हमारे हिन्दू धर्म में भगवान की प्रदक्षिणा यानी परिक्रमा करने का विधान माना जाता है। यह एक अनिवार्य परंपरा है और इसका पालन आज भी पूजा-पाठ में करते हैं। शास्त्रों की मान्यता है कि परिक्रमा से पापों का नाश होता है। वहीं अब हम विज्ञान की नजर से देखें तो शारीरिक ऊर्जा के विकास में मंदिर परिक्रमा का विशेष महत्व है।
कितनी परिक्रमा करना आवश्यक- सूर्य देव की सात, श्रीगणेश की चार, भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की चार, देवी दुर्गा की एक, हनुमानजी की तीन, शिवजी की आधी प्रदक्षिणा करने का नियम है। शिवजी की आधी प्रदक्षिणा ही की जाती है, इस संबंध में मान्यता है कि जलधारी को लांघना नहीं चाहिए और जलधारी तक पंहुचकर परिक्रमा को पूर्ण मान लिया जाता है। परिक्रमा करते समय इस मंत्र का करें जाप ‘यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च, तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे’ इस मंत्र का अर्थ यह है कि: अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए। परमेश्वर मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें। परिक्रमा किसी भी देवमूर्ति या मंदिर में चारों ओर घूमकर की जाती है और कुछ मंदिरों में मूर्ति की पीठ और दीवार के बीच परिक्रमा के लिए जगह नहीं होती है, ऐसी स्थिति में मूर्ति के सामने ही गोल घूमकर प्रदक्षिणा करते हैं।