केन्द्र सरकार की ग्रामीण क्षेत्रों के लिए रोजगार योजना मनरेगा को उसकी पूरी क्षमता के साथ लागू किया जाए तो मजदूरों की आमदनी में बड़ा इजाफा होने की संभावना है. केन्द्रीय रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट का दावा है कि वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान औसतन महज 50 दिन का रोजगार दिया गया.
केन्द्र सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत देश के ग्रामीण इलाकों में दिहाड़ी मजदूरों को कम से कम 100 दिन का रोजगार देने की गारंटी का प्रावधान है. योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में उस प्रत्येक व्यस्क को न्यूनतम 100 दिन का रोजगार दिया जाएगा जो सरकार के पास रोजगार मांगने जाएगा.
गौरतलब है कि विश्व बैंक ने मनरेगा को 2015 में दुनिया के सबसे बड़े पब्लिक वर्क प्रोग्राम की संज्ञा दी थी. वहीं भारत में मनरेगा देश के 15 फीसदी गरीब परिवारों को 100 दिन के रोजगार की गारंटी देकर सामाजिक सुरक्षा देने का दावा करता है. आरबीआई की रिपोर्ट यह भी दावा कर रही है कि देश का कोई भी राज्य ने इस केन्द्रीय योजना के मुताबिक पूरे 100 दिन का रोजगार नहीं दे पाई है.
मनरेगा के दिए इस ग्राफ के मुताबिक योजना के तहत औसतन 45.2 दिन का रोजगार पूरे देश में दिया गया. त्रिपुरा में सर्वाधिक 75 दिन का रोजगार दिया गया तो मणिपुर में एक साल के दौरान महज 20 दिन का रोजगार दिया जा सका.
केन्द्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक जहां वित्त वर्ष 2017-18 में औसतन महज 45.77 दिनों का रोजगार दिया गया वहीं 2016-17 में 46 दिन और 2015-16में सिर्फ औसतन 40.17 दिन का रोजगार दिया गया.
मनरेगा का प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में गरीब परिवारों को सामाजिक सुरक्षा देते हुए न्यूनतम 100 दिन का दिहाड़ी रोजगार मुहैया कराना है. इस योजना के तहत आवेदन करने वाले व्यक्ति के लिए उसके घर से 5 किलोमीटर के दायरे में सड़क, नहर इत्यादि जैसे निर्माण कार्यों में रोजगार देने का प्रावधान है. वहीं किसी आवेदक को यदि आवेदन देने के 15 दिनों में रोजगार नहीं मुहैया कराया जाता तब उसे बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान है और इस बेरोजगारी भत्ते की रकम राज्य सरकार के खजाने से अदा की जाएगी.
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