2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए 2014 जैसे नतीजे दोहराना मुश्किल नजर आ रहा है. खासकर उत्तर भारत के उन राज्यों में जहां बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों का सफाया कर दिया था. मौजूदा दौर में बीजेपी का समीकरण इन राज्यों में गड़बड़ाता नजर आ रहा है, ऐसे में पार्टी इस नुकसान की भरपाई के लिए ‘मिशन साउथ गठबंधन’ पर जुट गई है.
बता दें कि दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडू और केरल ऐसे पांच राज्य हैं जिनमें करीब 130 लोकसभा सीटें हैं. 2014 के संसदीय चुनाव में बीजेपी इन राज्यों से कुल 20 सीटें ही जीत सकी थी. यही वजह है कि बीजेपी ने दक्षिण के इन राज्यों की लोकसभा सीटों पर खास फोकस किया है. इसके लिए वो क्षत्रपों के साथ गठबंधन करके अपनी जड़ों को मजबूत करना चाहती है.
बीजेपी दक्षिण भारत की राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन की कवायद शुरू की है. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह तमिलनाडु में गठबंधन के लिए प्रयास कर रहे हैं. हालांकि पार्टी की कोशिश है कि गठबंधन व्यवाहरिक तौर होना चाहिए.
आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के साथ टीडीपी के रिस्ते बनते हुए नजर आ रहे हैं. ऐसे में बीजेपी चुनाव से पहले छोटे दलों के साथ हाथ मिलाने की कोशिशों में जुटी हैं.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने बीजेपी नेता से हवाले से लिखा है, ‘इन पांच राज्यों में कांग्रेस की कमजोरी ही हमारी संभावनाएं है. हम सहयोगियों को साथ लेकर चलने में कांग्रेस से आगे हैं. बीजेपी बहुत बेहतर स्थिति में है और सहयोगी दलों के साथ टेबल पर बैठकर उनकी बातों पर खास तवज्जो देती है.’
बीजेपी तेलंगाना में टीआरएस को अपने सहयोगी के तौर पर मानकर चल रही है. दरअसल तेलंगाना में कांग्रेस और टीआरएस आमने-सामने हैं. ऐसे में बीजेपी को टीआरएस से उम्मीद नजर आ रही है. जबकि केरल में आई बाढ़ ने बीजेपी की संभावनाओं को कम कर दिया है.
दरअसल दक्षिणी भारत में बीजेपी के एक मात्र सहयोगी रही टीडीपी अब साथ छोड़ चुकी है. इसके अलावा महाराष्ट्र में शिवसेना और पंजाब में अकाली दल के साथ भी बहुत बेहतर रिश्ते नहीं हैं. जबकि बिहार में आरएलएसपी ने तो महागठबंधन के साथ जाने के संकेत दिए हैं.
उत्तर भारत में कई राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं, वहां सत्ता-विरोधी लहर का उसे सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा कई राज्यों में विपक्षी दलों के एकजुट होने से बीजेपी का समीकरण बिगड़ता नजर आ रहा है. ऐसे में बीजेपी को दक्षिण भारत के राज्यों से कुछ उम्मीदें दिख रही हैं.
इसके अलावा डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष एमके स्टालिन, सांसद कनिमोझी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की श्रद्धांजलि सभा में दिल्ली पहुंचे. जिसके बाद राजनीतिक कयास लगाए जाने लगे हैं.
वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस तरह के संकेत को बीजेपी के साथ गठबंधन बनाने की तैयारी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. हालांकि उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में एआईएडीएमके वैचारिक रूप से बीजेपी विरोधी नहीं है. जबकि डीएमके बीजेपी विरोधी खेमें के साथ है.
तमिलनाडु की 39 सीटों में से बीजेपी 2014 के लोकसभा चुनाव में महज एक सीट ही जीती है. राज्य की एक सामाजिक-राजनीतिक संरचना है. बीजेपी नेताओं ने कहा कि मौजूदा समय में तमिलनाडु एक ऐसी स्थिति का सामना कर रहा है जिसमें एक प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी कमजोर हो गई है और दूसरे के नेतृत्व को अभी तक समर्थन नहीं मिला है.
बीजेपी नेता ने कहा कि ऐसे में मोदी के नाम पर हमें इसका फायदा मिलेगा और लोग हमारे साथ जुड़ेगे. इसके अलावा उन्होंने कहा कि केरल में बीजेपी ने अपना वोट शेयर बढ़ाने में कामयाब रही है. हालांकि अभी तक कोई चुनावी जीत नहीं मिली है.
ओडिशा में पार्टी की मजबूत होती स्थिति के बाद बीजेपी के सत्ता में लौटने के उद्देश्य से दक्षिणी राज्यों की सीट अधिक महत्वपूर्ण हो गई है. बीजेडी के खिलाफ अपने शुरुआती हमले के बाद, मॉनसून सत्र के दौरान दोनों दलों के बीच मामला शांत है. बीजेडी के राज्यसभा उप-सभापति पद के चुनाव में एनडीए के साथ मतदान करने के कदम ने दृष्टिकोण में बदलाव के संकेत दिए हैं.
बीजेपी में कई लोग सोचते हैं कि विधानसभा चुनावों पर ध्यान केंद्रित करने वाले क्षेत्रीय दलों के पुराने अभ्यास और संसदीय चुनाव लड़ने के लिए राष्ट्रीय दलों को छोड़कर वापस आ सकते है. जबकि तीसरे मोर्चे के लिए बहुत ज्यादा संभावनाएं नहीं रह गई हैं. ऐसे में टीआरएस और नवीन पटनायक एनडीए के साथ आ सकते हैं.