New Delhi : जिसे लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करने के जुर्म में स्कूल के निकाल बाहर किया गया, जो दसवीं में फेल हो गया। जिसके खिलाफ़ आने वाली गंभीर शिकायतों से अक्सर उसके घरवालों को शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी, कभी वही लाखों लोगों का भाग्य विधाता बन जाएगा, ये सोचना भी अजीब लगता है। लेकिन डेरा सच्चा सौदा और इसके मौजूदा गद्दीनशीन बाबा राम रहीम की असलियत कुछ ऐसी ही है, और ये हम नहीं कह रहे, बल्कि खुद सालों-साल साए की तरह उसके साथ रह चुके डेरे के साधक कह रहे हैं।
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सिरसा के डेरा सच्चा सौदा की साख का अब बेशक तिया-पांचा हो चुका हो। लेकिन किसी ज़माने में ये डेरा ना सिर्फ़ हरियाणा, बल्कि पंजाब, राजस्थान, यूपी समेत आस-पास के कई राज्यों में श्रद्धा और भक्ति का केंद्र हुआ करता था। इस आश्रम की बुनियाद 69 साल पहले 29 अप्रैल 1948 को संत बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने रखी थी। लोग बताते हैं कि वो एक पहुंचे हुए संत थे, तब से लेकर अब तक इस डेरे की ओर से बहुत से समाज सेवा के काम भी किए गए। लेकिन राम रहीम के गद्दीनशीं होने के बाद धीरे-धीरे इसकी साख़ जाती रही।
राम रहीम का जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर में 15 अगस्त 1967 को हुआ, वो अपने पिता मघर सिंह के साथ डेरे पर जाया करता था, जो डेरे के दूसरे गद्दीनशीन शाह सतनाम जी के शिष्य थे। लेकिन शाह सतनाम जी ने राम रहीम को 23 साल की उम्र में डेरे की गद्दी सौंप दी। डेरे के साधक रहे कई लोग बताते हैं कि तीसरे गद्दीनशीं यानी राम रहीम को चुनने के मामले में शाह सतनाम जी से ग़लती हो गई।
राम रहीम शुरू से ही ना सिर्फ़ रसिया किस्म का लड़का था, बल्कि स्कूल के दिनों से ही लड़कियों को छेड़ना, आस-पास के लोगों को परेशान करना उसकी आदतों में शुमार था। लड़कियों के साथ छेड़खानी की वजह से नवीं क्लास में गुरमीत को स्कूल से निकाल भी दिया गया था। दसवीं में इन्हीं हरकतों के वजह से गुरमीत फेल हो गए और उन्हें कंपार्टमेंट आया था, ये बाबा के दसवीं का रिजल्ट है।
पुराने लोग बताते हैं कि जब बेपरवाह मस्ताना जी ने डेरे की नींव रखी थी, तब यहां सचमुच आध्यात्मिक माहौल हुआ करता था, वो अपने भक्तों को धर्म की सीख देते और सालों तक लगातार ध्यान योग सिखाते रहे, उनके शागिर्द शाह सतनाम जी भी उन्हीं के नक्शे-कदम पर रहे। लेकिन धीरे-धीरे राम रहीम के आने के बाद आध्यात्म की जगह दुनियावी चकाचौंध, महंगी गाड़ियों, कपड़ों, ऐशो आराम की चीज़ों से डेरा भरने लगा, और अब डेरा प्रमुख की करतूत का भांडा ऐसा फूटा है कि उसे सीधे सलाखों के पीछे पहुंचना पड़ गया।
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