वायु प्रदूषण से सिर्फ सांसों को ही प्रभावित नहीं कर रही, बल्कि दिल पर भी पड़ रहा भारी असर

वायु प्रदूषण यानी हवा की खराब सेहत सिर्फ सांसों को ही प्रभावित नहीं कर रही, बल्कि दिल पर भी भारी पड़ रही है। हवा में घुलित महीन कण (पीएम-2.5) की मात्रा बढऩे से फेफड़ों की अपेक्षा दिल के लिए अधिक घातक साबित हो रही है। हृदय रोग विशेषज्ञों की मानें तो पीएम 2.5 सांसों के जरिए फेफड़े से होते हुए खून में मिल रहा है, इसकी वजह से नसों का म्यूकोसा क्षतिग्रस्त होकर नसों में रुकावट पैदा कर रहा है। इस वजह से हार्ट अटैक से लेकर हार्ट फेल होने का खतरा बढ़ रहा है।

हवा में बढ़ गई है पीएम 2.5 की मात्रा

दीपावली के बाद से ही शहर की आबोहवा में पीएम 2.5 और डीजल पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा काफी बढ़ गई है। वायुमंडल में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा मानक से कई गुना अधिक पाई गई। इससे बीमारियों से पीडि़तों की क्या कहें समान व्यक्तियों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में दिल के मरीजों, मधुमेह और उच्च रक्तचाप पीडि़तों की समस्याएं और बढ़ गई हैं। वह अपनी समस्या लेकर लक्ष्मीपत सिंघानिया हृदय रोग संस्थान पहुंचने लगे हैं। इससे ओपीडी में मरीजों की संख्या 700-1000 तक पहुंच गई है। इसमें 40 फीसद प्रदूषण की वजह से बेहाल होकर पहुंच रहे हैं।

आंखों से नहीं दिखाई देते महीन कण

हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. संतोष कुमार सिन्हा बताते हैं कि प्रदूषण से दिल का दौरा पडऩे का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। प्रदूषण के सबसे महीन कण पीएम 2.5 खून में प्रवेश कर जाते हैं। इसके कारण धमनियों में सूजन आ जाती है और दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण का तत्काल और दूरगामी प्रभाव देखने को मिलता है। लंबे समय तक इसमें रहने की वजह से मौत भी संभव है। वर्ष 2017 में भारत में वायु प्रदूषण का कारण करीब 12 लाख 60 हजार लोगों की मौत हुई थी।

इसमें अधिकतर की हार्ट अटैक से मौत हुई थी। इस अध्ययन को प्रमुखता से मेडिकल जर्नल लांसेट में प्रकाशित किया था। उनका कहना है कि पीएम 2.5 कण इतने महीन होते हैं कि इन्हें आंखों से नहीं दिखाई पड़ते हैं। ये गैस के रूप में कार्य करते हैं। सांस लेते समय ये कण फेफड़ों में चले जाते हैं। जो उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा और कई गंभीर बीमारियों की वजह बनते हैं।

बढ़ जाती है धुंध

पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने पर धुंध बढ़ जाती है। साफ दिखना कम हो जाता है। इसकी अधिकता से सिरदर्द और आंखों में जलन भी होती है। इन कणों का हवा में स्तर बढऩे से मरीज, बच्चे और बुजुर्ग पहले प्रभावित होते हैं। प्रदूषण का स्तर खतरनाक होने पर जरूरी हो तभी घर से बाहर निकलें। सुबह-शाम की सैर और खुले में कसरत से बचें।

बच्चों पर ज्यादा असर

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. एके आर्या बताते हैं कि आइसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) और लंदन के विशेषज्ञों के एक अध्ययन में बात सामने आई है कि प्रदूषण के कारण नवजात बच्चों के फेफड़े अच्छी तरह विकसित नहीं हो पाते हैं। उनका कहना है कि वैसे बच्चे जो कम से कम 10 साल तक वायु प्रदूषण में रहते हैं। उनमें बुढ़ापे में सांस संबंधी बीमारी का खतरा अधिक होता है।

एयर प्यूरिफायर व मास्क भी सीमित कारगर

हवा शुद्ध करने वाली मशीनें (एयर प्यूरिफायर) एयरटाइट कमरे में ही कारगर हैं। एन-99 तथा एन-95 मास्क मुंह पर कसकर पहनने से प्रदूषित हवा फिल्टर होती है, लेकिन घबराहट होती है। इसलिए बार-बार हटाना पड़ता है। इसे 15-20 मिनट से अधिक नहीं पहन सकते।

हवा में बढ़ी हानिकारक गैसों की मात्रा

शहर में बढ़ते प्रदूषण की स्थिति कोहरा बढऩे के साथ और भी खतरनाक हो सकती है। कोहरे के साथ मिलकर प्रदूषित हवा स्मॉग का रूप ले लेगी। शनिवार को जारी आंकड़ों के अनुसार कानपुर वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) में 396 अंक के साथ देश में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। सर्दी का मौसम होने के कारण धूलकण और हानिकारक गैसों के कण निचले सतह में तैर रहे हैं जो सीधा लोगों की सांसों में समा रहे हैं। इससे तरह-तरह की बीमारियों का खतरा पैदा हो गया है।

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