राम मंदिर निर्माण को लेकर बजट सत्र तक सभी विकल्प परखेगी भाजपा
October 31, 2018
राष्ट्रीय
राम जन्मभूमि मंदिर मामले की सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जनवरी तक टलने से सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की रणनीति बिगड़ गई है। उधर, भाजपा का थिंक टैंक कहलाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अध्यादेश लाने की मांग उठाकर और विश्व हिंदू परिषद ने प्रयागराज में कुंभ के दौरान मंदिर निर्माण की तारीख तय करने की घोषणा करते हुए उसकी परेशानियों को और ज्यादा बढ़ा दिया है।
संभावना बन रही है कि भाजपा कोई हल नहीं निकलता देखकर बजट सत्र के बाद अध्यादेश के जरिए मंदिर निर्माण की घोषणा कर सकती है।
भाजपा का मानना है कि राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने सारे तथ्य हैं। हाई कोर्ट उन्हीं तथ्यों के आधार पर अपना फैसला दे चुका है। उसके बाद से कोई नए तथ्य नहीं आए हैं। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के सामने जमीन का मालिकाना हक तय करने के लिए ज्यादा बहस की गुंजाइश नहीं है। अमूमन दीवानी मामलों में शीर्ष अदालत फैसला सुनाने के लिए हाई कोर्ट के निर्णय और प्रस्तुत प्रमाणों व दस्तावेजों का परीक्षण ही करती है।
इस आधार पर पार्टी को लग रहा था कि सुप्रीम कोर्ट दीवाली के बाद प्रतिदिन सुनवाई कर दिसंबर-जनवरी तक अपना फैसला सुना देगा। राम जन्मभूमि पर फैसला किसी के भी पक्ष में आने पर भाजपा को उसका फायदा मिलने के आसार थे।
मंदिर निर्माण के हक में फैसला होने पर चुनाव में उसे वह अपनी जीत बताती और विपक्ष के पक्ष में फैसला आने पर जमीनी आंदोलन छेड़ा जाता। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी से पहले सुनवाई शुरू नहीं करने का फैसला लेकर उसकी इस रणनीति पर पानी फेर दिया है।
अभी अध्यादेश लाने में है नुकसान
यदि हर तरफ से बनाए जा रहे दबाव के मुताबिक भाजपा अभी अध्यादेश लाती है तो उसे संसद के शीतकालीन सत्र में चर्चा के लिए पेश करना पड़ेगा, लेकिन इसके लिए पार्टी तैयार नहीं होगी। यदि अध्यादेश बजट सत्र के बाद लाया जाता है तो उसे संसद की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी स्वयं शिवभक्त बन गए हैं तो भाजपा को लग रहा है कि वे अध्यादेश का विरोध नहीं करेंगे। हालांकि एक वरिष्ठ भाजपा नेता का कहना है कि अध्यादेश का जितना ज्यादा विरोध होगा, हमें उतना ही अधिक लाभ होगा।
शीर्ष अदालत का जनवरी में रुख परखेगी
माना जा रहा है कि पार्टी जनवरी के पहले सप्ताह में मामले की सुनवाई के लिए शीर्ष अदालत की पीठ का गठन होने का इंतजार करेगी। इसके बाद पीठ का सुनवाई के दौरान रुख देखकर फैसला किया जाएगा। यदि अदालत की सुनवाई इस बार की तरह ही फिर दो-तीन माह बाद के लिए टलती है तो सरकार अध्यादेश लाने पर विचार कर सकती है।
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