बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन मनाई जाती है। बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा एक साथ की जाती है। मान्यता है कि बैकुंठ चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव सृष्टि का भार फिर से विष्णु जी को सौंपते हैं। इसके अलावा एक अन्य मान्यता है कि जो भी बैकुंठ चतुर्दशी के दिन देह त्यागता है उसको स्वर्ग में जगह प्राप्त होती है। आइए जानते हैं बैकुंठ चतुर्दशी का मुहूर्त, विधि और धार्मिक महत्व।

चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 28 नवंबर को रात 10 बजकर 22 मिनट
बैकुंठ चतुर्दशी तिथि समाप्त: 29 नवंबर को दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक
निशीथ काल मुहूर्त: रात 11 बजकर 40 मिनट से 12 बजकर 32 मिनट तक
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर स्वच्छ धारण करें।
भगवान विष्णु के आगे हाथ जोड़ें और व्रत का संकल्प लें।
भगवान विष्णु और भगवान शिव के नामों का उच्चारण करें।
शाम को 108 कमल पुष्पों के साथ पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु का पूजन करें।
इसके अगले दिन सुबह भगवान शिव का पूजन करें।
गरीबों और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें।
शास्त्रों में बैकुंठ चतुर्दशी को बेहद महत्वपूर्ण बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु का व्रत रखने वाले जातकों को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है और सभी पापों से मुक्ति मिलती है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार कहा जाता है कि भगवान विष्णु जब देवउठनी एकादशी पर जागते हैं तो वे भगवान शिव की भक्ति में लग जाते हैं। भगवान विष्णु की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैकुंठ चतुर्दशी के दिन उनको दर्शन देकर उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान करते हैं और सृष्टि का कार्यभार सौंपते हैं। इस दिन भगवान विष्णु और शिव एक ही रूप में होते हैं।
बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक मास का अंतिम दिन होता है। कार्तिक मास में दान के लिए जाना जाता है। इस माह में प्रतिदिन चने का दान देना चाहिए। इस पावन मास में गौ सेवा का काफी महत्व है। इसलिए गौ माता का आशीर्वाद पाने के लिए प्रतिदिन गाय को हरी घास खिलाएं। साथ ही धान्य, बीज, चांदी, दीप, नमक आदि का यथाशक्ति दान करना चाहिए।
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