राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (एनसीएलएटी) ने 31 हजार करोड़ की हेराफेरी को नजरअंदाज करने वाले ऑडिटरों पर लगाए गए जुर्माने को सही माना है। अधिकरण ने डीएचएफएल के खिलाफ राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (एनएफआरए) के आदेश को बरकरार रखा है। एनएफआरए ने 30 सितंबर को डीएचएफएल के 18 आंतरिक ऑडिटरों पर 18 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था, साथ ही उनके कहीं भी ऑडिटर के तौर पर काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। नियामकीय जांच में पाया गया कि डीएचएफएल की अलग-अलग शाखाओं में ऑडिटर के तौर पर काम करने वाले लोगों ने अपने कर्तव्यों का उल्लंघन किया था।
आदेश जागरूक करने वाला
एनसीएलएटी के जस्टिस राकेश कुमार जैन और तकनीकी सदस्य नरेश सलेचा ने एनएफआर के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि आदेश में कोई खामी नहीं है। बल्कि, एनएफआरए का आदेश जनता को जागरूक बनाने और उन्हें अच्छे वित्तीय निर्णय लेने में मदद करने में प्रभावी बनाने के लिए बेहद जरूरी है। एनसीएलएटी ने स्पष्ट किया कि एनएफआरए के आदेशों से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का कोई उल्लंघन नहीं होता है।
एनएफआरए के पास पर्याप्त अधिकार
आदेश में कहा गया है कि एनएफआरए के पास आईसीएआई की शक्तियों और प्राधिकार की तुलना में आईसीएआई के सदस्यों के पेशेवर कदाचार को रोकने के लिए पर्याप्त शक्तियां और अधिकार हैं। अधिकरण ने कहा कि ऑडिटरों की नियुक्ति की प्रक्रिया में कोई बदलाव की जरूरत नहीं है। लेकिन, ऑडिटिंग के वही मानक शाखा ऑडिट में भी लागू होते हैं, जो किसी विधिक ऑडिट पर लागू होते हैं। ऑडिटिंग के मानक सीए के लिए केवल मार्गदर्शन मात्र नहीं है, बल्कि इनका पालन करना अनिवार्य है। अपीलकर्ताओं की तरफ से ऑडिटिंग के मानकों का उल्लंघन किया गया है, लिहाजा एनएफआरए की तरफ से लगाए गया जुर्माना भी उचित है।