अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद की जमीन के मालिकाना हक को लेकर चल रहे विवाद मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ गुरुवार को करेगी. जबकि इससे पहले तीन जजों की बेंच इस मामले को देख रही थी. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने जिस तरह से नए बेंच का गठन किया है, इससे साफ जाहिर है कि इस मामले को कोर्ट साधारण भूमि विवाद की तरह नहीं देख रहा है. ऐसे में क्या सालों पुराने इस मामले का फैसला 2019 के चुनाव से पहले आएगा या फिर अभी और इंतजार करना पड़ेगा?
अयोध्या मामले सुनवाई के लिए 5 जजों की नई संविधान पीठ की अध्यक्षता चीफ जस्टिस रंजन गोगोई करेंगे. इसके अलावा संविधान पीठ में जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ शामिल हैं. वरिष्ठता और उम्र के हिसाब से पीठ में शामिल चारों जज आने वाले समय में चीफ जस्टिस बनने की लाइन में है.
बता दें कि अयोध्या मामला 1950 से कोर्ट में है, लेकिन अब संविधान पीठ के गठन के बाद फैसले की उम्मीद जागी है. कानून के जानकारों का कहना है कि इस मामले को साधारण भूमि विवाद की जगह राष्ट्रीय मसले के तौर पर देखा जाएगा. ये मुद्दा धर्म से जुड़ा हुआ तो इसकी संवैधानिक पहलुओं की समीक्षा भी हो सकती है. कोर्ट सुनवाई में तय हो जाएगा कि मामले को कब से और किस तरह सुना जाएगा.
अयोध्या मामले के मुस्लिम पक्षकार हाजी महबूब ने कहा है कि विवादित जमीन केस की सुनवाई करने वाले 5 जजों की पीठ में एक मुस्लिम जज भी होना चाहिए था. हालांकि मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी ने सुप्रीम कोर्ट धर्म के लिहाज से फैसला नहीं देता है. संविधान और सूबतों के आधार पर जज फैसला देते हैं. इसीलिए यह मायने नहीं रखता है कि बेंच (पीठ) में किस धर्म को मानने वाले जज शामिल हैं.
इकबाल अंसारी ने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि इस मामले में जल्द से जल्द फैसला आए, लेकिन फैसला देना कोर्ट का काम है. ऐसे में कोर्ट जब भी और जो निर्णय देगा उसे हम स्वीकार करेंगे. हमारे पास सबूत हैं इसीलिए 70 साल से ये मामला चल रहा है.
वहीं, कानून के जानकारों की राय है कि मामले की सुनवाई तेजी से होगी, 5 जजों की बेंच इसलिए भी बनी है ताकि किसी पक्ष के एतराज की कोई गुंजाइश न बचे. हाईकोर्ट ज़्यादातर सवालों के जवाब दे चुका है. हाईकोर्ट ने 3 महीने में सुनवाई करके फैसला दे दिया था. ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट में ज़्यादा समय नहीं लगना चाहिए.