यूपी की योगी सरकार ग्रेटर नोएडा के उन भ्रष्ट अफसरों पर सख्त कार्रवाई की तैयारी कर रही है, जिन्होंने अपने पद का दुरुपयोग कर बिल्डरों को फायदा पहुंचाया है.
इन अफसरों पर आरोप है कि उन्होंने नोएडा और ग्रेटर नोएडा के बिल्डरों के साथ सांठगांठ कर उन्हें काफी सस्ती दरों पर औद्योगिक और सांस्थानिक जमीनें खरीदने में मदद की और बाद में इन जमीनों का लैंड यूज बदल कर उन्हें कॉमर्शियल बना दिया. इस मामले में अफसरों की दबंगई का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उन्होंने राज्य सरकार से इजाजत लिए बिना ही लैंड यूज बदल दिया.
ऐसे ज्यादातर मामले पूर्ववर्ती बसपा और सपा सरकारों के हैं. यह मामले तब खुले जब बीजेपी की योगी सरकार सत्ता में आई और सरकार ने हाउसिंग एवं इंडस्ट्रियल प्रोजेक्ट्स के लिए जमीन तलाशनी शुरू की.
यूपी सरकार ने इस साल जनवरी में इस मामले में जांच शुरू की और घपले से जुड़े अधिकारियों को नोटिस भेजना शुरू किया. आईएएस विभा चहल के अंडर में बनी जांच समिति ने मामले के दोषी अधिकारियों की पहचान की. इन अफसरों ने बिल्डरों के साथ सांठगांठ कर घपले को अंजाम दिया.
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार सभी अधिकारियों को यह निर्देश दिया गया कि वे यह जानकारी दें कि आखिर किस आधार पर उन्होंने सरकार से बिना इजाजत लिए लैंड यूज में बदलाव किया. लेकिन राज्य प्रशासन के निर्देश के बावजूद इस लैंड यूज की वजह अधिकारी नहीं बता पाए. इस लैंड यूज से सरकारी खजाने को करोड़ों का चूना लगा है. जिन अधिकारियों को नोटिस दिया गया है, उनमें यशपाल सिंह, आर के सिंह, एसएसए रिजवी, जगदीश चंद्रा, मीना भार्गव, निमिशा शर्मा, मनीष लाल, प्रियांश गौतम, रवींदर सिंह, सुखवीर सिंह, देवी राम, डीपी सिंह और केके सिंह शामिल हैं.
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