विरासत की इस जंग में भाजपा से देवीलाल के बेटे और प्रदेश के ऊर्जा मंत्री रणजीत सिंह चौटाला हैं। जननायक जनता पार्टी (जजपा) से रणजीत के भाई और पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाला के बेटे अजय की पत्नी नैना चौटाला जबकि इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से दूसरे भाई प्रताप के बेटे रवि चौटाला की पत्नी सुनैना हैं। नैना-सुनैना में जेठानी-देवरानी का रिश्ता है। इस तरह चाचा ससुर के सामने दो पुत्रवधु हैं, लेकिन दंगल में सिर्फ चौटाला परिवार ही नहीं हैं। मुख्य मुकाबला भाजपा के रणजीत चौटाला और कांग्रेस के टिकट पर उतरे पूर्व केंद्रीय मंत्री जय प्रकाश के बीच है। जय प्रकाश आठवीं बार मैदान में हैं। चार बार हारे हैं और तीन बार जीते हैं। आखिरी बार कांग्रेस के टिकट पर 2004 में दिल्ली पहुंचे थे।
जाट बहुल सीट पर चारों उम्मीदवार जाट समाज से हैं। चारों ही हिसार से बाहर के निवासी हैं। हालांकि, नैना और सुनैना का मायका हिसार क्षेत्र में ही पड़ता है। इस बार न कांग्रेस की राह आसान है, न भाजपा की और न ही जजपा और इनेलो की। भाजपा की झोली में यह सीट 2019 में पहली बार ही आई थी, लेकिन छह लाख से ज्यादा वोटों से जीते पूर्व आईएएस अधिकारी बृजेंद्र सिंह इलाके में पैठ रखने वाले पिता पूर्व मंत्री बीरेंद्र सिंह के साथ कांग्रेस में जा चुके हैं। बृजेंद्र को टिकट मिलने की उम्मीद थी लेकिन दाल गली नहीं। देखना है कि वह जय प्रकाश की नैया पार करने में मदद करते हैं या फिर तटस्थ भाव में बने रहते हैं।
बृजेंद्र जैसी भूमिका भाजपा में कुलदीप बिश्नोई की दिख रही है। हरियाणा जनहित कांग्रेस से वह खुद और उनके पिता एवं पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल यहां से सांसद रह चुके हैं। कुलदीप बाद में भाजपा में आ गए। इस बार टिकट के दावेदार थे लेकिन बात बन नहीं पाई। जजपा के लिए संकट विधायकों की बगावत से खड़ा हो रहा है। कोई कांग्रेस से हाथ मिला रहा है तो कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गीत गा रहा है। इनेलो का हिसार लोकसभा क्षेत्र में कोई विधायक ही नहीं है।
नौ में पांच विधायक भाजपा के
इस लोकसभा क्षेत्र में हिसार, जींद और भिवानी जिले के नौ विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें उचाना कला, उकलाना (एससी), नारनौंद और बरवाला से जजपा के विधायक हैं। आदमपुर, हांसी, हिसार, नलवा और बवानी खेड़ा (एससी) सीट भाजपा के पास है।
मुद्दों की बात
नारनौंद तहसील में जय प्रकाश का कहना था कि वोट मोदी के नाम और काम पर पड़ेगा। कुलदीप का कहना था कि मुद्दों का प्रभाव नहीं है, कांग्रेस प्रत्याशी की छवि अच्छी है। सुरेश कुमार का मानना है कि देवरानी-जेठानी कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएंगी। अग्निवीर मुद्दे आैर किसान आंदोलन का असर नहीं। आदमपुर के बाल समंद गांव में राजकुमार ने फ्री राशन को सबसे बड़ा मुद्दा बताया। कालीरावण गांव में प्रकाशी कहती हैं, राममंदिर बन गया और क्या चाहिए।
बदलते रहते हैं सांसद
हिसार के लोग सांसद बदलने में यकीन रखते हैं। 1998 और 1999 में इनेलो से सांसद बने सुरेंद्र सिंह बरवाला के अलावा कोई उम्मीदवार लगातार दो बार जीत नहीं पाया। 1952, 1957, 1967, 1984, 1991 और 2004 में कांग्रेस जीती, लेकिन सांसद का चेहरा बदलता रहा। 1971 व 1977 में जनता पार्टी को जीत मिली, लेकिन हर बार अलग-अलग उम्मीदवार थे। जनता दल, हरियाणा विकास पार्टी, हरियाणा जनहित कांग्रेस और भाजपा ने सीट एक-एक बार जीती है।
टूटने से कमजोर पड़ा चौटाला परिवार
2014 तक चौटाला परिवार का इस सीट पर अच्छा प्रभाव था। तब पूरा परिवार इनेलो का हिस्सा था। नौ दिसंबर, 2018 को दुष्यंत चौटाला ने इनेलो से अलग होकर जजपा बना ली। चौटाला परिवार में दुष्यंत अकेले हैं, जो हिसार से संसद पहुंच पाए हैं। ओेमप्रकाश चौटाला, अजय सिंह चौटाला और रणजीत सिंह चौटाला को हार झेलनी पड़ी है।