महाभारत में भीम को मुख्यतः बल का प्रतीक माना जाता है। उनकी बुद्धि के विषय में ज्यादा चर्चा नहीं की जाती। जबकि सत्य ये है कि वो जितने बलशाली थे उतने ही बुद्धिमान भी थे। उससे भी अधिक कहा जाये तो वे अत्यंत स्पष्टवादी थे। कदाचित ही महाभारत में कोई ऐसा पात्र है जो उतना स्पष्टवादी हो। वैसे तो उनकी स्पष्टवादिता के कई उदाहरण है लेकिन एक कथा ऐसी भी है जिसके द्वारा उन्होंने युधिष्ठिर को उनके कर्तव्य की याद दिलाई। इससे ये भी सिद्ध होता है कि वे सही चीज के लिए अपने भाइयों को भी नहीं छोड़ते थे।
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था और युधिष्ठिर सार्भौम सम्राट घोषित किये जा चुके थे और उनके शासन में हस्तिनापुर की जनता बहुत शांति से जीवन बिता रहे थे। उन्होंने ये घोषणा करवा रखी थी कि अगर कोई व्यक्ति को कोई कष्ट है तो वो उनसे मिलने आ सकते हैं। भीम युवराज तो थे ही साथ ही साथ वे गृह मंत्रालय भी सँभालते थे। इसका कारण ये था कि वे जनता से सीधे संवाद करने में माहिर थे। एक बार एक व्यक्ति सम्राट युधिष्ठिर से मिलने को आया। उसे कुछ समस्या थी जिसका निदान वो अपने राजा से चाहता था। उस समय शाम हो चुकी थी और राजसभा का कार्य समाप्त हो गया था। लेकिन फिर भी युधिष्ठिर ने उस व्यक्ति को अपने पास बुलाया।
जब वो व्यक्ति वहाँ आया तो उन्होंने उससे पूछा कि उसे क्या समस्या है। उस व्यक्ति ने उन्हें अपने समस्या बताई और उनसे समाधान की प्रार्थना की। तब युधिष्ठिर ने समय को देखते हुए उससे कल आने को कहा। राजा की आज्ञा को पाकर वो व्यक्ति वापस जाने लगा कि तभी भीम हँसने लगे। भीम को इस प्रकार हँसते देख कर सभी आश्चर्यचकित रह गए। युधिष्ठिर ये अच्छी तरह जानते थे कि भीम कभी भी उनका अपमान नहीं कर सकते इसी कारण उनकी हँसी के पीछे अवश्य कोई कारण होगा। ये सोच कर उन्होंने उस व्यक्ति को जाने से रोका और भीम से पूछा – “हे अनुज! तुम्हे धर्म और राजनीति के मर्म का ज्ञान है। इसीलिए तुम्हारा इस प्रकार असमय हँसना मुझे आश्चर्य में डाल रहा है। अवश्य ही इसके पीछे कोई कारण है। इसीलिए ये बताओ कि तुम इस प्रकार क्यों हँसे?”
तब भीम ने हाथ जोड़ कर कहा – ” हे महाराज! मैं आज तक आपको एक मनुष्य ही समझता था किन्तु आप तो ईश्वर निकले। मैं इसीलिए हँस रहा था कि मैं इतने वर्ष आपके साथ रहा पर अब तक आपको पहचान नहीं पाया।”
भीम का ये जवाब सुनकर युधिष्ठिर और आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने उनसे पूछा कि वे ऐसा क्यों समझते हैं कि वे ईश्वर हैं।
तब भीम ने सभी के सामने निर्भीक होकर एक कटु सत्य कहा – “हे महाराज! आज आपने इस याचक को ये कह कर लौटा दिया कि कल आना। किसी को ये ज्ञान नहीं हो सकता कि आने वाले समय में क्या हो सकता है। आपको ये पता है कि आप और हम कल तक जीवित रहेंगे। भविष्य का ऐसा ज्ञान तो केवल ईश्वर के लिए ही संभव है। कोई साधारण मनुष्य के पास ऐसा विश्वास नहीं हो सकता।”
भीम का ऐसा उत्तर सुनकर सभी अवाक् रह गए। युधिष्ठिर को भी अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने उसी समय उस याचक की समस्या का निदान किया। इस प्रकार भीम ने अपने एक छोटे से व्यंग से युधिष्ठिर को धर्म का ज्ञान दे दिया।