टेलिकॉम डिपार्टमेंट जल्द ही वोडाफोन इंडिया और आइडियासेल्युलर से कह सकता है कि वे मिलकर करीब 3 अरब डॉलर यानी लगभग 18870 करोड़ रुपये का बकाया चुकाएं। डिपार्टमेंट यह रकम लंबित लाइसेंस फीस, स्पेक्ट्रम यूसेज चार्जेज और वन-टाइम स्पेक्ट्रम चार्जेज से जुड़े बकाये के संबंध में मांग सकता है। मामले की जानकारी रखने वाले तीन लोगों ने बताया कि विभाग इन दोनों कंपनियों के मर्जर को मंजूरी देने के लिए इस रकम के भुगतान की शर्त रख सकता है।
इनमें से एक कंपनी के एक एग्जिक्यूटिव ने कहा कि सरकार इस मामले में न तो वोडाफोन इंडिया और न ही आइडिया पर दबाव बना सकेगी क्योंकि मामला टेलिकॉम कंपनी के एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू की गणना से जुड़ा है और यह मुद्दा एक दशक से अधिक समय से विवादों में घिरा है और अभी न्यायालय में है।
हालांकि दूरसंचार विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि विभाग जल्द ही इन दोनों कंपनियों को करीब 19 हजार करोड़ रुपये के लिए डिमांड नोटिस भेजेगा। अगर लाइसेंस फीस और एसयूसी बकाये को कानूनी रूप से चुनौती दी जाती है तो विभाग वन टाइम स्पेक्ट्रम चार्ज के लिए करीब 5713 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी की डिमांड करेगा। यह कदम वह टेलिकॉम सेक्टर में मर्जर एंड एक्विजिशन के मौजूदा नियमों के मुताबिक उठाएगा। ऐसा वह ओटीएससी बकाये का मामला कोर्ट में होने के बावजूद करेगा।
टेलिकॉम कंपनियों का एजीआर वह रेवेन्यू है, जो लाइसेंस्ड सर्विस से हासिल होता है। आमतौर पर टेलिकॉम कंपनियां एजीआर का 8 पर्सेंट हिस्सा लाइसेंस फीस के रूप में और लगभग 5 पर्सेंट हिस्सा एसयूसी के रूप में चुकाती हैं। ये दोनों ही सरकार के लिए रेवेन्यू के अहम जरिए हैं।
दूरसंचार विभाग के एक सीनियर अधिकारी ने ईटी को बताया कि 100 पर्सेंट एफडीआई के लिए मंजूरी मांग रही आइडिया दोनों कंपनियों की ओर से विभाग से बातचीत कर रही है ताकि कुल बकाया की वह रकम तय की जा सके, जिसे दोनों कंपनियों को मर्जर को मंजूरी मिलने से पहले चुकाना होगा। इसकी वजह यह है कि वोडफोन इंडिया के साथ विलय के बाद आइडिया ही ‘लाइसेंसी बनी रहेगी।’
मर्जर एंड एक्विजिशंस की स्थिति में रेग्युलेटरी नियमों के पालन से वाकिफ एक अन्य शख्स ने कहा कि वोडाफोन इंडिया को ‘दूरसंचार विभाग के पास 3600 करोड़ रुपये का वन टाइम स्पेक्ट्रम चार्ज वाला बकाया जल्द जमा कराना पड़ सकता है’ क्योंकि आइडिया के साथ मर्जर के बाद वह लाइसेंसी नहीं रह जाएगी।