यूं तो शिर्डी के सांईं बाबा के सैकड़ों चमत्कार हैं लेकिन हम यहां बता रहे हैं मात्र 10 ही चमत्कार। हो सकता है कि हमसे कुछ महत्वपूर्ण चमत्कार या बाबा की कृपा के किस्से छूट गए हों।
पहली कहानी
सांईं बाबा प्रतिदिन मस्जिद में दीया जलाते थे। इसके लिए वे बनियों से तेल मांगने जाते थे। लेकिन एक दिन बनियों ने बाबा से कह दिया कि बाबा हमारे पास तेल नहीं है। तब बाबा वहां से चुपचाप चले गए और मस्जिद जाकर उन्होंने दीये में तेल की जगह पानी डाला और दीया जल पड़ा और यह बात चारों तरफ फैल गई। तब वहां के बनिये उनके सामने आए और उनसे मांफी मांगी तो बाबा ने उन्हें माफ कर दिया और उनसे कहा कि ‘अब कभी झूठ मत बोलना।’
दूसरी कहानी
एक बार बाबा का भक्त बहुत दूर से अपनी पत्नी को लेकर बाबा के दर्शन के लिए आया और जब वह जाने लगा तो जोरों से बारिश होने लगी। तब उनका भक्त परेशान होने लगा तब बाबा ने उनकी परेशानी को देखकर कहा, हे अल्लाह! बारिश को रोक दो, मेरे बच्चों को घर जाना है और तत्काल ही बारिश रुक गई।
अन्य चमत्कारों के लिए आगे क्लिक करें…
तीसरी कहानी
एक बार गांव के एक व्यक्ति की एक बेटी अचानक खेलते हुए वहां के कुएं में गिर गई। लोगों को लगा कि वह डूब रही है। सब वहां दौड़कर गए और देखा कि वह हवा में लटकी हुई है और कोई अदृश्य शक्ति उसे पकड़े हुए है। वे और कोई नहीं बाबा ही थे, क्योंकि वह बच्ची कहती थी कि मैं बाबा की बहन हूं। अब लोगों को कोई और स्पष्टीकरण की जरूरत नहीं थी।
चौथी कहानी
म्हालसापति के यहां जब पुत्र हुआ तो वे उसे बाबा के पास लेकर आए और उसका नामकरण करने के लिए कहने लगे। बाबा ने उस पुत्र को देखकर म्हालसापति से कहा कि इसके साथ अधिक आसक्ति मत रखो। सिर्फ 25 वर्ष तक ही इसका ध्यान रखो, इतना ही बहुत है। ये बात म्हालसापति को तब समझ आई, जब उनके पुत्र का 25 वर्ष की आयु में देहांत हो गया। 1922 में भगत म्हालसापति का देहांत हो गया।
पांचवीं कहानी
एक दिन बाबा ने 3 दिन के लिए अपने शरीर को छोड़ने से पहले म्हालसापति से कहा कि यदि मैं 3 दिन में वापस लौटूं नहीं तो मेरे शरीर को अमुक जगह पर दफना देना। 3 दिन तक तुम्हें मेरे शरीर की रक्षा करना होगी। धीरे-धीरे बाबा की सांस बंद हो गई और शरीर की हलचल भी बंद हो गई। सभी लोगों में खबर फैल गई कि बाबा का देहांत हो गया है। डॉक्टर ने भी जांच करके मान लिया कि बाबा शांत हो गए हैं।
लेकिन म्हालसापति ने सभी को बाबा से दूर रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि 3 दिन तक इनके शरीर की रक्षा की जिम्मेदारी मेरी है। गांव में इसको लेकर विवाद हो गया लेकिन म्हालसापति ने बाबा के सिर को अपनी गोद में रखकर 3 दिन तक जागरण किया। किसी को बाबा के पावन शरीर को हाथ भी नहीं लगाने दिया। 3 दिन बाद जब बाबा ने वापस शरीर धारण किया, तो जैसे चमत्कार हो गया। चारों ओर हर्ष व्याप्त हो गया।
छठी कहानी
मुंबई के रहने वाले काका महाजनी का विचार शिर्डी में एक सप्ताह ठहरने का था। पहले दिन दर्शन करने के बाद बाबा ने उनसे पूछा, ‘तुम कब वापस जाओगे?’ उन्हें बाबा के इस प्रश्न पर आश्चर्य-सा हुआ। तब उन्होंने कहा, ‘जब आप आज्ञा दें तब।’ बाबा ने कहा, ‘कल ही।’ यह सुनकर काका महाजनी ने तुरंत शिर्डी से प्रस्थान कर लिया। जब वे मुंबई अपने ऑफिस में पहुंचे तो उन्होंने अपने सेठ को अतिउत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा करते पाया, क्योंकि मुनीम के अचानक ही अस्वस्थ हो जाने के कारण काका की उपस्थिति अनिवार्य हो गई थी। सेठ ने काका को बुलाने के लिए पत्र लिखा था, जो उनके पते पर वापस लौट आया।
