39 साल पहले बेहमई सामूहिक हत्याकांड में डकैतों ने 20 लोगों को एक साथ दी थी मौत, 18 जनवरी तक फैसला टला

39 साल पहले बेहमई गांव में हुए कत्लेआम को लेकर सोमवार को स्पेशल जज (डकैती) की कोर्ट में सुनाया जाना था, जो फिलहाल 18 जनवरी तक टल गया है।  23 आरोपितों में फूलन देवी सहित 16 की मौत हो चुकी है। तीन आरोपित भीखा, विश्वनाथ और श्यामबाबू जमानत पर बाहर हैं, जबकि पोसा जेल में बंद है। जालौन जिले के तीन आरोपित मान सिंह, रामकेश व विश्वनाथ उर्फ अशोक फरार चल रहे हैं।

बेहमई सामूहिक हत्याकांड का फैसला सोमवार को कोर्ट में सुनाए जाने के चलते सुबह से ही चहल पहल बढ़ गई। बेहमई समेत आसपास के गांवों से लोग अदालत परिसर पहुंच गए। वादी राजाराम, नरसंहार में जीवित बचे जंटर सिंह, वादी राजाराम के पुत्र राजू सिंह, गांव के देवदत्त सिंह कोर्ट कक्ष के बाहर बैठकर फैसले का इंतजार करने लगे। स्पेशल जज डकैती की कोर्ट में सोमवार को (आरोपित पक्ष) जेल में निरुद्ध पोसा के वकील की तरफ से प्रार्थना पत्र दिया कि उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय की कुछ नजीरे प्रस्तुत करनी हैं, जिसके लिए समय दिया जाए। दोपहर में प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने समय की मांग को मंजूरी दी। कोर्ट ने नजीर पेश करने के लिए 16 जनवरी तक का समय दिया है और 18 जनवरी को फैसले की तारीख मुकर्रर की है। डीजीसी राजू पोरवाल ने बताया कि न्यायिक प्रक्रिया के तहत कोर्ट ने नजीरें प्रस्तुत करने का मौका बचाव पक्ष को दिया है। अब 18 जनवरी को फैसला आने की उम्मीद है। 

26 लोगों को कतारबद्ध खड़ा कर मारी थी गोली

14 फरवरी 1981 को कानपुर देहात के बेहमई गांव में दस्यु सुंदरी फूलन देवी, राम औतार, बाबा मुस्तकीम और लल्लू गैंग ने 26 लोगों को कतारबद्ध खड़ा कर गोलियों से भून दिया था। हत्याकांड में 20 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि छह लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। पुलिस ने गैंग के चारों सरगना व सदस्यों को मिलाकर 23 लोगों को आरोपित बनाया था। मगर, राजनीतिक दांवपेच के चलते व आरोपितों द्वारा पहले हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किए जाने से केस की सुनवाई में वक्त लगा।

राज्य सरकार ने दस्यु सुंदरी को रिहा करने का दिया था आदेश

मुख्य आरोपित फूलन देवी को वर्ष 1993 में तत्कालीन राज्य सरकार ने जनहित में आरोप मुक्त करते हुए रिहा करने के आदेश दिए थे। इस वजह से सुनवाई में विलंब हुआ। शासकीय अधिवक्ता राजू पोरवाल बताते हैं कि 33 साल बाद 24 अगस्त 2012 को केस का ट्रायल शुरू हो सका और आरोपितों पर चार्ज लगे। सुनवाई के दौरान राम सिंह ने जेल में रहते हुए दम तोड़ दिया। इसके अलावा 15 अन्य आरोपितों की भी मौत हो चुकी है।

इन आरोपितों की हो चुकी मौत

मुख्य आरोपित दस्यु सुंदरी फूलन देवी, जालौन के कोटा कुठौंद के राम औतार, गुलौली कालपी के मुस्तकीम, महदेवा कालपी के बलराम, टिकरी के मोती, चुर्खी के वृंदावन, कदौली के राम प्रकाश, गौहानी सिकंदरा के रामपाल, बिरही कालपी के लल्लू बघेल व बलवान, कालपी के लल्लू यादव, कोंच के रामशंकर, डकोर कालपी के जग्गन उर्फ जागेश्वर, मेतीपुर कुठौद के प्रेम, धरिया मंगलपुर के नंदा उर्फ माया मल्लाह व राम सिंह।

तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने दे दिया था इस्तीफा

सामूहिक नरसंहार से न केवल प्रदेश बल्कि देश भर के लोग सिहर उठे थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी ङ्क्षसह ने घटना से आहत होकर पद से इस्तीफा तक दे दिया था। जब छह जनवरी को फैसला आने की तारीख तय हुई तो पीडि़तों को न्याय की आस जगी है।

दो चश्मदीद गवाहों के बयान से उठा पर्दा

18 फरवरी 2013 को अपर जिला जज की कोर्ट में दो चश्मदीद गवाहों के बयान में इस बात से पर्दा उठा था। चश्मदीद गवाह मरजात सिंह व तखत सिंह बयान दर्ज कराते वक्त रो पड़े थे। शासकीय अधिवक्ता राजू पोरवाल बताते हैं कि चश्मदीद गवाहों के बयान में यह स्पष्ट हुआ था कि सामूहिक नरसंहार से पहले डकैतों ने लूटपाट की। इसके बाद तखत सिंह के दो चचेरे भाई व दो सगे भतीजों को गोलियों से भून डाला था।

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