सुप्रीम कोर्ट भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार पांचों वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी पर फैसला सुरक्षित रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस और वामपंथी विचारकों, दोनों पक्षों से सोमवार तक लिखित नोट दाखिल करने को कहा है। आपको बता दें कि नजरबंद विचारकों की तरफ से दाखिल अर्जी में इस मामले को मनगढ़ंत बताते हुए एसआईटी जांच की मांग की गई है।
इससे पहले, बुधवार को कोर्ट ने गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि वह इस मामले को पैनी निगाह से देखा जाएगा। कोर्ट ने सरकार से कहा कि असहमति और गड़बड़ी फैलाने वाले या सरकार का तख्ता पलट करने वालों के बीच अंतर को समझना होगा।
दूसरी ओर महाराष्ट्र सरकार ने गिरफ्तारियों को सही ठहराते हुए कोर्ट में कहा कि सरकार से असहमति रखने या जल्दबाजी में किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। सरकार के पास आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। कोर्ट कोई भी फैसला लेने से पहले सरकार की ओर से पेश किये गए सबूतों को संदर्भ के साथ बारीकी से देखे।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, एएम खानविल्कर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ आजकल भीमा कोरेगांव हिंसा और नक्सलियों से संबंध के आरोप में गिरफ्तार पांच आरोपियों का मामला सुन रहे हैं।
बुधवार को महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश एएसजी तुषार मेहता ने कहा कि पांचों के खिलाफ पर्याप्त और पुख्ता सबूत हैं। बिना सबूतों के गिरफ्तारी नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि इस मामले की एफआईआर 8 जनवरी को दर्ज हुई थी जिसमें छह लोगों का नाम था लेकिन तत्काल किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया था।
छह महीने की जांच में सबूत मिलने के बाद पांच लोगों को 6 जून को गिरफ्तार किया गया। कोर्ट अगर दस्तावेजों और बरामद सामग्री का क्रम देखेगा तो स्वयं इस बात से संतुष्ट हो जाएगा कि इनके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। तुषार ने कोर्ट में केस डायरी और तीन सील बंद लिफाफों में रिपोर्ट पेश की।
उन्होंने कहा कि आरोपियों के यहां डाले गए छापों में लैपटाप, पेन ड्राइव, हार्डडिस्क आदि बरामद हुई जिसमें आरोपियों के कई पत्रों का खुलासा होता है और उसमें उनकी मंशा नजर आती है। छापों की वीडियोग्राफी हुई है। मेहता ने कहा कि सीपीआई (माओवादी) प्रतिबंधित संगठन है जिससे इनके संबंध हैं
इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी के पास कुछ दस्तावेज होने से उसे प्रतिबंधित संगठन का सदस्य नहीं कहा जा सकता। आप जो दस्तावेज दे रहे है, उसमें ये भी कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सेमिनार की जाएंगी। ऐसे में असहमति और गड़बड़ी करने वालों के बीच अंतर को समझना होगा।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उन दस्तावेजों को दिखाओ जिन्हें वे सबसे अहम मानते हैं। जब मेहता ने जनवरी से लेकर अभी तक की जांच में प्राप्त सबूतों का ब्योरा देना शुरू किया तो कोर्ट ने कहा कि 28 अगस्त को जो गिरफ्तारियां हुई हैं, उनके बारे मे बताओ।
मेहता ने कहा कि वे एक एक करके सारी चीजें कोर्ट के सामने रखना चाहते हैं ताकि कोर्ट स्वयं ये जान सके कि जांच एजेंसी ने किसी दुराग्रह से काम नहीं किया है। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट पूरे मामले को पैनी निगाह से परखेगा। उन्होंने कहा कि संस्थाओँ को यहां तक कि कोर्ट को इतना मजबूत होना चाहिए कि वह विरोध सहन कर सकें। केवल अनुमान के आधार पर स्वतंत्रता का गला नहीं घोटा जा सकता।
उधर, गिरफ्तारी का विरोध करने वालों की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे कि हम कानून से ऊपर हैं हम तटस्थ जांच की मांग कर रहे हैं। भारत जैसे देश में विचारधारा रखना अपराध नहीं हो सकता। विरोधियों की ओर से यह भी कहा गया कि गिरफ्तारियां बिना किसी सबूत के दुराग्रह से हुई हैं।