अयोध्या में राम मंदिर के लिए भूमिपूजन के मुहूर्त को लेकर महासंग्राम छिड़ा हुआ है. प्राचीन ज्योतिषीय ग्रन्थों के तरकश से उद्धरण, श्लोक, प्रमाण और सुयोग के तीर निकाले जा रहे हैं. जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती तक भीष्म पितामह की तरह इस मुहूर्त चिंतामणि के महारथी सेनापति बनकर विरोधी सेना का नेतृत्व कर रहे हैं.
काशी हो या प्रयागराज, दिल्ली हो या जयपुर, हर तरफ ज्योतिषी अपने-अपने ग्रंथ खोलकर पांच अगस्त की दोपहर के ग्रह गोचर पर अपनी गणना का गणित और फलित आजमा रहे हैं. हमारे यहां गणना को लेकर विद्वानों में अक्सर मतभेद होते हैं, क्योंकि हरेक का मत और गणना की विधि अलग-अलग है. हालांकि शास्त्र की मान्यता निर्विवाद है. सभी कहते हैं कि ज्योतिषी गलत हो सकता है, लेकिन ज्योतिष नहीं. शास्त्री अलग व्याख्या कर सकता है, लेकिन शास्त्र शाश्वत हैं.
ज्योतिषपीठ और शारदा पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने तो सूर्य के दक्षिणायन में होने की सूरत में इस पूरे मुहूर्त को परम अशुभ घोषित कर दिया. दक्षिणायन के साथ भाद्रपद मास, कृष्णपक्ष और उसकी द्वितीया तिथि हैं, जो देवालय और गृह निर्माण आरंभ करने की दृष्टि से कदापि शुभ नहीं है.
अगर दक्षिणायन आधार है, तो 9 नवम्बर 1989 को जब दलित नेता कामेश्वर चौपाल के हाथों मन्दिर का शिलान्यास विवादित भूमि पर हुआ था, तब भी तो सूर्य दक्षिणायन में ही थे. अब बात करें दूसरे पहलुओं की, तो ज्योतिषाचार्य राजीव नारायण के विचार से मुहूर्त अशुभ है, क्योंकि उस समय पंचक यानी पचखा है और उस मुहूर्त में राहुकाल भी है. ये योग किसी भी मांगलिक कार्य के श्रीगणेश को निषिद्ध करते हैं.
अभिजित मुहूर्त को लेकर भी विद्वानों में विरोधाभास है. शास्त्र कहते हैं कि बुधवार को छोड़कर सभी दिन पूर्वाह्न लगभग साढ़े 11 बजे से दोपहर साढ़े 12 बजे के बीच लगभग 48 मिनट का अभिजित मूहूर्त आता है. ये वही मुहूर्त है, जिसमें रामलला खुद अयोध्या की पावन धरा पर प्रकट हुए थे, जहां भूमिपूजन के बाद मन्दिर का गर्भगृह बनेगा, लेकिन पांच अगस्त को बुधवार है. उस दिन अभिजित मूहूर्त नहीं होने की बात शास्त्र कहते हैं.
इस विचार के विपरीत ज्योतिषशास्त्र के अध्येता जतिंदर शर्मा का कहना है कि पंचक तो अक्सर लगते रहते हैं और राहुकाल का विचार भी दक्षिण में लोग ज़्यादा करते हैं, लेकिन उत्तर में चन्द्रमा और भद्रा का निवास और दिशा शूल का विचार ज़्यादा है.
लेकिन दोपहर 12 से डेढ़ बजे के आसपास का चौघड़िया शुद्ध और स्पष्ट है. कर्क राशि में सूर्य है, पांचवे घर में चन्द्रमा, तुला लग्न में है और नवम स्थान में राहु है. मुहूर्त निर्णय के लिए तय किए गए 16 वर्गों में से 15 तो पांच अगस्त की दोपहर शुभ फलदाई हैं.
