उपचुनावों में लगातार मिली हार से हतोत्साहित कांग्रेस कैराना संसदीय क्षेत्र व नूरपुर विधान सभा सीट पर होने वाली जंग में उतरने को लेकर पसोपेश में है। नामांकन पत्र दाखिल करने का कार्य तीन मई से शुरू होना है लेकिन तैयारी के नाम पर अभी कुछ नहीं है। जिताऊ उम्मीदवारों का टोटा होने के कारण संगठन भी गठबंधन के भरोसे है।
गोरखपुर व फूलपुर संसदीय क्षेत्रों के उपचुनाव में हुई फजीहत होने के बाद कांग्रेस चुनावी परीक्षा में सीधे उतरने से कतरा रही है। संगठन की कमजोरी व प्रदेश में मौजूदा राजनीतिक हालात भी अनुकूल नहीं होने के कारण पार्टी में उत्साहहीनता जैसे स्थिति है। उपचुनावों के लिए 28 मई को मतदान होना तय है। भारतीय जनता पार्टी व समाजवादी पार्टी के अलावा राष्ट्रीय लोकदल जैसे छोटे दल ने भी तैयारियां तेज कर दी है परंतु कांग्रेस में अभी कोई सक्रियता नहीं है। दिल्ली की जनाक्रोश रैली की तैयारी में उलझे होने का हवाला देते हुए प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर का कहना है कि राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्देश पर ही उपयुक्त कदम उठाया जाएगा।
स्थानीय संगठन भी पस्त
कैराना व नूरपुर उपचुनावों को लेकर स्थानीय संगठन में भी उत्साह नहीं है। एक पूर्व विधायक का कहना है कि पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनावों में यह दोनों सीटें कांग्रेस के पास न रहने का दुष्परिणाम यह रहा कि स्थानीय संगठन पूरी तरह निष्क्रिय हो चुका है। विधानसभा चुनाव में स्थानीय नेताओं को सपा प्रत्याशी नईमुल हसन के पक्ष में प्रचार करना पड़ा था परंतु भाजपा के लोकेंद्र सिंह से मात खानी पड़ी।
कांग्रेस व सपा गठबंधन प्रत्याशी को 66,289 वोट मिले जबकि 78951 मत पाकर भाजपा का कमल लगातार दूसरी बार नूरपुर क्षेत्र में खिला था। उधर, कैराना लोकसभा क्षेत्र में भी 2014 में कांग्रेस को राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन में सीट छोडऩी पड़ी थी। रालोद-कांग्रेस के संयुक्त प्रत्याशी करतार सिंह भड़ाना महज 42,706 वोटों पर ही सिमटकर रह गए थे। वहीं भाजपा के हुकुम सिंह 5,65,909 वोट पाकर विजयी हुए थे।
सपा बसपा के तेवर से बढ़ी बेचैनी
उपचुनाव से दूरी रखने वाली बसपा भी कांग्रेस की बजाय सपा का साथ देने के लिए तैयार है। ऐसे में कांग्रेस अपने दम पर उपचुनावों में उतरने से कतरा रही है। प्रदेश उपाध्यक्ष युसूफ कुरैशी का कहना है कि पूरा फोकस 2019 पर रहना चाहिए। उपचुनाव में आधी अधूरी तैयारी से उतरने से किरकिरी कराने का कोई लाभ नहीं। वहीं पार्टी में एक खेमा अपने बूते मैदान में उतरने का पक्षधर में है। प्रदेश सचिव मुनेंद्र शर्मा का कहना है कि गठबंधन या अन्य कारणों से सीटे छोड़ देने से संगठन खत्म होने का खतरा बनता है।