कांग्रेस के अधिवेशन में अध्यक्ष राहुल गांधी ने जिस तरह से सधे अंदाज में बीजेपी पर हमला बोलते हुए उसके शीर्ष नेतृत्व पर संभवतया सबसे तीखे निजी हमले बोले, उससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या राहुल गांधी वास्तव में 2019 के लिहाज से पीएम मोदी को ललकारने की स्थिति में पहुंच गए हैं? क्या 15 साल सियासत में रहने के बाद अब राहुल गांधी का वक्त आ गया है? क्या अध्यक्ष पर संभालने के बाद उनमें अपेक्षित आत्मविश्वास आ गया है? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर धारदार वार करते हुए कहा कि मोदी नाम भ्रष्ट कारोबारी और भारत के प्रधानमंत्री के बीच सांठ-गांठ का प्रतीक है. कांग्रेस के 84वें अधिवेशन में एक घंटे के भाषण में राहुल गांधी ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को हत्या का आरोपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) पर न्यायपालिका, संसद और पुलिस समेत संस्थानों पर नियंत्रण करने की कोशिश करने का आरोप लगाया.ये सही है कि राहुल गांधी ने अपने भाषण में बीजेपी के विकल्प के तौर पर पार्टी और नेता के रूप में उम्मीद जगाई है. हालांकि इससे पहले भी ऐसा कई बार हुआ है. अमेरिकी यूनिवर्सिटी में भाषण और उसके बाद गुजरात चुनावों में जिस तरह से उन्होंने मोर्चा संभाला, उस वक्त भी कमोबेश यही स्थिति उत्पन्न हुई थी. लेकिन गुजरात में बराबरी की टक्कर देने के बाद भले ही कांग्रेस हार गई लेकिन उसके बाद मीडिया में आने में उनको दो दिन लग गए. केवल ट्विटर पर पोस्ट करके ही रह गए. उसके बाद त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के चुनावों में उनकी दमदार उपस्थिति नहीं दिखी. इससे यह संदेश जाता है कि ये ठीक है कि अब राजनेता के तौर पर परिपक्व हो रहे हैं लेकिन अभी भी उनकी गति में निश्चितता नहीं दिखती.
दमदार संगठन की दरकार
बीजेपी के पास आरएसएस के रूप में एक दमदार कैडरवाला संगठन है, चुनाव में जमीनी स्तर पर इस संगठन की उपयोगिता पर किसी को संदेह नहीं है? क्या कांग्रेस के पास भी ऐसा संगठन है? राहुल कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पहले कई सालों तक पार्टी के उपाध्यक्ष रहे हैं. इस दौरान उन्होंने पार्टी में सांगठनिक बदलाव के लिए क्या किया है? यह सही है कि जब वह कांग्रेस उपाध्यक्ष बने थे तो संगठन की कुछ सीटों पर अमेरिकी स्टाइल में ‘प्राइमरी’ इलेक्शन की बात हुई. लेकिन ये प्रयोग ज्यादा नहीं चला. उसके बाद से लेकर अब तक संगठन में ऐसा कोई आमूलचूल बदलाव नहीं दिखा.
हालांकि बारंबार राहुल गांधी यह कहते रहे कि वह पार्टी में बदलाव लाएंगे. युवाओं को तरजीह दी जाएगी. बैकबेंचरों को अगली कतार में लाया जाएगा. लेकिन ये भाषण के बाद अब तक जमीनी स्तर पर देखने को नहीं मिला है. दरअसल राहुल गांधी को यह समझना ही होगा कि चुनाव हमेशा संगठन की बदौलत जीते जाते हैं. पार्टी के लिए नेता जरूरी है लेकिन केवल वह चुनाव नहीं जिता सकता. इसके विपरीत बीजेपी के पास पीएम नरेंद्र मोदी के रूप में करिश्माई नेतृत्व और जबर्दस्त कैडर वाला संगठन है. इसका मुकाबला वह किस तरह करेंगे?