30 मार्च को तजाकिस्तान होने वाली हार्ट ऑफ एशिया कॉन्फ्रेंस में शामिल होंगे विदेश मंत्री जयशंकर

अफगानिस्तान की सरकार ने देश की शांति प्रक्रिया में भारत की व्यापक भूमिका का समर्थन किया है. भारत दौरे पर आए अफगानिस्तान के विदेश मंत्री हनीफ अतमर ने सोमवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मुलाकात की. अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने बताया कि उन्होंने इस मुलाकात में राष्ट्रपति अशरफ गनी की नई शांति योजना, अफगानिस्तान के तमाम पक्षों के बीच चल रही वार्ता और मास्को में पिछले सप्ताह हुई बैठक के बारे में चर्चा की.

पड़ोसी देश अफगानिस्तान में भारत ने अब तक खुद को सिर्फ विकास कार्यों तक ही सीमित रखा है लेकिन तेजी से बदलती परिस्थितियों में भारत भी अपनी भावी भूमिका को लेकर सक्रिय हो गया है. अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपनी सेना को बुलाने के लिए डेडलाइन तय कर दी है, ऐसे में भारत की ये भी चिंता है कि वहां तालिबान और उसको संरक्षण देने वाले पाकिस्तान का प्रभाव बढ़ सकता है. भारत ने हमेशा से अफगानिस्तान में अफगान नीत और अफगान नियंत्रित शांति प्रक्रिया का समर्थन किया है और इसी वजह से तालिबान के साथ अमेरिका की शांति वार्ता से भी दूरी बनाए रखी. अमेरिका के नेतृत्व में हो रही शांति वार्ता में पाकिस्तान, रूस, ईरान और चीन अहम भूमिका में हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, अतमर ने इंडियन वुमेन्स प्रेस कॉर्प्स में पत्रकारों से बातचीत में कहा, “अफगानिस्तान की शांति और सुरक्षा से भारत के कई हित जुड़े हुए हैं और हम चाहते हैं कि हमारे देश में भारत ज्यादा अहम भूमिका में रहे. उन्होंने कहा, हम नहीं चाहते हैं कि अफगानिस्तान आतंकवादियों के लिए सुरक्षित पनाह बने जो इसे जंग के मैदान में तब्दील कर देना चाहते हैं.

दुर्भाग्य से, वे भारत के खिलाफ भी अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल करना चाहते हैं. भारत सिर्फ अफगानिस्तान में ही नहीं बल्कि क्षेत्र और अन्य सहयोगियों के लिहाज से भी अहम है.”

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से अतमर की मुलाकात के बाद अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान भी जारी किया. बयान में कहा गया, अतमर ने भारतीय नेतृत्व से मुलाकात में गनी सरकार की शांति योजना पर चर्चा की. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, अशरफ गनी ने शांति प्रक्रिया को लेकर अपनी नई योजना तैयार की है. इसके तहत, अगर तालिबान सीजफायर और चुनी हुई सरकार को सत्ता सौंपने के लिए राजी हो जाता है तो एक साल के भीतर चुनाव कराए जाएंगे. अशरफ गनी की ये योजना अमेरिका के पीस प्लान से बिल्कुल अलग है. अमेरिका की योजना में अफगान-तालिबान के बीच सत्ता का बंटवारा और एक अंतरिम सरकार के गठन की बात शामिल है.

अतमर ने कहा कि अशरफ गनी की नई योजना अफगान लोगों की आकांक्षाओं पर आधारित है और इससे स्थायी शांति का मार्ग प्रशस्त होगा. इस योजना के जरिए अफगानिस्तान, क्षेत्र के तमाम देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच पुल का भी काम करेगा. अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय के बयान के मुताबिक, एनएसए अजित डोभाल ने बैठक में कहा कि लंबे समय तक कायम रहने वाली शांति के लिए अफगानों के बीच एकता और क्षेत्रीय-वैश्विक स्तर पर एक राय बेहद जरूरी है.

मंगलवार को एक अलग बयान में अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा, भारत ने कहा है कि वह अफगानिस्तान में शांति और विकास प्रक्रिया पर होने वाले क्षेत्रीय सम्मेलनों में हिस्सा लेगा. अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया को लेकर 30 मार्च को तजाकिस्तान में हार्ट ऑफ एशिया कॉन्फ्रेंस होगी और तुर्की में संयुक्त राष्ट्र की ओर से एक रीजनल कॉन्फ्रेंस भी प्रस्तावित है.

अतमर ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि विदेश मंत्री जयशंकर ने पुष्टि की है कि वह हार्ट ऑफ एशिया कॉन्फ्रेंस में शामिल होंगे. इस कॉन्फ्रेंस में रूस, चीन, यूएई, पाकिस्तान, ईरान और कई अन्य पश्चिमी एशियाई देश भी होंगे. हालांकि, अभी ये स्पष्ट नहीं है कि इस कॉन्फ्रेंस के दौरान जयशंकर पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से भी औपचारिक वार्ता करेंगे या नहीं.

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने भारत के विकास कार्यों में योगदान देने की सराहना की और कहा कि जरूरत के वक्त में भारत ने कोरोना की वैक्सीन उपलब्ध कराई. भारत ने अफगानिस्तान की विकास परियोजनाओं में 2 अरब डॉलर से भी ज्यादा का निवेश किया है. हाल ही में, भारत ने काबुल में शहतूत डैम बनाने का भी ऐलान किया था.

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने सीएए को लेकर भी प्रतिक्रिया दी. अतमर ने कहा कि उनकी सरकार भारत के अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक हिंदुओं और सिखों को शरण देने के लिए एहसानमंद है लेकिन वो इस बात से सहमत नहीं हैं कि उनके देश में सिर्फ अल्पसंख्यकों को ही प्रताड़ित नहीं किया गया.

उन्होंने कहा कि गृहयुद्ध के दौरान अफगान के खिलाफ हुई हिंसा ने दुर्भाग्य से अल्पसंख्यकों को भी नहीं बख्शा. ये किसी एक अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा नहीं थी बल्कि ये पूरे देश के खिलाफ हिंसा था लेकिन अल्पसंख्यक इससे ज्यादा बुरी तरह प्रभावित हुए.

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