मनुष्य का चरित्र इससे तय होता है कि किसी कार्य के प्रति उसकी प्रवृत्ति कैसी है. वह जो कुछ बनता है, अपने सोच-विचार से बनता है. अत: हमें अपने सोच का ध्यान रखना चाहिए. हम जो प्रत्येक कर्म करते हैं और प्रत्येक विचार जिसका हम चिंतन करते हैं, वे सब चित्त पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं. प्रत्येक मनुष्य का चरित्र इन सारे प्रभावों के आधार पर तय होता है. यदि प्रभाव अच्छे हों तो चरित्र अच्छा होता है और यदि ये प्रभाव खराब हों, तो चरित्र बुरा होता है. चरित्र निर्माण की इस प्रक्रिया से जहां यह निर्धारित होता है कि कोई व्यक्ति आगे चलकर कैसा बनेगा, वहीं यह भी तय होता है कि इससे भावी समाज और संसार का निर्माण कैसा होगा.
भारत में महिलाओं को देवी का दर्जा दिया जाता है. वैसे तो प्रकृति ने स्त्री के भीतर कोमलता, सौम्यता और ममत्व के भाव कूट-कूटकर भरे हैं और अधिकतर महिलाओं में ये भावना होती भी है. लेकिन जिस तरह हाथों की पांचों अंगुलियां बराबर नहीं होतीं, ज़रूरी नहीं कि हर स्त्री भी ऐसी ही हो. महिलाओं के सिर पर जन्म से ही ये जिम्मेदारी सौंप दी जाती है कि परिवार की इज्ज़त पर कभी आंच नहीं आनी चाहिए. जिस तरह महिलाएं कुल की लाज बचाने का काम करती हैं, अपने नैतिक और सामाजिक आचरण को पवित्र रखती हैं वहीं कुछ स्त्रियां ऐसी भी होती हैं जिनके कर्म कुल के विनाश का कारण बनते हैं. ऐसी स्त्रियों को सामाजिक भाषा में कुलक्षिणी कहा जाता है. स्त्री के चेहरे और उसके शरीर पर कुछ ऐसे लक्षण होते हैं जो उसे लक्ष्मी का स्वरूप नहीं बल्कि कुलक्ष्मी करार देते हैं. आज हम ऐसी ही स्त्रियों के बारे में बात करेंगे.
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- यदि किसी महिला की कनिष्ठ उंगली या उसके साथ वाली उंगली जमीन को नहीं छूती या फिर अंगूठे के साथ वाली उंगली बहुत ज्यादा लंबी है, तो ऐसी महिलाएं समय अनुसार खुद को बदल लेती हैं.
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