पहले बस्तर के अंदरूनी गांवों में राष्ट्रीय पर्व पर तिरंगे की बजाय नक्सलियों का काला झंडा फहरता था, लेकिन दो-तीन सालों में यहां की फिजा बदली है। माओवादी विचारधारा पर ग्रामीणों के हौसले भारी पड़ रहे हैं। ऐसे गांवों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जहां अब काला झंडा नहीं, तिरंगा फहराया जाता है। बस्तर संभाग के उन सैकड़ों गांवों में, जहां पहले नक्सलियों की तूती बोलती थी, अब बदलाव नजर आ रहा है। बीजापुर, दंतेवाड़ा, सुकमा, बस्तर, कोंडागांव, नारायणपुर व कांकेर जिले के गांवों में ग्रामीण अब नक्सलियों के फरमान को धता बता राष्ट्रीय पर्व पर तिरंगा फहराने लगे हैं।
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पिछले दो-तीन साल से इन गांवों के स्कूलों में भी ध्वजारोहण होने लगा है। इसमें ग्रामीण भी शामिल होते हैं। कुछ गांवों में प्रभातफेरी भी निकाली जाने लगी है। बस्तर जिले के ओडिशा से लगे चांदामेटा व मुंडागढ़ में 2017 में प्रतिबंधित संगठन सीपीआइ माओवादी ने स्वतंत्रता दिवस पर ग्रामीणों को तिरंगा न फहराने की चेतावनी दी थी। इसके बाद इस इलाके में फोर्स ने गश्त व सर्चिंग अभियान चलाकर लोगों का मनोबल बढ़ाया। परिणाम यह हुआ कि नक्सली धमकी की परवाह न करते हुए ग्रामीणों ने इन गांवों में ध्वजारोहण किया।