देहरादून : पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में करारी शिकस्त झेलने और दो साल पहले बड़ी टूट से गुजरने के बावजूद उत्तराखंड में कांग्रेस के अंदरूनी मतभेद खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं। लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे कांग्रेस नेताओं ने अपने नए प्रदेश प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह की मौजूदगी में पहले ही कार्यक्रम में जो कुछ किया, वह इसकी बानगी कहा जा सकता है। 
आलाकमान के निर्णय ने स्थापित कर दिया कि रावत की अहमियत कांग्रेस संगठन और प्रदेश में बरकरार है। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने पर वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव के बाद पहली निर्वाचित सरकार बनाने का मौका कांग्रेस को मिला। यही नहीं, वर्ष 2012 में भी सूबे के जनमत ने कांग्रेस पर भरोसा जता उसे सत्ता तक पहुंचाया।
इसके बावजूद पिछले चार सालों में उत्तराखंड में कांग्रेस लगातार अपना जनाधार खोती जा रही है। पहले वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उसे चारों खाने चित करते हुए सभी पांचों सीटों पर परचम फहराया, फिर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 70 में से 57 सीटों कब्जा कर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। इससे पहले मार्च 2016 में कांग्रेस उत्तराखंड में दो हिस्सों में बंट गई।
पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में एक साथ 10 विधायक कांग्रेस का दामन झटक भाजपा में शामिल हो गए। दरअसल, कांग्रेस में अंदरूनी मतभेद राज्य गठन के बाद से ही सतह पर झलकते रहे हैं, लेकिन इसकी चरम परिणति पार्टी में टूट के रूप में सोलह साल बाद सामने आई।
हालांकि इसकी शुरुआत वर्ष 2014 में पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज के कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने से हो चुकी थी। वर्ष 2016 में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा समेत 10 विधायक भाजपा में चले गए। रही-सही कसर पूरी हो गई दो बार के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे व तत्कालीन कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य के भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो जाने से।
अब इसे सियासत का खेल कहें या कुछ और, सूबे में कांग्रेस के अकेले खेवनहार हरीश रावत मुख्यमंत्री होते हुए दो-दो सीटों से विधानसभा चुनाव हार गए। कांग्रेस ने उत्तराखंड के 17 साल के इतिहास में सबसे शर्मनाक प्रदर्शन किया और विधानसभा में महज 11 सीटों तक सिमट गई।
तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को पद छोड़ना पड़ा और हरीश रावत भी नेपथ्य में चले गए। विधानसभा चुनाव के बाद वरिष्ठ विधायक व पूर्व मंत्री प्रीतम सिंह को प्रदेश कांग्रेस की कमान मिली। उन्होंने संगठन को मजबूती देने की कोशिश की तो पार्टी के भीतर का कलह फिर सिर उठाने लगा।
प्रीतम की ताजपोशी के बाद प्रदेश कांग्रेस में नए समीकरणों ने जन्म लिया। अब कांग्रेस दो ध्रुवीय सियासत में बंट गई। इधर, हरीश रावत और उनके कट्टर समर्थक तो उधर, प्रीतम के नेतृत्व में वे सब वरिष्ठ नेता एकजुट होने लगे, जो लंबे अरसे से हरीश रावत, सतपाल महाराज और विजय बहुगुणा की मौजूदगी में स्वयं को दूसरी-तीसरी पांत में पा रहे थे।
यह गुट पिछले कुछ समय से ज्यादा हावी और सक्रिय नजर आ रहा था लेकिन हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हरीश रावत को राष्ट्रीय महासचिव बना कांग्रेस वर्किंग कमेटी में शामिल तो किया ही, साथ ही असोम का प्रभार भी सौंप दिया। रावत के कांग्रेस में दबदबे से महत्वाकांक्षी नेताओं में बेचैनी बढ़ गई, जिसका असर कार्यक्रम में नजर आया।
Live Halchal Latest News, Updated News, Hindi News Portal