वैश्विक दबाव के बीच विकास जोखिम बढ़ने से आरबीआई फिर घटा सकता है ब्याज दरें

वैश्विक चुनौतियों से घरेलू विकास प्रभावित होने पर आरबीआई और अधिक ब्याज दरों में कटौती कर सकता है। केयरएज रेटिंग्स की एक रिपोर्ट में यह अनुमान जताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार रोजकोषीय मोर्चे पर सरकार ने पहले ही जीएसटी सुधार और आयकर बोझ को कम करके प्रोत्साहन प्रदान किया है।

ब्याज दरों में कटौती आर्थिक सुस्ती के बीच वृद्धि को समर्थन देने वाली है
केयरएज के अनुसार आरबीआई द्वारा मौद्रिक नीति समीक्षा में 25 आधार अंकों की कटौती के साथ रेपो रेट 5.25% पर लाए जाने को आर्थिक सुस्ती की आशंका के बीच वृद्धि को समर्थन देने वाली पहल माना जा रहा है।

हालांकि, आगे वित्तीय प्रोत्साहन की सीमित गुंजाइश के मद्देनजर भविष्य में आर्थिक परिस्थितियों के कमजोर पड़ने पर जिम्मेदारी मौद्रिक नीति पर अधिक आ सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राजकोषीय मोर्चे पर सरकार पहले ही टैक्स बोझ घटाने, जीएसटी सुधारों और राजकोषीय संयम के लक्ष्य के चलते सीमित स्थान रखती है।

केयरएज के अनुसार हालांकि मुद्रास्फीति पूर्वानुमान के आधार पर 25 आधार अंकों की और कटौती की गुंजाइश है, लेकिन मौद्रिक नीति समिति फिलहाल विराम लेकर भविष्य की स्थिति के लिए विकल्प सुरक्षित रखना चाहती है। वैश्विक सुस्ती, व्यापार विवादों और अमेरिकी टैरिफ से प्रभावित निर्यात दबाव जैसे जोखिमों के बीच यह सतर्क रुख अपनाया गया है।


मौजूदा मौद्रिक ढांचा:
रेपो रेट: 5.25% , बैंक को दिए जाने वाले RBI ऋण की दर
स्थायी जमा सुविथा (SDF) दर: 5.00% , बिना प्रतिभूति के RBI में अधिशेष धन जमा करने की सुविधा
सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर: 5.50% – तत्काल धन आवश्यकता पर बैंकों के लिए अंतिम विकल्प
बैंक रेट: 5.50% – दीर्घकालिक ऋण दर, कई ब्याज दरों का मानक
फिक्स्ड रिवर्स रेपो रेट: 3.35% – बैंक अपने धन को RBI में जमा कर ब्याज अर्जित कर सकते हैं


विकास दर कमजोर पड़ने पर भविष्य हो सकती है कटौती
इन दरों का संयुक्त प्रभाव तरलता प्रबंधन, मुद्रास्फीति नियंत्रण और वित्तीय स्थिरता कायम रखने में अहम भूमिका निभाता है। केंद्रीय बैंक के सतर्क लेकिन खुले रुख से संकेत मिलता है कि अगर विकास दर और कमजोर पड़ती है, तो आगे फिर दर कटौती की संभावनाएं बरकरार रहेंगी।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com