विरान हो रहे पहाड़ों में नई जान फूंक रहा हैं ‘पहाड़ी हाउस’, जो सैलानियों के लिए बन रहा है फेवरेट प्लेस

उत्तराखंड की हसीन वादियों के बीच पलायन का दंश झेल रहे पहाड़ों के घर खंडहर होते जा रहे हैं. लेकिन, इन्ही खंडहर घरों को इंटरनेशनल टूरिस्ट स्पॉट बनाकर पहाड़ के युवाओं ने उम्मीद की एक किरण पैदा की है. टिहरी गढ़वाल के चोपडियाल गांव में स्थानीय युवाओं ने पर्वतीय शैली में बने पुराने और खंडहर हो चुके घरों को पुनर्निर्मित कर पहाड़ी घर बनाकर पर्यटक के आकर्षण का केन्द्र बना दिया.

मसूरी और धनोल्टी फ्रूट बेल्ट क्षेत्र में चंबा से मात्र सात किमी की दूरी पर चोपडियाल गांव में स्थित है. हिम्मत सिंह पुंडीर का ये भवन 2014 से पहले खंडहर हो चुका है. उसके बाद अभय शर्मा और यश भंडारी ने इस पर्वतीय शैली से बने घर को लीज पर लिया और करीब एक साल की मेहनत के बाद इसे दोबारा उसी तर्ज पर तैयार कर दिया.

पारम्परिक वाद्य यंत्रों से होता है स्वागत
2015 से पहाड़ी हाऊस में देश-विदेश के सैकडों सैलानी रुक चुके हैं. इस घर में जब भी सैलानियों का आगमन होता है तो पारम्परिक वाद्य यंत्रों ढोल दमऊ के साथ उनका स्वागत किया जाता है. स्थानीय वाद्य यंत्रों से स्वागत के बाद सैलानियों को पटाल से बने घर में रात्रि विश्राम करते हैं. पहाड़ी हाउस के चारों तरफ सेब, पुलम, आडू, नाशपाती के पेड़ हैं और सामने हिमालय की हिमधवल चोटियां सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देती है.

स्थानीय लोगों को मिला रोजगार
पहाड़ी हाऊस से कई स्थानीय लोगों को भी रोजगार के अवसर मिले है. नत्थीराम सेमवाल बताते है कि पहाडी हाऊस की खासियत ये भी है कि सैलानियों को पहाड़ी भोजन परोसा जाता है. यहां काम करने वाले लोग गाइड की भूमिका भी निभाते हैं और सैलानियों के कहने पर वो उन्हें आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण कराने जाते हैं. 2015 के बाद से यहां जर्मनी, फ्रांस, जापान, कनाडा और अमेरिका से आने वाले विदेशी सैलानियों की तादात बढ़ी है.

बेहद मजबूत हैं ये घर
उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में पर्वतीय शैली में बने भवन काफी मजबूत होते है. दरअसल, पर्वतीय क्षेत्रों में पारंपरिक घर वैज्ञानिक दृष्टि से भी काफी फायदेमंद होते है. स्थानीय पत्थर, मिट्टी, गोबर और लकड़ी से तैयार ये घर सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडे होते हैं. इसके साथ ही भूकंप की दृष्टि से भी ये भवन मजबूत माने जाते हैं.

1803 से बन रहे हैं ऐसे मकान
भूगर्भ वैज्ञानिक एसपी सती ने कहा कि 1803 के गढ़वाल भूकंप के बाद पर्वतीय इलाकों में लोगों ने स्थानीय उत्पादों से मकान का निर्माण करना शुरू कर दिया था. उन्होंने बताया कि स्थानीय मिट्टी, पत्थर, लकड़ी और गोबर से तैयार किए गए पर्वतीय भवन गर्मियों में ठंडे और सर्दियों में गर्म होते है. वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक एमपीएस बिष्ट ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में भूकंप और भूस्खलन का सबसे ज्यादा खतरा बना रहता है, ऐसे में सीमेंट के मकान के बजाय पारम्पिक भवन निर्माण शैली फायदेमंद है. उन्होंने बताया कि 1991 के उत्तरकाशी भूकंप और 1999 में चमोली में आए भूकंप में सीमेंट के बने मकान ध्वस्त हो गए, जबकि पर्वतीय शैली से बने मकान कम क्षतिग्रस्त हुए.

पहाड़ों में ग्रामीण पर्यटन की अपार संभावनाएं
उत्तराखंड में कई गांव ऐसे है जो राज्य गठन के बाद खाली हो चुके हैं. हाल ही में उत्तराखंड पलायन आयोग ने जो आकड़े जारी किए हैं, उसमें 7 सालों में ही 700 गांव खाली होने का जिक्र किया गया है. रिपोर्ट में 10 सालों में लगभग 4 लाख लोगों ने पहाड़ से पलायन कर दिया. उत्तराखंड के 5 पहाड़ी जिलों पौड़ी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा में पलायन की स्थिति सबसे चिंताजनक है. यही नहीं भारत चीन बार्डर से जुड़े 14 गांव भी पूरी तरह वीरान हो चुके है, जो सामरिक दृष्टि से भी बेहद चिंताजनक है.

7950 गांवों का हुआ सर्वे 
ये रिपोर्ट पलायन आयोग ने 7950 गांवों में सर्वे करने के बाद जारी किया. उत्तराखंड में कई गांवों में बहुत ही सुन्दर आकृति से लकड़ी में नक्काशी घर बनाए गए हैं. बड़े-बड़े पटाल से छत तैयार की गई है. ऐसे में इन घरों को संवारकर अगर सैलानियों को आमंत्रित किया जाए, तो ग्रामीण पर्यटन रफ्तार पकड़ सकता है. अभय शर्मा कहते है कि उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, पौड़ी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ में कई गांव ऐसे है जहां बहुत भव्य और सु्दर भवन खंडहर होते जा रहे है. अभय ने कहा कि उनका सपना है कि पहाड़ में 2 हजार से अधिक पहाड़ी हाऊस तैयार किए जाए जिससे स्थानीय लोगों को पहाड़ में ही रोजगार मिल जाएगा.

रोजगार के नए विकल्प
चोपडियाल गांव में हिम्मत सिंह पुंडीर के पुराने उजाड़ मकान को पुनर्निमित कर रोजगार के नए विकल्प तलाश किए है. हिम्मत सिंह पुंडीर ने कहा उनके पुराने मकान जब खंडहर हुआ तो वहां आप-पास कुछ भी नहीं होता था, लेकिन आज वे भी काफी खुश है. आंकड़ों पर नजर रखें तो करीब 32 लाख लोग पहाड़ों से पलायन कर चुके हैं और करीब 3 लाख घरों पर ताले लटक चुके है. इन्हीं खंडहर घरों को अगर फिर से बना दिया जाए, तो पहाड़ों में कई घर जो वीरान हो चुके है फिर से आबाद हो जाएंगे. पहाड़ों से पलायन को रोकने के लिए राज्य सरकार भले ही बड़े-बड़े दावे करती हो, लेकिन अभय शर्मा जैसे युवाओं ने साबित कर दिया है कि अगर नई सोच हो तो फिर खंडहर हो चुके घरों में भी नई जान फूंकी जा सकती है, जिन्होंने वीरान हो रहे पहाड़ों में नई उम्मीदें जताई हैं.

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