उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने सोमवार को ‘उत्तर प्रदेश निजी विश्वविद्यालय अध्यादेश 2019’ को मंजूरी दे दी है। साथ ही इसके स्थान पर विधेयक के ड्राफ्ट पर विभागीय मंत्री के रूप में उप मुख्यमंत्री का अनुमोदन प्राप्त कर उसे राज्य विधान मंडल में पारित कराए जाने के प्रस्ताव पर भी अपनी सहमति दे दी है। इस विधेयक में निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना एवं उनके संचालन से संबंधित प्रावधान किए गए हैं। इसमें विभिन्न संकायों में 75 प्रतिशत शिक्षकों की नियमित नियुक्ति अनिवार्य की गई है। प्रदेश में इस समय 27 निजी विश्वविद्यालय हैं जो अलग-अलग अधिनियमों द्वारा स्थापित एवं संचालित हैं। अलग-अलग विश्वविद्यालयों के अधिनियमों में अलग-अलग प्राविधान हैं। अब एक अधिनियम बन जाने से इनमें एकरूपता स्थापित होगी। प्रदेश सरकार इन विश्वविद्यालयों के लिए स्थायी निधि बनाएगी, जिसके लिए पांच करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
होगा साझा शैक्षिक कैलेंडर-
नए अधिनियम में न्यूनतम 75 प्रतिशत शिक्षकों की नियमित नियुक्ति विभिन्न/संकायों में किए जाने का प्राविधान किया गया है। पुस्तकालयों में पुस्तकों की उपलब्धता के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाए जाने के लिए ‘आन लाइन रिर्सोसेस’ का सृजन भी करना होगा। सभी निजी विश्वविद्यालयों में साझा शैक्षिक कैलेंडर समान रूप से लागू किया जाएगा। इससे प्रवेश एवं परीक्षाएं एक समय पर होंगी तथा परीक्षा परिणाम एक ही समय पर घोषत होगा। मेडिकल, इंजीनियरिंग व विधि आदि का एकेडेमिक कैलेण्डर नियामक संस्थाओं के अनुसार होगा।
सार्वजनिक करना होगा शुल्क-
इसमें छात्रों के प्रवेश की प्रक्रिया, प्रवेश का प्रारम्भ एवं अंतिम तिथि तथा विभिन्न पाठ्यक्रमों में निर्धारित शुल्क को पब्लिक डोमेन में प्रदर्शित करने का प्राविधान रखा गया है। विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए मूल्यांकन समिति का स्वरूप भी स्पष्ट कर दिया गया है। इसमें 6 सदस्यों को शामिल किया गया है। विश्वविद्यालय की शक्तियों के तहत मानद उपाधि दिए जाने के पहले राज्य सरकार के अनुमोदन का प्राविधान जोड़ा गया है। कुलपति की नियुक्ति शासी निकाय के परामर्श से कुलाधिपति या अध्यक्ष द्वारा की जाएगी। इसमें कुलसचिव के कार्यों का भी स्पष्ट उल्लेख किया गया है। साथ ही ‘कार्य परिषद’ की बैठक बुलाए जाने के संबंध में न्यूनतम अवधि निर्धारित कर नया प्राविधान जोड़ा गया है। कार्य परिषद में राज्य सरकार के प्रतिनिधि के रूप में संयुक्त सचिव या उससे उच्च स्तर का अधिकारी सदस्य होगा। विश्वविद्यालय के तीन शिक्षकों के पैनल में से राज्य सरकार एक शिक्षाविद् को सदस्य के रूप में नामांकन के लिए भेजेगी।
गरीबों को शुल्क में देनी होगी छूट-
अध्यादेश में फीस निर्धारण की प्रक्रिया को पब्लिक डोमेन में प्रदर्शित किए जाने का प्राविधान किया गया है। साथ ही समाज के कमजोर वर्ग के लिए विभिन्न पाठ्यक्रम में 10 प्रतिशत सीटों पर 50 प्रतिशत शुल्क के साथ प्रवेश का प्राविधान किया गया है। ऐसे पाठ्यक्रम जिनमें उपलब्ध सीटों का प्रतिशत एक से कम है वहां ऐसे सभी पाठ्यक्रमों में समेकित रूप से चक्रानुक्रम में प्रवेश दिए जाने का प्राविधान किया गया है। नैक मूल्यांकन 5 वर्ष में अनिवार्य किया गया है।
उच्च शिक्षा परिषद करेगा सालाना निरीक्षण-
अध्यादेश, परिनियम, अध्यादेशों एवं रेगुलेशन्स के प्राविधानों का पालन कराने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य उच्च शिक्षा परिषद को नोडल संस्था नामित किया गया है। परिषद को विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकारी अथवा अधिकारी से विहित अवधि के तहत किसी प्रकार की सूचना या अभिलेख प्राप्त करने और विश्वविद्यालय की सूचना प्राप्त कराए जाने में असफल होने पर उचित कार्रवाई के लिए रिपोर्ट पेश करने की शक्ति प्रदान की गई है। शिक्षा की गुणवत्ता देखने के लिए परिषद वर्ष में कम से कम एक बार विश्वविद्यालय का निरीक्षण करेगा तथा राज्य सरकार को मुख्य रूप से धारा 3 के तहत तहत दी गई वचनबद्धताओं के पालन के संबंध में वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट पेश करेगा। विश्वविद्यालय में धोखाधड़ी अथवा धन का गम्भीर दुरुपयोग होने की दशा में विश्वविद्यालय की मान्यता वापस लिए जाने की प्रक्रिया के तहत विश्वविद्यालय की प्रारम्भिक जांच के लिए परिषद को निर्देश निर्गत किए जाने तथा परिषद की संस्तुति पर अधिसूचना के माध्यम से किसी अधिकारी अथवा किसी समिति को ऐसी जांच करने के लिए जांच अधिकारी नामित किए जाने का प्राविधान किया गया है। जांच में दोषी पाए जाने पर प्रदेश सरकार संबंधित निजी विश्वविद्यालय की मान्यता निरस्त कर सकेगी। इसमें यह प्रावधान भी किया गया है कि विश्वविद्यालय किसी भी प्रकार की राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलिप्त नहीं होगा और न ही विश्वविद्यालय परिसर के अंदर या विश्वविद्यालय के नाम से किसी को भी ऐसा करने की अनुमति होगी। ऐसी गतिविधि के पाये जाने पर इसे विश्वविद्यालय की स्थापना की शर्तों का उल्लंघन माना जाएगा और इस पर राज्य सरकार कार्रवाई कर सकती है। पूर्व में संचालित निजी विश्वविद्यालयों को एक वर्ष के अंदर परिनियमों को लागू किए जाने की छूट दी गई है।