विश्व मधुमक्खी दिवस प्रत्येक वर्ष 20 मई को मनाया जाता है। संयोग है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा की उसमें वित्तमंत्री ने पांचवें दिन मधुमक्खी पालन व्यवसाय को भी शामिल किया।
मधुमक्खी पालन से मधु, मोम, परागकण, रायल जेली, मौन विष मिलने के साथ फसलों में पर-परागण व जैव विविधता का संवर्धन होता है। इससे प्रवासी मजदूरों, कृषकों, महिलाओं को रोजगार मिलेगा।
शहद का सेवन इंसान के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत बनाने में कारगर है। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आइआइवीआर)भी इस पर शोध कर चुका है।
शहद विटामिन व खनिज लवणों (कैल्शियम, मैंग्नीशियम और पोटैशियम) का मुख्य स्रोत है। पोषणीय दृष्टि से आधा किग्रा शहद से 3.21 लीटर दूध, चार किग्रा पनीर, 0.85 किग्रा मांस, 1.07 किग्रा मछली, 29 अंडे व 23 संतरे के बराबर पोषण मिलता है।
मधुमक्खियां दुनिया की 70 प्रतिशत से भी ज्यादा कृषि व औद्यानिक फसलों में परागण करतीं हैं। इनके पर परागण से तिलहन में 40 फीसद, दलहनों में 30, सब्जियों में 20, गाजर के बीज उत्पादन में 500, संतरे में 900, अमरूद में 200 फीसद और लीची में 10,000 गुना तक उपज में वृद्धि होती है।
किसान मधुमक्खी पालन करें। उनको नेशनल बी बोर्ड में पंजीकरण संग सुरक्षित कीटनाशक का प्रयोग लाभकारी होता है। छत्तों में प्रतिजैविकों (एंटी बायोटिक्स) व भंडारण के लिए स्टेनलेस स्टील या फूड ग्रेड प्लास्टिक के डिब्बों का प्रयोग करना चाहिए।
देश में दो लाख पंजीकृत मधुमक्खी पालकों से 36-40 किग्रा तक शहद प्रति बक्सा मिलता है। देश में मधु की उपलब्धता 10 ग्राम प्रतिदिन प्रति व्यक्ति है, जबकि यह 50 ग्राम होना चाहिए।
जिले में 50 से अधिक किसान मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। सबसे छोटे किसान के पास भी 10 से अधिक बक्से हैं। 100 बक्से वाले किसान भी इस रोजगार से जुड़े हैं।
पिछले साल 200 बक्से और 3.20 लाख रुपये अनुदान दिए गए थे। प्रवासी मजूदरों के लिए भी अनुदान व बक्से देने की योजना है। दरवाजे पर ही 10 बक्से से यह रोजगार शुरू किया जा सकता है। पचास बक्से खरीदने पर 80 हजार मदद दी जाती है।