ज्योतिषीय गणनाओं में मंगल का बड़ा महत्व है। मंगल देव को वैवाहिक जीवन उन्नत होने का कारक माना जाता है। माना जाता है कि यदि जातक की जन्म कुंडली में मंगल पांचव, चैथे, बारहवें आदि स्थान में हो तो जातक मंगली होता है। ऐसे में ज्योतिषी जातक को मंगल दोष के निवारण की बात कहते हैं।
कहा जाता है कि मंगल होने की दशा में वर – वधू दोनों को मंगली वर – वधू से ही विवाह करना चाहिए। हालांकि मंगल देव के भारत में अतिप्राचीन और सर्वाधिक मान्य मंदिरों में उज्जैन का ही मंदिर है। जहां भात पूजा का आयोजन होता है। यहां मंगल देव के शिव लिंग स्वरूप में ही पूजन होते हैं। यहां भात पूजा का विधान है।
मंगल देव को रक्त वर्ण कहा जाता है इसलिए मंगल देव का लाल कंकू, लाल पुष्प, गुलाब आदि से अभिषेक किया जाता है। माना जाता है कि मंगलवार के दिन भात पूजन के अतिरिक्त जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक के साथ कंकु और लाल फूल के अभिषेक से पूजन करने से आराधक को विशेष लाभ होता है। माना जाता है कि मंगल की उत्पत्ति धरती से ही हुई थी। मंगलदेव को भूमि पुत्र भी इसीलिए ही कहा जाता है। दूसरी ओर इन्हें लोहितांग कहा जाता है। इनका लाल वर्ण इनके रौद्र स्वरूप में होने की बात भी दर्शाता है।