जून 1993 में पुलिस ने तीन युवकों परवीन कुमार, बॉबी कुमार व गुलशन कुमार को जबरन उठा लिया था। गुलशन कुमार को छोड़कर बाकी सभी को कुछ दिन बाद रिहा कर दिया गया। 22 जुलाई 1993 को तीन अन्य व्यक्तियों के साथ पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में गुलशन की हत्या कर दी। इसी मामले में अब सीबीआई कोर्ट का फैसला आया है।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत ने तत्कालीन डीएसपी सिटी तरनतारन (सेवानिवृत्त डीआईजी) दिलबाग सिंह को सात साल कैद और तत्कालीन एसएचओ पंजाब पुलिस गुरबचन सिंह (सेवानिवृत्त डीएसपी) को उम्रकैद की सजा सुनाई है। सीबीआई ने 31 साल पुराने हत्या के मामले में दोनों को गुरुवार को दोषी ठहराया था।
इस मामले की सुनवाई सीबीआई के विशेष न्यायाधीश राकेश कुमार की अदालत में हुई। तरनतारन के जंडाला रोड निवासी फल विक्रेता गुलशन कुमार की हत्या में दोनों को दोषी ठहराया गया है। आरोपियों के खिलाफ वर्ष 1997 में सीबीआई ने आईपीसी की धारा 302, 364, 201, 218, 120बी व 34 के तहत मामला दर्ज किया था। हालांकि, मामले में दोनों के अलावा तत्कालीन एएसआई अर्जुन सिंह, तत्कालीन एएसआई देविंदर सिंह और तत्कालीन एसआई बलबीर सिंह के खिलाफ भी मामला दर्ज किया था। इन तीनों की ट्रॉयल के दौरान मौत हो चुकी है।
सेवानिवृत्त डीएसपी गुरबचन सिंह को आईपीसी की धारा 302 में उम्रकैद व 2 लाख जुर्माना, धारा 364 में सात साल कैद व 50 हजार जुर्माना, धारा 201 में चार साल कैद व 50 हजार जुर्माना, धारा 218 में दो साल कैद व 25 हजार जुर्माने की सजा सुनाई है। इसी तरह पूर्व डीआईजी दिलबाग सिंह को आईपीसी की धारा 364 में सात साल कैद व 50 हजार रुपये जुर्माना लगाया गया है। इसके अलावा मृतक गुलशन कुमार के परिवार को दोषियों पर लगाए गए जुर्माने की राशि में से 2 लाख रुपये दिए जाएंगे।
यह है मामला
सीबीआई की ओर से दायर आरोप-पत्र के अनुसार जांच एजेंसी ने 1996 में मामला दर्ज किया था। गुलशन कुमार के पिता चमन लाल ने जांच एजेंसी के सामने बयान दिया था कि जून 1993 में डीएसपी दिलबाग सिंह (सेवानिवृत्त डीआईजी) के नेतृत्व में तरनतारन पुलिस ने 22 जून 1993 की शाम उनके बेटे परवीन कुमार, बॉबी कुमार व गुलशन कुमार को जबरन उठा लिया था। गुलशन कुमार को छोड़कर बाकी सभी को कुछ दिन बाद रिहा कर दिया गया। 22 जुलाई 1993 को तीन अन्य व्यक्तियों के साथ पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में गुलशन की हत्या कर दी। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने उन्हें सूचित किए बिना उनके बेटे के शव का अंतिम संस्कार भी कर दिया।
जांच एजेंसी ने आरोप-पत्र के साथ अदालत में जब सीबीआई जांच रिपोर्ट पेश की तो पता चला कि गुरबचन सिंह, जो उस समय सब-इंस्पेक्टर थे और तरनतारन (शहर) पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) के रूप में तैनात थे, ने गुलशन कुमार को अवैध हिरासत में रखा था। सीबीआई ने 28 फरवरी 1997 को दिलबाग सिंह तत्कालीन डीएसपी सिटी तरनतारन (अमृतसर) और 4 अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया था। जांच पूरी होने के बाद सीबीआई ने 7 मई 1999 को तत्कालीन डीएसपी दिलबाग सिंह, तत्कालीन इंस्पेक्टर गुरबचन सिंह, तत्कालीन एएसआई अर्जुन सिंह, तत्कालीन एएसआई देविंदर सिंह और तत्कालीन एसआई बलबीर सिंह के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था।
सात फरवरी 2000 को आरोप तय किए गए थे। मुकदमे के बाद अदालत ने दोनों को दोषी ठहराया। सीबीआई ने कुल 32 गवाहों का हवाला दिया था। मुकदमे के दौरान चश्मदीद गवाहों के ठोस सबूतों से दोनों दोषी साबित हुए और दस्तावेजों से दोषी पुलिस अधिकारियों की ओर से गढ़ी गई कहानी झूठी साबित हुई थी।