नवाज़ की परछाई से निकलकर क्या पाकिस्तान के नए 'शाह' बन सकेंगे शहबाज़?

नवाज़ की परछाई से निकलकर क्या पाकिस्तान के नए ‘शाह’ बन सकेंगे शहबाज़?

पाकिस्तान चुनाव में तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के चीफ इमरान खान और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के चीफ शहबाज़ शरीफ के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है. शहबाज़ शरीफ पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के छोटे भाई हैं और खुद भी प्रधानमंत्री रह चुके हैं. इस चुनाव में शहबाज़ ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है.नवाज़ की परछाई से निकलकर क्या पाकिस्तान के नए 'शाह' बन सकेंगे शहबाज़?

दो हफ्ते पहले शाहबाज शरीफ एक तरफ अपने भाई नवाज़ शरीफ और भतीजी मरियम की गिरफ्तारी के विरोध में लाहौर की सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे थे. वहीं, दूसरी ओर PML(N) समर्थकों को चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित भी करते रहे. अपने बड़े भाई की छाया में रहकर शहबाज़ एक उम्दा प्रशासक के तौर पर उभरे हैं. सवाल ये है कि क्या शहबाज शरीफ अपने भाई नवाज़ शरीफ की परछाई से निकलकर पाकिस्तान के नए ‘शाह’ बन सकेंगे?

हाल में हुए चुनावी कैंपेनों में PML(N) को जनता का अच्छा रिस्पॉन्स मिला है. जनसभाओं में जुटती भारी भीड़ को देखते हुए शहबाज़ शरीफ ने कहा था कि ये भीड़ उनके लिए नहीं, बल्कि बड़े भाई नवाज़ शरीफ के लिए हैं. क्योंकि, पूरी लड़ाई नवाज़ शरीफ के लिए ही लड़ी जा रही है. जाहिर तौर पर ये चुनाव शहबाज़ के लिए ‘लिटमस टेस्ट’ है.

पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर 10 साल के कार्यकाल के दौरान शहबाज़ शरीफ ने कई आयामों को छुआ. पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने एक पारदर्शी सरकार चलाई और काफी उपलब्धियां हासिल कीं. उनके प्रशासन में सभी ब्यूरोक्रेट्स सरकार के प्रति जवाबदेही रहे और सभी कामों को तय समय पर पूरा किया.

हमेशा काम में डूबे रहने वाले शहबाज़ शरीफ अपने अफसरों से लंबे समय तक काम करवाने के लिए जाने जाते हैं. पाकिस्तान में अधिकारियों की ड्यूटी सुबह 6 बजे शुरू होती है, जो देर शाम तक चलती है. इस दौरान अधिकारियों को रिफ्रेशमेंट के लिए कुछ दो-तीन घंटे का वक्त दिया जाता था. मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री रहते हुए शहबाज़ शरीफ का फोकस हमेशा बेहतर शासन पर ही रहा.

हाल ही में शहबाज़ शरीफ ने चुनावी रैली में कहा था कि वो ये चुनाव पाकिस्तान के बेहतर भविष्य के लिए है. वो पाकिस्तान को भारत से आगे लेकर जाना चाहते हैं. अपने चुनावी कैंपन में PML(N) ने शहबाज़ शरीफ के उन फैसलों और कार्यों को जोर-शोर से भुनाया, जो उन्होंने पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री के तौर पर किए थे. इससे वोटर्स के बीच शहबाज़ की एक अच्छी इमेज बनी है. यही नहीं, चुनाव की तैयारियों के बीच शहबाज़ शरीफ ने अपने भाई नवाज़ शरीफ और भतीजी मरियम के लिए न्याय की लड़ाई भी जारी रखी. इससे वोटर्स के बीच उन्हें एक तरह से इमोश्नल सपोर्ट मिल रहा है, खासकर कि पंजाब प्रांत में.

शहबाज़ शरीफ को उनके माइक्रो-मैनेजमेंट के लिए भी जाना जाता है. ‘दानिश स्कूल’ बनाने के पीछे उनका ही आइडिया था. ये स्कूल साल 2010 में स्थापित हुआ. सालाना 110 छात्रों को इसमें एडमिशन मिलता है. इस स्कूल की खास बात ये है कि इसमें हर साल 110 छात्रों की पढ़ाई, खाने-पीने और बाकी का सारा खर्च सरकार उठाती है.

यही नहीं, शहबाज़ शरीफ महिला सशक्तीकरण की भी वकालत करते हैं. उनका मानना है कि मुल्क तभी तरक्की के रास्ते पर अच्छे से चल पाएगा, जब आदमी और औरत को समान मौके मिले. खासकर महिलाओं को आगे लाने की जरूरत है. हाल में चुनावी रैलियों में दिए गए अपने सभी भाषणों में शहबाज ने महिला सशक्तीकरण पर भी फोकस किया है.

बहरहाल, पाकिस्तानी पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री शहबाज शरीफ बेशक अपने बड़े भाई नवाज़ शरीफ की छत्रछाया में उभरे हों, लेकिन वो नवाज़ की छाया में ही सिमट कर रह गए हैं. ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या इस बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव लड़ रहे शहबाज़ शरीफ अपनी अलग पहचान बना पाएंगे?

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