
जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर ग्लेशियरों पर पड़ रहा है। एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि समुद्र में मौजूद ग्लेशियर पानी के अंदर भी उम्मीद से कई गुना तेजी से पिघल रहे हैं। पानी के भीतर हिमखंडों में हो रहे बदलावों को मापने के लिए शोधकर्ताओं ने एक नई विधि का प्रयोग किया, जो समुद्र के स्तर में हो रहे बदलावों के पुराने अनुमानों को धता पता सकता है। साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए अध्ययन में बताया गया है कि नई विधि के आधार पर जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के जल स्तर में वृद्धि का पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि अध्ययन से पता चलता है कि हिम खंडों के पिघलने की दर का पता करने के लिए वर्तमान में जो प्रचलित सिद्धांत हैं वह इसकी दर काफी कम आंकते हैं, लेकिन नए अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि समुद्र और ग्लेशियर के बीच एक मजबूत संबंध पाया जाता है, जिससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि महासागर ग्लेशियरों को कैसे प्रभावित कर रहे हैं। साथ ही यह ग्लेशियरों के संबंध में हमारी समझ को और बेहतर कर सकते हैं। शोधकर्ताओं ने 2016-2018 से अलास्का के समुद्री ग्लेशियर (लेकोंटे) के पानी के भीतर के पिघलने का अध्ययन किया। शोधकर्ताओं की टीम ने ग्लेशियर के पानी को स्कैन करने के लिए सोनार का उपयोग किया। सोनार एक तकनीक है, जो पानी के भीतर या सतह पर मौजूद वस्तुओं का पता करने के लिए ध्वनि तरंगों का उपयोग करती है।
अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि पानी के भीतर ग्लेशियरों के पिघलने की दर पिछले अनुमानों से कई गुना अधिक है और गर्मियों में यह दर और बढ़ जाती है। जैक्सन ने कहा इस अध्ययन के परिणाम दुनिया भर में समुद्र के स्तर में वृद्धि के अनुमानों को बेहतर बनाने में मदद करेंगे।
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