जब से यह खबर सामने आई है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपना भाषण तैयार करने की टीम में भारतीय मूल के विनय रेड्डी को शामिल किया है, तब से लोगों का ध्यान स्पीच लेखन की ओर गया है। दरअसल चाहे राजनेता हों या फिर कोई सेलिब्रिटी, ये सभी अपने साथ स्पीच लेखक रखते हैं। यहां महत्वपूर्ण यह है कि स्पीच लेखक कितना भी ज्ञानी क्यों न हो, यदि कोई नेता उसे प्रभावशाली तरीके से पेश नहीं कर सकता तो उसे कोई सुनने के लिए भी तैयार नहीं होता। नेता जब सार्वजनिक स्थानों पर नागरिकों के सामने भाषण करते हैं, तब जनता उन्हें ज्ञानी समझती है। उन्हें ऐसा लगता है कि हमारे इस नेता को हर क्षेत्र की काफी जानकारी है। लोग उनका भाषण सुनकर उनके लिए एक अलग ही छवि अपने मस्तिष्क में बनाते हैं।
हमारे देश में अधिकतर स्पीच लेखक राजनीतिक पार्टयिों से जुड़े होते हैं। जो पार्टी की गाइडलाइन के अनुसार भाषण तैयार करते हैं। कुछ नेता भाषण केवल पढ़ देते हैं। जैसा कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह करते थे। कुछ नेता ऐसे भी होते हैं जो समय के साथ-साथ चलते हुए नागरिकों के मूड को देखते हुए अपनी बात को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण लिखने वालों में भी देश के कई बुद्धिजीवी शामिल हैं। किस देश में किस विषय पर क्या बोलना है? पहले उसका अध्ययन किया जाता है। उस देश का इतिहास और उसके भारत से संबंध कैसे रहे हैं? इसके अलावा संबंधों में कोई यादगार घटना या प्रसंग को शामिल किया जाता है। इस तरह की सारी जानकारी स्पीच लेखक को दी जाती है, जिससे वह इन तथ्यों को शामिल करते हुए उसे प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है। प्रधानमंत्री मोदी अपनी बात को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण की हमेशा प्रशंसा की जाती रही है। वे हाजिर जवाबी थे, इसलिए उनकी स्पीच भी गंभीर होती थी, पर बीच-बीच में वे हंसी-मजाक के प्रसंग भी ले आते थे। उन्हें सुनना लोगों को अच्छा लगता था। कुछ नेताओं की स्पीच नीरस हुआ करती है। उन्हें सुनना बोङिाल लगता है।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जब अपनी विक्ट्री स्पीच दी थी, तब उन्होंने ‘यस वी कैन’ कहकर लोगों में एक नया जोश पैदा किया था। उनके इस भाषण के बाद ‘यस वी केन’ पूरी दुनिया में छा गया था। स्पीच सामने आते ही इसको लिखने वाले जोनाथन एडवर्ड फेवरू अमेरिका के 100 रसूखदार लोगों की सूची में शामिल हो गए थे। जाहिर है नेताओं के लिए कई लोग परदे के पीछे से भाषण लिखते हैं। जिन्हें कोई नहीं जानता, पर कई बार शब्दों के चयन में गड़बड़ी होने के कारण भाषण विवादास्पद भी हो जाते हैं। भारतीय राजनीति में इसके उदाहरण बार-बार देखने में आए हैं।