साल 2020 में भी उसके सामने दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव की दो बड़ी चुनौतियां हैं। दिल्ली उसके लिए सम्मान की लड़ाई बन गया है। यहां भाजपा करीब दो दशकों से सत्ता से बाहर है। लगातार 15 साल यहां शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार रही और फिर 2015 में आम आदमी पार्टी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया। बिहार में भी भाजपा के लिए कम चुनौतियां नहीं हैं। जनता दल यू के साथ उसकी खटपट जगजाहिर है। उपर से महाराष्ट्र और झारखंड के नतीजों ने जदयू को मुखर होने का मौका दे दिया है।
केजरीवाल नजर आ रहे मजबूत
दिल्ली में भाजपा का मुकाबला अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में बेहद मजबूत नजर आ रही आप से है। मुकाबले में कांग्रेस भी है जो यहां अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराने की लड़ाई लड़ रही है। 2015 चुनाव में आप की आंधी चली थी। उसने 70 में से 67 सीटों पर कब्जा जमाकर सभी को हैरान कर दिया था। भाजपा के पास न सीएम चेहरा है न कोई बड़ा मुद्दा। उसी एकमात्रा उम्मीद पीएम मोदी और अमित शाह ही हैं। वहीं, केजरीवाल एलान कर चुके हैं कि वह सिर्फ काम के आधार पर ही वोट मांगेंगे। उनके पास गिनाने के लिए काम हैं भी। मुफ्त बिजली-पानी जैसी आप सरकार की लोकप्रिया योजनाओं का भाजपा कैसे मुकाबला करेगी ये देखने वाली बात होगी।
बिहार में भाजपा के सामने कम चुनौतियां नहीं
सहयोगी ही भाजपा को ले डूबे
बिहार में भाजपा-जदयू के बीच कई बार तनातनी दिखी है। हाल ही में बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी और जदयू के महासचिव प्रशांत किशोर के बीच ट्विटर वार छिड़ गई थी। नागरिकता कानून पर बहस के बाद बात सीट शेयरिंग तक पहुंच गई। पीके ने कहा कि जदयू को ज्यादा सीटों पर लड़ना चाहिए, जबकि सुशील ने कहा कि इसका फैसला दोनों दलों के बड़े नेताओं के बीच बैठक के बाद होगा।
बिहार में सीट शेयरिंग से बनेगा समीकरण
केजरीवाल ने ठोकी चुनावी ताल
दिल्ली में चुनाव की तारीखों का एलान हो भी चुका है और प्रचार धीरे धीरे जोर पकड़ रहा है। दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर 8 फरवरी को चुनाव होंगे और 11 फरवरी को मतों की गणना के बाद नतीजे आएंगे। जोर आजमाइश शुरू हो गई है।
2019 जैसा प्रदर्शन दोहरा पाएगी भाजपा?
केजरीवाल को मिला पीके का साथ
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