अरावली पर्वत शृंखला के शेखावटी अंचल (राजस्थान) के पर्वत मालकेतु के एक ओर की ढलान पर स्थित है लोहार्गल तीर्थ. यह भारत के प्रसिद्ध 14 गुप्त तीर्थों में से एक है (हेमादि संकल्प). इसे शेखावाटी का हरिद्वार भी कहा जाता है. स्कंद पुराण, वाराह पुराण में लोहार्गल जी का संदर्भ आता है. संवत् 1700 के आसपास रचित ‘लोहार्गलमाहत्म्यम’ में इस तीर्थ के महत्व को बताया गया है.
इस अजीब मंदिर में चढ़ाये जाते हैं लकड़ी के लिंग,वजह हैरान कर देने वाला
सीकर से लगभग 40 किलोमीटर दूर सीकर-उदयपुरवाटी मार्ग पर गोल्यानी के पास स्थित यह महत्वपूर्ण तीर्थ लोहागरजी (लोहार्गल) स्थानीय ग्रामीणों की गहरी आस्था और श्रद्धा का केंद्र है. जन्माष्टमी के दिन से यहां स्थित सूर्यकुंड में स्नान के बाद ‘मालकेतु पर्वत’ की 24 कोसीय परिक्रमा शुरू होती है, जो अनेक स्थानीय तीर्थों से होते हुए अमावस्या के दिन यहां आकर खत्म होती है. इस परिक्रमा में हजारों लोग शामिल होते हैं.
अद्भुत दृश्य होता है, इस परिक्रमा का, जब पहाड़ों के पर चढ़ते-उतरते हजारों लोग पारंपरिक वेशभूषा में लोकगीत गाते हुए चलते हैं. कई समूह अपने लोकल वाद्ययंत्रों के साथ गाते-बजाते भी चलते हैं. पूरे रास्ते में यात्रियों के लिए श्रद्धालुओं की ओर से पेयजल और भोजन की नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है.
सूर्यकुंड में स्नान का भी विशेष महत्व है. इस कुंड में पहाड़ों से अंदर ही अंदर के एक जलस्रोत से बारहों महीने जल गिरता है. ग्रामीण अपने परिजनों की मृत्यु के बाद हरिद्वार में अस्थियां विसर्जन के बाद यहां स्नान करने के बाद ही खुद को शुद्ध मानते हैं. सूर्यकुंड के पास ही सूर्य भगवान का प्राचीन मंदिर है. कहते हैं कि देश भर में सूर्य भगवान के 42 मंदिर हैं. पत्नी के साथ भगवान सूर्य का यह इकलौता मंदिर है.
किंवदंती यह भी है कि महाभारत युद्ध जीतने के बाद भी पांडव अपने परिजनों की हत्या (गौत्र हत्या) का पाप लगने से चिंतित थे और दोषमुक्ति के उपाय जानना चाहते थे. तब नारद जी ने उन्हें कहा कि वे तीर्थाटन करें और जब किसी स्थान के तीर्थजल में उनके परिजनों की हत्या में प्रयुक्त हथियार गल जायें, तो समझ जायें कि वे गौत्र हत्या के पाप से मुक्त हो गये. कहा जाता है कि जब उन्होंने सूर्यकुंड में स्नान किया और अपने हथियार उसमें डाले, तो उनके हथियार गल गये. कुछ लोग हथियारों की बजाय भीम की गदा के गलने की बात बताते हैं. सावन के महीने में इस पहाड़ी के आसपास स्थित शिव मंदिरों में जल चढ़ाने के लिए लोग इस सूर्यकुंड से कांवड़ भी उठाते हैं.
यहां आसपास के पहाड़ों पर अनेक ऋषियों-संन्यासियों की तपश्चर्या का भी विवरण है. कुछ पौराणिक ऋषियों और देवताओं के अलावा दो साधुओं के नाम प्रमुख हैं. बाबा बनखंडी दास और बाबा चेतन दास के बारे में चर्चा आम है. बाबा बनखंडी दास की छतरी इस पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर है, जहां जाना बहुत ही दुष्कर है, क्योंकि बहुत ही खड़ी चढ़ाई है और ढंग का रास्ता भी नहीं है. सो, बहुत कम लोग वहां तक जा पाते हैं. इन तपस्वियों से संबंधित कई लोकोक्तियां इस क्षेत्र में कही और सुनी जाती हैं. बाबा चेतनदास के प्रयासों से जल संरक्षण के लिए निर्मित ‘बावड़ी’ लोहार्गल धाम से कुछ दूर पहले ही रास्ते के किनारे है. बावड़ी काफी पुरानी होने के बावजूद अभी भी सही-सलामत है.
धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ इसका प्राकृतिक सौंदर्य भी कम नहीं है. यह क्षेत्र सजल, सघन वनों से आच्छादित है. ऊंची-ऊंची पर्वत शृंखलाएं हरियाली से ढंकी होने के कारण दृश्य बहुत ही मनोहारी लगता है. रास्ता भी बहुत ही सुंदर है. यहां के गांव अभी भी शहरी प्रभाव और विकास से दूर हैं. मकान, पहनावा, बोली, माहौल सब पर अभी भी राजस्थानी छाप है. यहां की एक और विशेषता है कि इस छोटे से गांव में सूर्यकुंड जाने के संकड़े रास्ते में लगभग सवा सौ-डेढ़ सौ अचार की ही दुकानें हैं. इस तरफ भी बंदरों की बहुतायत है, पर शाकंभरी माता के पास वाले बंदर काले मुंह वाले हैं और यहां लाल मुंह वाले बंदर बहुतायत में पाये जाते हैं.