों में से 6 पर कांग्रेस और 2 पर बीजेपी का कब्जा है.

सामाजिक ताना-बाना

मध्य प्रदेश का ये जिला धार नगरी के नाम से विख्यात है. इस शहर की स्थापना परमार राजा भोज ने की थी. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से यह मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण शहर है. यह शहर पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित है.

एक जमाने में मालवा की राजधानी रहा यह शहर धार किला और भोजशाला मंदिर की वजह से पर्याप्त संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करने में सफल रहता है. राजनीतिक लिहाज से भी यह क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है.

2011 की जनगणना के मुताबिक धार की जनसंख्या 25,47,730 है. यहां की 78.63 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है और 21.37 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. धार में अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या ज्यादा है. यहां की 51.42 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की है और 7.66 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जाति की है.

चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 के चुनाव में यहां पर कुल 16,68,441 मतदाता थे. इनमें से 8,10,348 महिला मतदाता और 8,58,093 पुरुष मतदाता थे. 2014 के चुनाव में इस सीट पर 64.54 फीसदी मतदान हुआ था.

2014 का जनादेश

2014 के चुनाव में बीजेपी की सावित्री ठाकुर ने कांग्रेस के उमंग सिंघर को मात दी थी. सावित्री ठाकुर को 5,58,387(51.86 फीसदी) वोट मिले थे. उमंग सिंघर को 4,54,059(42.17 फीसदी) वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर 1,04,328 वोटों का था. बसपा के अजय रावत 1.36 फीसदी वोटों के साथ इस चुनाव में तीसरे स्थान पर थे.

इससे पहले 2009 के चुनाव में कांग्रेस के गजेंद्र सिंह को जीत मिली थी. उन्होंने बीजेपी के मुकाम सिंह को हराया था. गजेंद्र सिंह को 3,02,660(46.23 फीसदी) वोट मिले थे तो मुकाम सिंह को 2,99,999( 45.82फीसदी) वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर सिर्फ 2661 वोटों का था. वहीं बसपा के अजय रावत 2.46 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थे.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड

40 साल की सावित्री ठाकुर 2004 से 2009 के बीच जिला पंचायत की अध्यक्ष रह चुकी हैं. वह 2014 में जीतकर पहली बार संसद पहुंचीं. सावित्री ठाकुर की संसद में उपस्थिति 92 फीसदी रही. उन्होंने 13 बहस में हिस्सा लिया और संसद में 70 सवाल भी किए.

सावित्री ठाकुर को उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 25 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. जो कि ब्याज की रकम मिलाकर 26.83 करोड़ हो गई थी. इसमें से उन्होंने 22.75 यानी मूल आवंटित फंड का 89.21 फीसदी खर्च किया. उनका करीब 4.08 करोड़ रुपये का फंड बिना खर्च किए रह गया.

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