शनिवार के दिन करें इस स्त्रोत का पाठ, इच्छाएं होंगी पूरी

शनिवार का दिन भगवान शनि की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन अगर शनिदेव के लिए उपवास रखा जाए और श्रद्धा अनुसार उनकी पूजा की जाए तो वे प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। लेकिन शनि भगवान की पूजा में एक बात का सदैव ध्यान रखें भूलकर भी किसी गरीब या असहाय व्यक्ति को परेशान न करें।

शनिवार का दिन भगवान शनि की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन अगर शनिदेव के लिए उपवास रखा जाए और श्रद्धा अनुसार, उनकी पूजा की जाए, तो वे प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पीपल के वृक्ष के समक्ष दीया जलाने का भी विधान है, जो साधक 11 शनिवार पीपल वृक्ष के सामने दीया जलाते हैं और वहीं बैठकर शांतिपूर्वक शनि स्तोत्र का पाठ करते हैं उन्हें उस पाठ के बेहतर परिणाम मिलते हैं।

लेकिन शनि भगवान की पूजा में एक बात का सदैव ध्यान रखें भूलकर भी किसी गरीब या असहाय व्यक्ति को परेशान न करें। वरना इन उपायों का प्रभाव तुरंत नष्ट हो जाएगा। तो आइए पढ़ते हैं शनि स्तोत्र –

”शनि स्तोत्र”

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।

नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।

नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।

नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।

नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।

सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च।।

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।

नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते।।

तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।

नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।

तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।

देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।

त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।

प्रसाद कुरु मे सौरे वारदो भव भास्करे।

एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।।

इन मंत्रों के जाप से प्रसन्न होते हैं शनि भगवान

नीलाम्बरः शूलधरः किरीटी गृध्रस्थित स्त्रस्करो धनुष्टमान् |
चतुर्भुजः सूर्य सुतः प्रशान्तः सदास्तु मह्यां वरदोल्पगामी ||

ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥

ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।

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