काशी की संकरी गलियां और गंगा घाटों का अलग ही आनंद है। पर्यटक भ्रमण करने आते हैं, फिर भी काशी का विकास जरूरत के मुताबिक नहीं हो सका। बहुमंजिली इमारतें बनीं, लेकिन उसकी तुलना में सुविधाएं नदारद, लेकिन अब बनारस बदल रहा है। सुविधाएं नए अंदाज में विकसित की जा रही हैं, मगर यदि कार्य नियोजित हो तो वास्तव में शहर की चमक दुनिया में बिखरेगी। दैनिक जागरण के माय सिटी माय प्राइड के तहत शनिवार को आयोजित राउंड टेबल कांफ्रेंस में बुनियादी सुविधाओं से जुड़े जानकारों की कुछ यही राय है।
10 मिनट का सफर तय करने में एक घंटे लग जाते हैं, कई हजार करोड़ के विकास कार्य चल रहे हैं। चौराहे पर सिग्नल लाइट लगने के बाद भी उसका पालन नहीं करना, सिपाही के हाथ देने के बाद भी तेज रफ्तार से वाहन लेकर निकल जाना और मकानों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगाना, जलते बल्ब को बंद नहीं करना और सड़कों के आगे अतिक्रमण आदि है।
सांस लेने में हो रही परेशानी
बीएचयू के प्रोफ्रेसर एवं पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. बीडी त्रिपाठी का कहना है कि मकान और भोजन सभी की जरूरत है, लेकिन प्रकृति को नष्ट करके नहीं। बहुमंजिली इमारतों को बनाने के लिए बड़े-बड़े पेड़ों की कटाई की जा रही है, जबकि उस पेड़ को तैयार होने में कई साल लगते हैं। मनमाने तरीके से पेड़ों की कटाई का नतीजा है कि वायु मंडल प्रदूषित हो चुका है। हमें सांस लेने में परेशानी हो रही है, लोग बीमारियों के गिरफ्त में हैं। पौधरोपण करके ही वायु को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है।