महाराजा हरि सिंह की ओर से जम्मू कश्मीर के देश में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर करने के लगभग 72 साल बाद अब राज्य का देश के साथ पूरा मिलन हो गया है। दावा किया जाता रहा कि अनुच्छेद 370 के आधार पर जम्मू कश्मीर भारत से जुड़ पाया, जबकि हकीकत यह है कि बाद में जोड़े गए प्रावधान ही राज्य को पूरे देश से मिलने से रोक रहे थे।
अनुच्छेद 370 के पक्षकार यह भी कहते रहे कि राजा विशेष दर्जे के पक्ष में थे, लेकिन वह इस तथ्य को नकार नहीं सकते कि 1930 के दशक में गोलमेज सम्मेलन में राजा ने साफ शब्दों में कहा था कि भारत जब एक स्वतंत्र राष्ट्र बनेगा तो वह उसका हिस्सा बनेंगे।
यह है अधूरा सच
केंद्र सरकार के विधेयक से अब 72 सालों के अधिमिलन के बाद सोमवार को जम्मू कश्मीर का भारत से पूरा मिलन हो गया। इससे पूर्व जब इन प्रावधानों को हटाने की बात की जाती तो कहा जाता कि तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने विशेष परिस्थितियों में राज्य की विशेष पहचान के संरक्षण का यकीन दिलाए जाने पर ही विलय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसलिए यह अनुच्छेद जरूरी है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है।
दंगों की जमीन हुई तैयार
इतिहास के जानकार मानते हैं कि अनुच्छेद 370 के पक्षकार इस तथ्य को नहीं नकार सकते कि राजा ने गोलमेज सम्मेलन में ब्रिटिश राज को चुनौती देते हुए कहा था कि भारत और इसके लोगों के साथसाथ और ब्रिटिश इंडिया से बाहर की सभी भारतीय रियासतों से बराबरी का व्यवहार होना चाहिए। हालांकि इस सम्मेलन के बाद जम्मू कश्मीर का सियासी घटनाक्रम तेजी से बदला और महाराजा के खिलाफ अचानक विरोध की आवाज तेज हो गई। लाहौर और पश्चिमी पंजाब (फिलहाल पाकिस्तान में) से कई मुस्लिम लोगों का कश्मीर में आगमन हुआ और 1931 के दंगों की जमीन तैयार हुई।
मुस्लिम कांफ्रेंस का उभार
उसके बाद मुस्लिम कांफ्रेंस रियासत में विशेषकर कश्मीर घाटी में तेजी से उभरी। इसके प्रमुख नेता शेख अब्दुल्ला ने लाहौर, अलीगढ़ समेत अन्य राज्यों में अपने संपर्कों और कांग्रेस के तत्कालीन नेता जवाहर लाल नेहरू से अपने रिश्तों का पूरा इस्तेमाल किया। भारतीय उपमहाद्वीप में बदलते घटनाक्रम को देखते हुए शेख अब्दुल्ला ने गैर मुस्लिमों को जोड़ने के लिए अपने संगठन का नाम बदलकर नेशनल कांफ्रेंस कर दिया। इस दौरान आजादी तो मिली, लेकिन बंटवारे का दर्द भी दे गई। शायद राजा ने इसकी कल्पना नहीं की थी।
पाक ने कश्मीर पर हमला बोला
उस समय उनके लिए दोनों में से एक देश को चुनना शायद मुश्किल था और इसीलिए भारत-और पाकिस्तान दोनों के साथ हरिसिंह ने यथास्थिति कायम रखने का समझौता किया। महाराजा के लिए दोनों में किसी एक को चुनना तत्कालीन परिस्थितियों में मुश्किल था, क्योंकि जम्मू कश्मीर मुस्लिम बहुल राज्य था और भारत -पाक विभाजन मजहब के आधार पर था। इससे पहले कि महाराजा अपना फैसला लेते अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने समझौता तोड़ कश्मीर पर हमला बोल दिया।
भारी पड़ा पाकिस्तान पर विश्वास
23 सिंतबर 1947 को सरदार पटेल ने नेहरू को जम्मू कश्मीर को भारत में मिलाने के लिए उचित कदम उठाने की सलाह दी। पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर हमले की महाराजा हरि सिंह को भी सूचना थी, लेकिन पाकिस्तान के धोखे को भांप नहीं पाए। उन्होंने भारत से संपर्क किया।
22 अक्टूबर 1947 को पाक सेना ने कबाइलियों के साथ मिलकर हमला बोल दिया और पुंछ का एक इलाका पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। दो दिन बाद 24 अक्टूबर को कबाइली और पाकिस्तानी सैनिक बारामुला तक पहुंच गए। महाराजा सदमे में थे और वह श्रीनगर छोड़ अगले दिन जम्मू पहुंच गए। उन्होंने अपने एसीडी से कहा था कि अगर दिल्ली से कोई सकारात्मक संदेश नहीं आता है और भारत विलय के लिए नहीं मानता है तो वह उन्हें गोली मार दें।
बाद में आया अनुच्छेद 370
इस बीच राज्य के प्रधानमंत्री मेहरचंद महाजन की दिल्ली में कोशिशें रंग लाई और गृहसचिव वीपी मेनन राज्य में पहुंचे। महाराजा के आगे शर्त रखी गई कि वह अंतरिम सरकार बनाएं और सभी अधिकार शेख अब्दुल्ला को सौंप दें। महाराजा ने विलय समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए और जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया। उस समय तक अनुच्छेद 370 कहीं नहीं था।
नेहरू की गलती सुधारी
इतिहासकार प्रो. हरि ओम का कहना है कि उस समय महाराजा ने अगर विलय में कुछ शर्तें रखी भी थी तो वह स्थायी नहीं थी। इन्हें बहुत पहले हटा देना चाहिए था। उन्होंने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उस समय एक गलती की थी जिसे अब केंद्र सरकार ने सुधार दिया है।