मुहूर्त विचार के लिए सर्वमान्य ग्रन्थ ‘निर्णय सिंधु’ के मुताबिक भी भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष में भूमिपूजन के लिए कोई निषेध नहीं है. जतिंदर शर्मा के मुताबिक शास्त्रों का वचन है कि राजा स्वयं धार्मिक कार्य करे तो मुहूर्त नहीं देखे जाते. वो शुभ ही फलदाई होते हैं. तब तो यहां भी देश के राजा यानी प्रधानमंत्री स्वयं अनुष्ठान कर रहे हैं. इस तरह मुहूर्त मायने नहीं रखता है.
सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच लगातार घूम रहे ग्रहों और पृथ्वी की चाल के तालमेल से शुभ ग्रहों से आने वाली किरणों या फिर ऊर्जा तरंगों के संगम से करीब तीस योग बनते हैं, जिन्हें हम मुहूर्त कहते हैं. मुहूर्त चर, स्थिर, लाभ और शुभ श्रेणियों में माने गए हैं. मुहूर्त निर्णय के लिए हमारे दैवज्ञ ऋषियों ने मुहूर्त चिंतामणि, निर्णय सिंधु, भाव रत्नाकर जैसे विशद ग्रंथ लिखे. मुहूर्त विचार में ज्योतिषी सात नजरिए से समय की परख करते हैं, जिनमें अयन, मास, तिथि, नक्षत्र, योग आदि शामिल हैं.
जयपुर और दिल्ली में राजनेताओं और नौकरशाहों को ज्योतिषीय परामर्श देने वाले पण्डित शिव राम शर्मा का मानना है कि मुहूर्त पर विवाद बेमानी है. ये रामलला के मन्दिर का न तो नवनिर्माण है और ना ही इसमें विराजने वाले अधिष्ठाता मुख्य देवता की प्राणप्रतिष्ठा होनी है. ना ही नई जगह गर्भगृह बनना है और ना ही जगह नई है. ये तो रामलला के मन्दिर का पुनर्निर्माण है. वही प्राणप्रतिष्ठित विग्रह है और वही गर्भगृह है. ऐसे में शुभ चौघड़िए में भूमिपूजन करने में कोई आपत्ति नहीं है.
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी स्वामी अविमुक्तश्वरानंद के मुताबिक भी अभिजित मुहूर्त कहकर भी इसे जबरन शुभ मुहूर्त मानना सही नहीं है. मुहूर्त चिंतामणि के विवाह प्रकरण में बुधवार को अभिजित निषिद्ध है. कर्क के सूर्य में रहने तक सिर्फ श्रवण मास में शिलान्यास हो सकता है, भाद्रपद में नहीं. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के अनुसार चातुर्मास में शुभ मुहूर्त का संयोग बन ही नहीं रहा है.
वहीं काशी विद्वत परिषद के मंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी के मुताबिक तो हरिशयनी एकादशी से देवोत्थान एकादशी के बीच विवाह, देवालय, गृह निर्माण जैसे शुभ और स्थायी कार्य करना निषेध माना गया है, लेकिन भूमि या वास्तु देव पूजन आदि धार्मिक कार्यों पर रोक नहीं है. और वो भूमि पूजन जो स्वयं भगवान राम के मन्दिर का है, ऐसे में मुहूर्त को लेकर कोई खास महत्व नहीं है.
मिथिलांचल के पंडित शिवदत्त शर्मा के मुताबिक जब राजा दशरथ ने ज्येष्ठ युवराज रामचन्द्र के राज्याभिषेक का मूहूर्त शोधन के लिए अपने राजकुलगुरु महर्षि वशिष्ठ से निवेदन किया तो उनका भी यही कहना था कि जब विष्णु के अवतार श्री राम का राजतिलक होना है, तो कोई भी समय मुहूर्त बन जाएगा यानी इन सारी दलीलों के बाद तो यही माना जाए कि होइहैं वही जो राम रचि राखा, को करि तरक बढ़ावहिं साखा.
हमारे शास्त्र भी तो कहते हैं कि मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना: यानी सबकी सोच, समझ और विवेक बुद्धि अलग-अलग होती है. इस तरह कहा जा सकता है कि तत्व को देखने परखने और समझने की दृष्टि भिन्न होती है. वहीं ये भी कहा गया कि वादे-वादे जायते तत्व बोध: यानी वाद विवाद और चर्चा शास्त्रार्थ से भी मंथन के बाद असल ज्ञान का अमृत निकलता है.