चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि लोकतंत्र के लिए इससे बुरा क्या हो सकता है अगर किसी राजनीतिक दल का प्रमुख अपराधी हो। और दल का प्रमुख होने के नाते वह यह तय करें कि उसकी पार्टी से कौन-कौन चुनाव लड़े।
पीठ ने कहा कि अपराधी का यह तय करना किसे वोट देना चाहिए, यह तो लोकतंत्र केमूल सिद्धांत के विपरीत है। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की उस याचिका पर सुनवाई केदौरान की जिसमें कहा गया है कि दोषी व्यक्तियों पर न सिर्फ चुनाव लड़ने पर पाबंदी होनी चाहिए बल्कि उसे राजनीतिक दल बनाने और किसी दल का पदाधिकारी बनने पर भी पाबंदी लगाई जानी चाहिए।
सोमवार को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने मौखिक रूप से कहा ‘आखिर आपराधिक मामले में दोषी व्यक्ति किसी राजनीतिक दल का पदाधिकारी कैसे बन सकता है और वह यह कैसे तय कर सकता है उसकी पार्टी से किसे चुनाव लड़ना चाहिए? यह अपने उस फैसले के खिलाफ है जिसमें चुनाव की निर्मलता के लिए राजनीतिक में भ्रष्टाचार से मुक्त रखने की बात कही गई है।’
पीठ ने कहा कि इसका मतलब यह हुआ कि जो काम आप खुद न कर सके उस काम को अपने कुछ एजेंट के द्वारा अंजाम दें। पीठ ने कहा कि लोग कुछ लोगों का समूह बनाकर अस्पताल या स्कूल आदि तो खोल सकते हैं लेकिन यह बात शासन प्रणाली पर यह लागू नहीं होती।
केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने पीठ से आग्रह किया कि सरकार को इस संबंध में अपना जवाब दाखिल करने केलिए और वक्त चाहिए। जिसके बाद पीठ ने सुनवाई दो हफ्ते के लिए टाल दी।
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