विदेशों में रहने वाले भारतीयों के हितों की रक्षा करने के लिए मोदी सरकार प्रतिबद्ध है : विदेश मंत्री एस जयशंकर

विदेशों में रहने वाले भारतीयों के हितों की रक्षा करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को उम्मीद जताई कि खाड़ी क्षेत्र के देश ऐसे भारतीयों की वापसी को सुगम बनाने में मदद करेंगे जिन्हें कोविड-19 महामारी के कारण भारत लौटने को मजबूर होना पड़ा था।

लोकसभा में और फिर राज्यसभा में विदेश मंत्री जयशंकर ने विदेशों में रहने वाले भारतीयों, गैर-निवासी भारतीयों (एनआरआई) और भारतीय मूल के लोगों (पीआईओ) के कल्याण से संबंधित हाल के घटनाक्रमों पर अपने बयान में यह भी कहा कि सरकार विदेशों में काम करने वाले लोगों के रोजगार की चिंताओं से पूरी तरह से अवगत है। जयशंकर ने कहा कि पिछले साल कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने से रोकने के लिए विभिन्न देशों में लॉकडाउन लगाया गया था।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर विदेश मंत्रालय, नागरिक उड्डयन मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और अन्य मंत्रालयों के समन्वय से ‘वंदे भारत मिशन’ चलाया गया और दूसरे देशों में फंसे भारतीयों को वापस लाया गया। विदेश मंत्री ने बताया कि वंदे भारत मिशन के तहत 45 लाख 82 हजार से अधिक भारतीय 98 देशों से वापस लाए गए।

जयशंकर ने कहा ‘‘ कोविड-19 महामारी के दौरान सरकार की पहली प्राथमिकता संकट के समय दूसरे देशों में रह रहे भारतीयों को वापस बुलाने की थी। यह बाद की बात है कि लोग अब वापस जाना चाहते हैं या नहीं।’’ उन्होंने बताया कि खाड़ी देशों से आए भारतीयों ने अपने अपने ब्यौरे राज्य सरकारों को दिए हैं और उम्मीद है कि राज्य सरकारें उन ब्यौरों के आधार पर, यहां रहने के इच्छुक लोगों के कौशल का उपयोग करेंगी। अर्थव्यवस्था के कोविड-19 संकट के दुष्प्रभाव से उबरने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस बात की संभावना नहीं के बराबर है कि स्वदेश लौटे लोगों को कोई परेशानी होगी।

जयशंकर ने यह भी कहा ‘‘कोविड-19 संकट की शुरुआत के समय हमारा ध्यान दूसरे देशों में फंसे लोगों को वापस लाने पर केंद्रित था। हमारा ध्यान अब भी पढ़ाई, रोजगार या अन्य वजहों से वहां वापस जा रहे भारतीयों पर है। ’’ विदेश मंत्री के अनुसार, इस संबंध में हवाई यात्रा के लिए 27 देशों के साथ बबल समझौते किए जा चुके हैं तथा अन्य देशों के साथ भी बातचीत चल रही है।

उन्होंने बताया कि इसके तहत अकेले एयर इंडिया समूह की 9,500 से अधिक उड़ानें संचालित हुईं और 10.9 लाख भारतीय विदेश गए। ज्यादातर लोग खाड़ी देशों में गए हैं। उन्होंने दूसरे देशों में अध्ययनरत भारतीय छात्रों के बारे में कहा कि जिन संस्थानों में ये छात्र अध्ययन कर रहे हैं, उनसे वे सतत ऑनलाइन संपर्क बनाए हुए हैं। ‘‘इन छात्रों को संस्थानों की ओर से पाठ्यक्रम तथा अन्य जानकारियां मिल रही हैं और उनके आधार पर छात्र आगे के कदम उठा रहे हैं।’’

विदेश मंत्री ने कहा कि जिस तरह सरकार ने आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिये घरेलू स्तर पर काम किया, उसी तरह विदेशों में रहने वाले भारतीयों की आजीविका के लिए भी अथक प्रयास किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ इस दिशा में बबल समझौता और हवाई सेवा की व्यवस्था एक अहम कदम है। इसके आगे हम अपने सहयोगी देशों की सरकारों से आग्रह कर रहे हैं कि जैसे-जैसे वे स्थिति को पटरी पर लाने की दिशा में कदम बढ़ायें, वे हमारे नागरिकों के रोजगार के विषय पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करें।’’

जयशंकर ने कहा कि हमारे इन प्रयासों के केंद्र में खाड़ी क्षेत्र है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल के महीनों में सऊदी अरब, कतर और ओमान के नेताओं के साथ चर्चा की। उन्होंने कहा, ‘‘ हमारे हाल के संवाद से हमें उम्मीद है कि खाड़ी क्षेत्र में हमारी सहयोगी सरकारें भारतीयों की वापसी को सुगम बनाने में मदद करेंगी जिन्हें महामारी के कारण भारत लौटने को मजबूर होना पड़ा था।’’ जयशंकर ने ‘वंदे भारत मिशन’ का उल्लेख करते हुए कहा कि इसके माध्यम से 98 देशों से 45,82,043 लोग भारत लौटे। इस मिशन के तहत केरल में सबसे ज्यादा लोग लौटे। इसके बाद दिल्ली और महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा लोग लौटे। वापस आने वाले लोगों में 39 फीसदी लोग कामगार थे।

विदेश मंत्री ने कहा कि सरकार ने उन्हें वापस लाने के लिए उचित जरूरी सुविधाएं मुहैया कराईं। भोजन, आश्रय, परिवहन सेवा, मास्क और दूसरी चिकित्सा सुविधाएं भी दी गईं। उन्होंने कहा कि हमारे दूतावास ने संबंधित सरकारों के साथ संपर्क बनाए रखा तथा सामुदायिक संगठनों के साथ संपर्क साधा। साझेदार देशों की सरकारों के सहयोग के बिना इतनी बड़ी संख्या में लोगों को वापस लाना संभव नहीं होता। जयशंकर ने कहा कि मोदी सरकार विदेश में रहने वाले लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है।

जयशंकर के बयान के बाद राज्यसभा में सदस्यों ने विदेश मंत्री से स्पष्टीकरण भी पूछे। द्रमुक के तिरूचि शिवा ने जानना चाहा कि देश लौटे कई भारतीय वापस नहीं जाना चाहते और सरकार ने उनके भविष्य के लिए क्या योजनाएं बनाई हैं। कांग्रेस के आनंद शर्मा ने पूछा कि कोविड-19 की वजह से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। ऐसे में पश्चिम एशियाई देशों में काम करने वाले भारतीय वापस जाएंगे तो क्या उन्हें पहले की तरह वेतन मिल पाएगा। उन्होंने विदेशों में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के भविष्य को लेकर भी सवाल पूछा। राकांपा के प्रफुल्ल पटेल ने कहा ‘‘पूर्वी देशों में रह रहे भारतीयों की समस्याओं के हल के लिए सरकार की क्या योजना है ?’’ उन्होंने स्थानीय स्तर पर उद्योगों को बढ़ावा देने की मांग भी की ताकि वापस लौटे उन भारतीयों को रोजगार मिल सके जो वापस नहीं जाना चाहते।

राजद के मनोज झा ने खाड़ी देशों से बिहार और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों की बड़ी संख्या में वापसी का जिक्र करते हुए कहा कि इन लोगों के भविष्य के लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए। शिरोमणि अकाली दल के सदस्य नरेश गुजराल ने विदेशों में जान गंवाने वाले भारतीयों के परिवार वालों की मदद के लिए हेल्प डेस्क बनाने की मांग की।

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