सरकार ने बजट में लोकलुभावन वादों से किया परहेज

एक बजट आज से चार महीने पहले आया था जिसे चुनावी माना जा रहा था। कहा जा रहा था कि चुनाव जीतने के लिए सरकार ने पासा फेंका है। हालांकि, उस वक्त भी विपक्ष और खासकर कांग्रेस बहुत खुश थी कि उसकी न्यूनतम आय योजना के मुकाबले केंद्र सरकार के बजट में कोई बहुत बड़ा लोकलुभावन वादा नहीं किया गया था।

जनता ने लोकलुभावन वादों के ऊपर एक ऐसे बजट को अहमियत दी जो लंबी रेस का घोड़ा साबित हो। मोदी सरकार का एक बजट शुक्रवार को आया जिसने पुरानी सोच को और आगे बढ़ाते हुए यह संदेश दिया है कि चार माह पूर्व पेश बजट भी सिर्फ चुनावी नहीं बल्कि देश की जरूरत को समझते हुए व्यावहारिक बजट था। यह संदेश भी साफ है कि सरकार को जनता पर भी भरोसा है और खुद पर भी। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह कहते हुए इसका इजहार भी कर दिया, ‘यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट लेकर भी चिराग जलता है।’

पांच साल की सत्ता के बाद मोदी सरकार-2 के लिए शायद यही मूल मंत्र है। वैसे इतिहास गवाह है कि स्वतंत्रता के 70 साल तक भारत की बड़ी आबादी को आवास, शौचालय और पानी जैसी मूलभूत जरूरतों के लिए रोजाना जूझना पड़ता था तो उसका सबसे बड़ा कारण था निष्पादन का न होना। घोषणाएं बड़ी पर क्रियान्वयन नदारद। कांग्रेस से इतर भी लोगों के लिए यह सोचने का वक्त है कि लोकलुभावन ‘न्याय’ के जरिये हर गरीब को 72 हजार रुपये देने की घोषणा परवान शायद इसीलिए नहीं चढ़ सकी क्योंकि उनकी सरकारों में क्रियान्वयन हमेशा बड़े सवालों के घेरे में रहा था।

इसके विपरीत वर्तमान सरकार की सोच लगातार इससे जुदा रही है। बजट में भी इसी की झलक दिखती है। बड़ी घोषणाओं का न होना कुछ लोगों के लिए निराशाजनक हो सकता है, लेकिन यह विश्वास भी पैदा करेगा कि जो बातें कही गई हैं वे पूरी होंगी। पिछले बजट में भारत निर्माण की एक तस्वीर पेश की गई थी, सरकार उसी पर ठोस कदम बढ़ाना चाहती है। अगले तीन साल में जब स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होंगे तो नए भारत के निर्माण का भी लक्ष्य रखा गया है।

जिस तरह अगले एक दशक के लिए 10 सूत्र रखे गए हैं और अंतिम व्यक्ति तक विकास की निर्बाध धारा पहुंचाने के लिए आवास, स्वच्छता, पेयजल, बिजली आदि की आपूर्ति सुनिश्चित करने का प्रयास हुआ है, उसे देखते हुए मानना पड़ेगा कि एक ईमानदार कोशिश हुई है। सही मायने में यह बजट गांव, शहर, गरीब, अमीर, युवा, महिला सबको अवसर प्रदान करता दिखता है- देश निर्माण में सहभागिता के लिए।ऐसे माहौल में जब देश की बड़ी आबादी पर्यावरण का दंश झेल रही है तो बजट में सरकार की ओर पर्यावरण स्वच्छता को लेकर दिखता प्रयास सराहनीय भी है और सरकार की इस मंशा को भी उजागर करता है कि वह लंबी सोच के साथ काम करेगी।

मोदी सरकार की एक खासियत है और धीरे-धीरे यह स्थापित होता जा रहा है कि वह घिसी पिटी परंपराओं से दूर चलती है। ध्यान रहे कि पहली बार सत्ता में आने के बाद ही सरकार ने रेल बजट में नई ट्रेनों की घोषणा को अलविदा कह दिया था। बाद में रेल बजट को भी आम बजट का हिस्सा बना दिया गया। राजनीतिक हथियार बने रेल बजट को मोदी सरकार के इस कदम ने कुंद कर दिया था।

शुक्रवार को पेश बजट के जरिये सरकार ने फिर संदेश दिया है कि वक्त सिर्फ घोषणाओं का नहीं, निष्पादन का है। यह वक्त है सही व्यक्ति और समूह पर केंद्रित होकर काम करने का। अंतिम व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चित करने से लेकर देश के गौरव को पुन:स्थापित करने का। इस बजट ने इन्हें साधने का प्रयास किया है। हां, यह जरूर है कि सरकार का कार्यकाल भले ही पांच साल का है, लेकिन इसकी पूरी समीक्षा अगले तीन साल में होगी। आंका जाएगा कि देश की अपेक्षा पर मोदी सरकार कितना खरा उतरी है।

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