अक्सर लोगों के मन में शनि का ख्याल आने मात्र से ही डर बैठ जाता है। क्या कारण है कि शनिदेव के नाम से लोग इतना डरते हैं। हर कोई यह चाहता है कि उसके जीवन में कभी भी शनि का प्रकोप न रहे। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि को पापी और अशुभ ग्रह कहा गया है। इसके अलावा शनिदेव को कर्मफल दाता कहा जाता है जो मनुष्य को उसके कर्मो के अनुसार फल प्रदान करते हैं।
ज्योतिषशास्त्र में कुंडली का अध्ययन करने के लिए कुंडली में शनि की स्थिति, दशा, महादशा, अंतर्दशा, शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या आदि देखा जाता है।
शनि ग्रह को न्याय का देवता कहा गया है। शनि मकर और कुंभ के स्वामी हैं। शनि तुला में उच्च और मेष राशि में नीच भाव में होते हैं। कुंडली में शनि की महादशा 19 वर्ष की होती है।
शनि सभी ग्रहों में सबसे धीमी चाल से चलते हैं। यह एक राशि से दूसरी राशि में जाने तक ढाई वर्ष का समय लेते हैं। ऐसे में किसी राशि पर शनि की साढ़ेसाती सात साल की होती है। जिस किसी भी जातक पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की परेशानियां आती हैं। लेकिन वहीं दूसरी तरफ जिस व्यक्ति के लिए शनि शुभ होता है वह मालामाल हो जाता है।