कोरोना महामारी और महाराष्ट्र में सियासी संकट के बीच मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सहयोगी दलों की आज बैठक बुलाई है। यह बैठक शिवसेना अध्यक्ष ठाकरे के बंगले ‘वर्षा’ में होगी।
दरअसल, महाराष्ट्र सरकार के अहम सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार और भाजपा नेता नारायण राणे ने 25 मई को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से अलग-अलग मुलाकात की थी, जिसके बाद ही स्थानीय राजनीतिक हलचल तेज हो गई है।
राज्य में कोरोना वायरस के बढ़ते प्रसार को देखते हुए भाजपा ने राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की है। इस बैठक को अब पूरे घटनाक्रम से जोड़कर देखा जा रहा है।
महाराष्ट्र के इस सियासी ड्रामे का असर शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय पर भी देखने को मिला। सामना में लिखा गया कि राजभवन में पिछले कुछ दिनों से लोगों का आना-जाना लगा है ऐसे में राज्यपाल का क्या दोष? वो तो सीधे-साधे, सरल और संघ के विचारों का झंडा पूरे जीवन अपने कंधों पर रखकर चलने वाले संत महात्मा हैं।
मीडिया पर भी निशाना साधा गया है, संपादकीय में आगे लिखा गया है कि भक्तगण मीडिया राज्य की राजनीति में कुछ हलचल है, ऐसा कह रहे हैं। शरद पवार के मातोश्री जाने पर इतना हंगामा क्यों? वो पहली बार तो वहां नहीं गए और सरकार में कोई भी अस्थिरता नहीं है।
पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि, ‘राज्य सरकार अभी भी केंद्र की ओर से उपलब्ध कराई गई आर्थिक मदद भी खर्च नहीं कर पाई है।
मैं यह समझ ही नहीं पा रहा हूं कि राज्य सरकार की प्राथमिकता क्या है, आज राज्य को सकारात्मक नेतृत्व चाहिए। मैं आशा करता हूं कि उद्धव ठाकरे उचित फैसले लेंगे।
कोविड-19 की गंभीर स्थिति को देखते हुए हमारी राज्य की सरकार को बदलने में रुचि नहीं है। हम कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ रहे हैं और इसके लिए राज्य सरकार पर दबाव बनाना चाहते हैं। हम सरकार को गिराने की कोशिश नहीं कर रहे हैं, यह सरकार अपने बोझ से ही गिर जाएगी।’
शरद पवार के राज्यपाल से मुलाकात पर एनसीपी ने स्पष्ट किया है कि यह कोई राजनीतिक मुलाकात नहीं थी और न ही किन्हीं मुद्दों पर चर्चा हुई।
एनसीपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि यह मात्र शिष्टाचार भेंट थी। राज्यपाल के आमंत्रण पर यह मुलाकात हुई और बातचीत में कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं रहा।