किसान आंदोलन में बड़े बदलावों की तैयारी हो रही है। फरवरी के अंतिम दिन कई अहम घोषणाएं संभावित हैं। इस बार जो चक्रव्यूह तैयार हो रहा है, उसे तोड़ना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। किसान अंगारों पर पैर रखकर आगे बढ़ेंगे और सरकार को पता भी नहीं चलेगा। हो सकता है कि कहीं पर ट्रैक्टर दिखें और कहीं पैदल किसानों के जत्थे। मार्च की 23 तारीख बहुत अहम रहेगी।
शहीद दिवस के मौके पर अपने चक्रव्यूह के जरिए किसान संगठन, तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए केंद्र सरकार पर चौतरफा दबाव डाल सकते हैं। संसद घेराव, ट्रैक्टर मार्च और पद यात्रा जैसे कई तीर किसानों के तरकश में रहेंगे। एआईकेएससीसी के वरिष्ठ सदस्य अविक साहा कहते हैं, आंदोलन में शामिल विभिन्न किसान संगठनों के प्रस्ताव आ रहे हैं। इनमें कई सारी बातें कही गई हैं, जिनका खुलासा 28 फरवरी को किया जा सकता है। यह तय है कि आंदोलन में कुछ बड़ा होने जा रहा है।
बता दें कि राकेश टिकैत जिस तरह से किसान महापंचायतों में केंद्र सरकार को खुली चुनौती दे रहे हैं, उसके मद्देनजर आंदोलन में बदलावों की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी है। टिकैत ने चालीस लाख ट्रैक्टरों का मार्च निकालने की घोषणा की है। बतौर अविक साहा, अब आंदोलन की आगामी रुपरेखा तैयार करने के लिए रोजाना बैठकें हो रही हैं। इनमें उन प्रस्तावों पर चर्चा होती है, जो किसान संगठनों से प्राप्त हुए हैं। कई लोगों के ऐसे सुझाव भी आ रहे हैं कि जो भी कुछ हो, वह आंखों पर पर्दा डालने वाला हो। यानी सरकार को उसकी भनक तक न लग सके। किसान अंगारों पर पैर रख कर आगे बढ़ें और विजय हासिल करें।
किसान संगठनों की बैठक में संसद घेराव को लेकर कई तरह के सुझाव आ रहे हैं। कुछ किसान नेताओं का कहना है कि यह घेराव अगले सप्ताह ही कर दिया जाए। आंदोलन के स्टार प्रचारक राकेश टिकैत ने किसानों से तैयार रहने को कहा है। कहां से कितने ट्रैक्टर और कितनी देर में दिल्ली तक पहुंच सकते हैं, ये हिसाब-किताब लगा लिया गया है। किसान संगठनों की तरफ से जो भी प्रस्ताव मिल रहे हैं, उन पर अंतिम फैसला संयुक्त किसान मोर्चे द्वारा लिया जाएगा। अगर दिल्ली पुलिस ट्रैक्टरों को राष्ट्रीय राजधानी के अंदर नहीं आने देगी तो उसका विकल्प भी तैयार रहेगा। मसलन, ट्रैक्टर को ही तो रोका जाएगा, लेकिन किसानों को कैसे रोकेंगे। वे विभिन्न मार्गों से जत्थों के रुप में संसद भवन तक पहुंचने का प्रयास करेंगे। अविक साहा कहते हैं, पैदल किसानों को दिल्ली आने से कोई नहीं रोक सकता।
आंदोलन में शामिल कई साथियों ने यह प्रस्ताव भी रखा है कि 23 मार्च को शहीद दिवस पर लाखों किसान दिल्ली में एकत्रित हों। विभिन्न प्रदेशों से एक सप्ताह या दस दिन पहले किसानों के पैदल जत्थे दिल्ली के लिए चलना शुरू करें। ऐसा सुझाव भी आया है कि पहला दस्ता उत्तर प्रदेश से रवाना हो। उसके बाद दूसरे राज्यों के किसान चलना शुरू करें। पैदल जत्थों के लिए तीन सौ किलोमीटर तक का क्षेत्र निर्धारित किया जा सकता है। यानी वे इतनी दूर से पैदल चलकर दिल्ली पहुंच सकते हैं। ऐसे कई प्रस्ताव मिल रहे हैं।
किसानों की जो अंतिम रणनीति बनेगी, उसे ‘सीक्रेट मिशन’ के दस्तावेज जैसा रूप दिया जाएगा। एक चक्रव्यूह रहेगा, जो दिखेगा, संभावित है कि वैसा कुछ नहीं हो। जो नहीं दिखेगी, उस रणनीति पर किसान आगे बढ़ते हुए नजर आ सकते हैं। अविक साहा के अनुसार, सरकार इस आंदोलन को जितना अधिक बांधने, तोड़ने या इसे बदनाम करने का प्रयास करेगी, यह उतना ही ज्यादा आकार लेता जाएगा।
केंद्र सरकार और किसानों के बीच बातचीत की जो खबरें आ रही हैं, उन्हें लेकर किसान नेताओं का कहना है, हम सदैव बात करने के लिए तैयार हैं। किसान की मांग मान लें, वे वापस अपने खेत पर लौट जाएंगे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का नाम कई बार आगे बढ़ाया गया है। उन्हें राजनीति आती है और वे यह भी जानते हैं कि किसानों के साथ गलत हो रहा है।
किसान नेताओं का कहना था, यहां सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि फैसला करने का अधिकार केवल दो लोगों के पास ही है। राजनाथ सिंह अगर बातचीत करने आते हैं तो इस बात की क्या गारंटी है कि उनका प्रस्ताव या सुझाव केंद्र सरकार मान लेगी। दरअसल, केंद्र सरकार यह देख रही है कि किसानों के बिना क्या उनकी जीत संभव है। अगर है तो वह किसानों की गिनती नहीं करेंगे। यदि जीत संभव नहीं है तो उसे देर-सवेर किसानों की गिनती करनी पड़ेगी, यानी उनकी मांगों को मानना पड़ेगा।