बॉल टैंपरिंग के मामले ने क्रिकेट की दुनिया में इस समय भूचाल ला दिया है. इस केस में दोषी पाए गए खिलाड़ियों को सजा सुनाई जा चुकी है. ऑस्ट्रेलिया के कप्तान ने पद छोड़ने की बात कह दी है. अब इस मामले को लेकर क्रिकेट वर्ल्ड दो हिस्सों में बंट गया है. कुछ का मानना है कि क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने स्टीव स्मिथ और डेविड वॉर्नर पर एक साल का प्रतिबंध लगाकर सही नहीं किया तो एक धड़ा ऐसा भी है, जो इसे सही बता रहा है. इस पूरे मामले के सामने आने के बाद सबसे उग्र प्रतिक्रिया स्वाभाविक रूप से इंग्लैंड के खिलाड़ियों की रही है. एशेज के कारण इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया का एक दूसरे के प्रति दुराग्रह किसी से छिपा नहीं है. खासकर तब जब अभी हाल में ऑस्ट्रेलियाई टीम ने इंग्लैंड को एशेज में 4-0 से हरा दिया हो.
इंग्लैंड के सभी खिलाड़ियों ने कंगारू खिलाड़ियों के खिलाफ जमकर हमले किए हैं. साथ ही उन्होंने कहा है कि ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी इस तरह की टैंपरिंग पहले भी करते रहे हैं. लेकिन इंग्लिश खिलाड़ी इस मामले में लगता है अपना ही इतिहास भूल गए हैं. इसके लिए हमें वक्त से थोड़ा पीछे जाना होगा. ये समय था करीब 70 का दशक. वर्ल्ड क्रिकेट में टीम इंडिया के स्पिनरों का अपना एक अलग मुकाम होता था. खासकर बिशन सिंह बेदी का. उस समय तमाम देशों के खिलाड़ी काउंटी क्रिकेट खेला करते थे. बिशन सिंह बेदी नॉर्थम्प्टनशायर की ओर से खेलते थे.
बेदी को उस समय काउंटी क्रिकेट से सिर्फ इसलिए निकाल दिया गया था, क्योंकि उन्होंने इंग्लैंड के गेंदबाज जॉन लीवर पर गेंद पर वेसलीन लगाने का आरोप लगाया था. ये आरोप तब लगाया गया था, जब इंग्लैंड की टीम भारत के दौरे पर आई थी और उसी बेसलीन के दम पर लीवर भारतीय दौरे में जमकर कामयाब रहे थे. इस आरोप के बाद बिशन सिंह बेदी को काउंटी से आउट कर दिया गया.
उस इंग्लैंड की काउंटी संचालकों को ये लगता था कि उनके खिलाड़ी कभी चीटिंग कर नहीं सकते. शायद इसीलिए बिशन सिंह बेदी की सच्ची बात पर उन्हें बाहर कर दिया गया था. जबकि बिशन सिंह बेदी काउंटी क्रिकेट में सबसे ज्यादा सफल भारतीय खिलाड़ी थे. उन्होंने काउंटी में 102 मैचों में 394 विकेट लिए थे. इतने विकेट कोई भी भारतीय खिलाड़ी नहीं ले पाया था. यही नहीं काउंटी में उनसे ज्यादा मैच सिर्फ फारुख इंजीनियर (164) ने खेले थे.