सातवीं कहानी
बाबा का जब हाथ जल गया था, तो भागोजी शिंदे ही उनके हाथ पर घी मलने और पट्टी लगाने का कार्य करते थे। भागोजी शिंदे कुष्ठ रोगी थे। चांदोरकरजी बाबा के लिए मुंबई से एक डॉक्टर परमानंद को इलाज के लिए लेकर आए थे लेकिन बाबा ने इंकार कर दिया और वे शिंदे के हाथों घी लगाकर ही ठीक हो गए।
आठवीं कहानी
धुमाल एक मुकदमे के संबंध में निफाड़ के न्यायालय को जा रहे थे। मार्ग में वे शिर्डी उतरे। उन्होंने बाबा के दर्शन किए और तत्काल ही निफाड़ को प्रस्थान करने लगे, परंतु बाबा की स्वीकृति प्राप्त न हुई। उन्होंने उन्हें शिर्डी में 1 सप्ताह और रोक लिया। इसी बीच में निफाड़ के न्यायाधीश उदरपीड़ा से ग्रस्त हो गए। इस कारण उनका मुकदमा किसी अगले दिन के लिए बढ़ाया गया। 1 सप्ताह बाद भाऊसाहेब को लौटने की अनुमति मिली। इस मामले की सुनवाई कई महीनों तक और 4 न्यायाधीशों के पास हुई। फलस्वरूप धुमाल ने मुकदमे में सफलता प्राप्त की और उनका मुवक्किल मामले में बरी हो गया।
नौवीं कहानी
नासिक के प्रसिद्ध ज्योतिष, वेदज्ञ, 6 शास्त्रों सहित सामुद्रिक शास्त्र में भी पारंगत मुले शास्त्री एक बार नागपुर के धनपति सांईं भक्त बापूसाहेब बूटी के साथ शिर्डी पधारे। हस्तरेखा विशारद होने के नाते मुले शास्त्री ने बाबा के हाथ की परीक्षा करने की प्रार्थना की, परंतु बाबा ने उनकी प्रार्थना पर कोई ध्यान न देकर उन्हें 4 केले दिए और इसके बाद सब लोग वाड़े को लौट आए। वाड़े से लौटने के बाद में आरती के समय बापूसाहेब से बाबा ने कहा कि वो मुले से कुछ दक्षिणा ले आओ। मुले जब दक्षिणा देने के लिए गए तो वे मस्जिद के बाहर ही खड़े रहकर बाबा पर पुष्प फेंकने लगे। लेकिन जब उन्होंने ध्यान से देखा तो उन्हें बाबा की जगह उनके कैलासवासी गुरु घोलप स्वामी दिखाई देने लगे। वे उनकी स्तुति करने लगे और जब आंख खोली तो उन्हें बाबा को दक्षिणा मांगते हुए देखा। ये चमत्कार देखकर उनका संशय दूर हो गया।
दसवीं कहानी
एक डॉक्टर अपने सांईंभक्त मित्र के साथ शिर्डी पधारे। उन्होंने मित्र से कहा कि तुम ही दर्शन करने जाओ, मैं नहीं जाऊंगा, क्योंकि मैं श्रीराम के अलावा किसी के समक्ष नहीं झुकता। खासकर किसी यवन के समक्ष और वह भी मस्जिद में तो कतई नहीं। मित्र के कहा कि तुम्हें वहां कोई झुकने या नमन करने को कोई बाध्य नहीं करेगा। अत: मेरे साथ चलो, आनंद रहेगा। वे शिर्डी पहुंचे और बाबा के दर्शन को गए। परंतु डॉक्टर को ही सबसे आगे जाते देख और बाबा की प्रथम चरण वंदना करते देख सबको बड़ा विस्मय हुआ। लोगों ने डॉक्टर से पूछा कि क्या हुआ? डॉक्टर ने बतलाया कि बाबा के स्थान पर उन्हें अपने प्रिय ईष्टदेव श्रीराम के दर्शन हुए और इसलिए उन्होंने नमस्कार किया। जब वे ऐसा कह ही रहे थे, तभी उन्हें सांईंबाबा का रूप पुन: दिखने लगा। यह देख वे आश्चर्यचकित होकर बोले कि ‘क्या यह स्वप्न है? ये यवन कैसे हो सकते हैं? अरे! अरे! ये तो पूर्ण योग-अवतार हैं।’ बाद में वे डॉक्टर वहीं रुके और उन्होंने परम अनुभूति का अनुभव किया।