सपा-बसपा गठबन्धन से बाहर कांग्रेस छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश की तर्ज पर अकेले सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की अपनी तैयारी और तेज करेगी। अलबत्ता पार्टी अब दूसरे छोटे दलों के लिए अपने द्वार भी खोल सकती है। हालांकि कांग्रेस नेताओं की ओर से सपा-बसपा गठबन्धन को लेकर अभी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है लेकिन पार्टी नेताओं का मानना है कि सपा-बसपा का लोकसभा चुनाव के गठबन्धन में कांग्रेस को शामिल न करना पार्टी के लिए कोई आश्चर्यजनक फैसला नहीं है। पार्टी को लंबे समय से इसका अंदेशा था और इसीलिए पार्टी अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही थी।

करीब साल भर पहले राहुल गांधी के पार्टी की बागडोर संभालने के बाद ही यह तय हो गया था कि पार्टी नेता गठबन्धन को लेकर किसी तरह की बयानबाजी से दूर रहेंगे। उसी समय पार्टी के ढाई दर्जन से अधिक कद्दावर नेताओं को लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी करने के लिए भी कह दिया गया था।
तीन राज्यों में जीत के बाद हौंसले बुलन्द
छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने के बावजूद सरकार बनाने में सफल रहने के बाद प्रदेश में भी पार्टी कार्यकर्ताओं के हौंसले बुलन्द हैं। पार्टी का एक बड़ा वर्ग नेतृत्व से लगातार अकेले सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के दबाव बना रहा है। इस वर्ग का मानना है कि सभी सीटों पर चुनाव लड़ कर ही पार्टी एक बार फिर प्रदेश में खोया हुआ स्थान पा सकती है। 2009 का लोकसभा चुनाव उदाहरण है जब पार्टी ने 21 सीट जीती थीं। एक अन्य सीट उपचुनाव में जीत कर यह संख्या 22 पर पहुंच गई थी।
छोटे दल हैं सम्पर्क में
कांग्रेस के संपर्क में कई छोटे दल हैं। प्रसपा, भीम आर्मी, रालोद समेत कई अन्य दलों के नेताओं की कांग्रेस नेताओं से मुलाकात की खबर अक्सर चर्चा में रहती है। पार्टी इन दलों से बातचीत आगे बढ़ा सकती है।
कांग्रेस भी छोड़ती है अखिलेश, मुलायम के लिए सीट
सपा की तरह कांग्रेस भी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और संरक्षक मुलायम सिंह यादव के लिए सीट छोड़ती रही है।
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